कोलकाता : आत्महत्या की कोशिश को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने के केंद्र के निर्णय के साथ पिछले 14 साल से आमरण अनशन कर रही मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम चानू शर्मिला की रिहाई की आस बंध गयी है. शर्मिला के भाई इरोम सिंघजीत ने इंफाल से कहा, ‘‘हम यह जानकर खुश हैं कि कानून बदलने के बाद सरकार को शर्मिला को रिहा करना होगा. जो हो , निर्दयी सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून :अफ्सपा: को खत्म करने के लिए वह अपना संघर्ष जारी रखेंगी.’’
बहरहाल, परिवार इस बात को लेकर भी चिंतित है कि ‘मणिपुर की लौह महिला’ का तब क्या होगा, जब उन्हें इंफाल के जवाहर लाल नेहरु अस्पताल में नाक से पाइप के जरिए जबरन भोजन नहीं दिया जाएगा. यही खास वार्ड उनके लिए जेल की तरह है. उन्होंने कहा, ‘‘ऐसी स्थिति में निश्चित ही उनकी जान को खतरा होगा लेकिन वह अपना उपवास जारी रखेंगी। उनका संकल्प बहुत मजबूत है.’’ अफ्सपा हटाने की मांग करते हुए 42 वर्षीय शर्मिला ने नवंबर 2000 से ही खाने या कुछ भी पीने से मना कर दिया.
खुदकुशी के प्रयास के आरोपों के तहत उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था. बाद में रिहा किया गया और समय समय पर उन्हें फिर से गिरफ्तार किया गया। आईपीसी की धारा 309 के तहत अधिकतम सजा एक साल की जेल है. मणिपुर के एडीजी :खुफिया: संतोष मचरेला ने कहा कि शर्मिला के खिलाफ केवल धारा 309 के तहत आरोप हैं. उन्होंने कहा, ‘‘उनके खिलाफ केवल एक आरोप है जिसके तहत उन्हें न्यायिक हिरासत में रखा गया है. हम कानून के मुताबिक मजिस्ट्रेट के आदेश का पालन करेंगे.’’शर्मिला के लंबे समय से सहयोगी रहे बबलू लोइतोंगम ने कहा कि धारा 309 ने शर्मिला के राजनीतिक संघर्ष को आपराधिक वारदात में बदल दिया.
‘जस्ट पीस फाउंडेशन’ चलाने वाले लोइतोंगम ने कहा, ‘‘कानून जब बन जाएगा उनका आंदोलन पूरी तरह से राजनीतिक होगा.’’ साथ ही कहा कि शर्मिला को जीवित रखने के लिए मजिस्ट्रेट उनको खिलाने का आदेश दे सकते हैं. मानवाधिकार कार्यकर्ता ने कहा, ‘‘चूंकि राज्य की जिम्मेदारी उनकी जान बचाने की है इसलिए वह जब अचेत होंगी उन्हें खिलाया जा सकता है.’’ ‘मणिपुर विमन गन सर्वाइवर्स नेटवर्क’ की संस्थापक बीनालक्ष्मी नेपराम ने कहा कि महत्वपूर्ण मुद्द अफ्सपा को हटाया जाना है ना कि धारा 309 को. उन्होंने कहा, ‘‘अफ्सपा हमारे लिए बडा सवाल है. धारा 309 को खत्म करना मणिपुर के लोगों के लिए चिंता का विषय नहीं है.’’