कोलकाता: किसने सोचा होगा कि खाना पकाने जैसी छोटी सी गतिविधि देह व्यापार के साथ जुड़ी महिलाओं की जिंदगी बदल सकती है. लेकिन यह असंभव बात भी संभव हो चुकी है. बंगाल के रेड लाइट क्षेत्र, मुंशीगंज में देह व्यापार के चंगुल में फंसी औरतें अब इस दलदल से बाहर निकलने की कोशिश कर रही हैं. अब देह व्यापार की बजाय इन्होंने खाना पकाने को अपनी आजीविका के साधन के रूप में चुना है. अपने आप वूमेन वर्ल्डवाइड नामक गैर सरकारी संगठन की मदद से इन औरतों ने खाना पकाने के कार्य में जुट गयी हैं.देह व्यापार के कारोबार को खत्म करने के लिए संगठन हर संभव प्रयास कर रही है.
संगठन ने सबसे पहले 2010 में बच्चों को भोजन उपलब्ध कराने के उद्देश्य से सोनार बांग्ला अभियान की शुरूआत की थी, जो अब धीरे-धीरे बड़ा रूप धारण कर चुकी है. अब इनके द्वारा बनाये गये भोजन को स्थानीय कार्यालय, गैरेज व गोदामों में डब्बा सेवा उपलब्ध कराना शुरू कर दी. अपने आप की टीम ने इनको खाना पकाने के व्यवसायिक पहलुओं से अवगत कराया.
केनिलवर्थ होटल के विशेषज्ञ बावर्चियों ने भी इस काम में काफी मदद की है. ये इन्हें लोकप्रिय व बड़े पैमाने के उपयोग किये जानेवाले फास्ट–फूड तैयार करना सिखाया है और इनकी सम्प्रेषण तथा विपणन योग्यता को भी बढ़ाने का भी गुर सिखाया है.
इस परियोजना में सक्रिय नौ महिलाओं में से तीन ने देह व्यापार पूरी तरह से छोड़ दिया है और बाकी छह ने धीरे–धीरे, लेकिन निश्चित तौर पर बाहर आने का फैसला कर लिया है. डब्बा सेवा से प्रतिदिन लगभग 3000 रुपये की आय होती है, जबकि पार्टी इत्यादि जैसे अवसरों पर आमदनी सात से 10 हजार रुपये तक पहुंच जाती है. इससे प्रत्येक महिला को औसतन रोजाना 500 रुपये तक की आमदनी होती है. ये लगातार अपने कारोबार का पैमाना बढ़ाने व इसे एक लाभदायक उपक्रम बनाने का भरसक प्रयास कर रही है.
अपने आप की संस्थापक रुचिरा गुप्ता ने कहा कि यह देख कर बहुत अच्छा लगता है कि सोनार बांग्ला ने उभर कर अपनी पहचान बना ली है. वैश्यावृति के चंगुल से निकलना अपने आप में एक बड़ा संघर्ष है, इस सामुदायिक रसोई ने इनके लिए आशा व विश्वास की एक नयी किरण पैदा की है.