कोलकाता: राज्य की राजधानी में पड़ोसी देश चीन की भाषा सीखने की ललक पिछले कुछ वर्षो में बढ़ी है. चीन में विकास की तेज रफ्तार को देखते हुए लोग उसके साथ संपर्क व व्यवसाय करना चाहते हैं, जिसके लिए वहां की भाषा सीखना जरूरी है. यही कारण है कि केवल पांच वर्षो पहले वजूद में आये दि स्कूल ऑफ चाइनीज लैंगवेज से अब तक 700 से अधिक लोग चीनी भाषा सीख चुके हैं. इसमें समाज के हर वर्ग एवं उम्र के व्यक्ति शामिल हैं.
स्कूल के संस्थापक एवं प्रिंसिपल मदन सराफ ने बताया कि उनके स्कूल में पांच वर्षो से ले कर 65 वर्षो तक की उम्र के लोग चीनी भाषा सीख रहे हैं. छोटे बच्चों के चीनी भाषा सीखने के पीछे मुख्य रूप से उनके अभिभावकों का जोर होता है. वे चाहते हैं कि भविष्य को ध्यान में रख कर उनके बच्चे इस भाषा को सीख लें. कई ऐसे उम्रदराज हैं, जो नौकरी व व्यवसाय से रिटायर होने के बाद कुछ नया सीखने के जज्बे को लेकर आते हैं. हालांकि स्कूल में चीनी भाषा सीखनेवाले अधिकतर लोगों का संबंध व्यवसाय एवं कॉरपोरेट जगत से होता है. चीनी भाषा सीखनेवालों में बड़ी संख्या महिलाओं की भी है.
श्री सराफ के अनुसार, उनके यहां चीनी भाषा सीखने आनेवालों में 40-50 फीसदी महिलाएं होती हैं. स्कूल में डेढ़ महीने से लेकर तीन वर्ष तक का कोर्स है. डेढ़ महीने का कोर्स मुख्य रूप से पर्यटकों के लिए होता है, जबकि तीन वर्ष का कोर्स करियर बनाने के इच्छुक युवाओं की पहली पसंद है. चीनी भाषा सीखने में सात हजार से एक लाख रुपये का खर्च आता है.
चीनी भाषा सिखाने के लिए शिक्षक चीन से ही आते हैं. श्री सराफ के अनुसार, चीनी सरकार इस दिशा में हमारी काफी मदद कर रही है एवं कोलकाता स्थित चीनी कौंसुलेट जनरल भी काफी मददगार है. श्री सराफ ने बताया कि हमलोग मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया से अनुमोदित चीन के मेडिकल कॉलेजों में डॉक्टरी की पढ़ाई करनेवाले युवाओं की भरती की व्यवस्था भी करते हैं. चीनी भाषा पर छात्रों की पकड़ बनाने के लिए स्कूल महीने में एक बार एक चीनी अड्डा का आयोजन करता है, जिसमें देश में चीनी भाषा सीखनेवाले अन्य संस्थानों के छात्र व शिक्षक एकत्र होकर अपने अनुभव को एक दूसरे के साथ बांटते हैं. महानगर में रामकृष्ण मिशन में भी चीनी भाषा सिखायी जाती है, पर चीनी भाषा का सबसे बेहतरीन ज्ञान विश्वभारती में उपलब्ध है.