कोलकाता : 13 साल पहले अपनी बीमार बहन के इलाज के लिए एक भाई कोलकाता के अस्पतालों के चक्कर लगाता रहा लेकिन किसी ने उसकी बहन का इलाज नहीं किया और अंत में उसकी बहन की जान चली गयी. अपनी बहन मारूफा की मौत का उसके भाई साहिदुल को भारी सदमा लगा और उसने अपने मन में गरीबों के इलाज के लिए अस्पताल बनवाने की ठान ली.
सहिदुल बारुईपुर का निवासी है और पेशे से वह एक टैक्सी चालक है. सहिदुल ने बताया कि उसकी बहन की मौत के बाद उसे यह बात कचोटती थी कि पूरी रात अस्पतालों के चक्कर लगाने के बाद भी इतने बड़े शहर में उसकी बहन का किसी अस्पताल में दाखिला नहीं हुआ. ऐसे कितने ही लोग छोटे शहरों व गावों से कोलकाता इलाज के लिए आते होंगे और दर-दर भटकतें होंगे.
अपनी बहन को तो वह नहीं बचा सका लेकिन उसके जैसे लोगों की मां, बहन, बाप और भाई को बचाने की उसने ठान ली और अपनी बहन की याद में मारुफा स्मृति फांउडेशन की स्थापना की. सहिदुल ने बताया कि पिछले 14 वर्षों से टैक्सी चलाते-चलाते वह यात्रियों को इसके बारे में बताता था और अस्पताल बनाने के लिए उनसे चंदा लेता था.
अपनी पत्नी के आभूषण और अपनी जमीन बेच कर उसने दो बीघा जमीन खरीदी. अपनी टैक्सी, जमीन व पत्नी के गहने बेचकर और चंदे में मिली राशि से उसने दक्षिण 24 परगना के बारुईपुर स्थित पुर्नी ग्राम में चार मंजिले अस्पताल का निर्माण किया और शनिवार को इसका उद्घाटन श्रीस्ठा घोष ने किया जिसने साहिदुल को अपनी पहली सैलरी अस्पताल बनाने के लिए दे दी थी.
अस्पताल के निर्माण में कुल 36 लाख की लागत आयी है. अस्पताल में इलाज के लिए 20 रुपये की राशि तय की गयी है. इस कार्य के लिए संघमित्रा क्लब के प्रेसिडेंट कौशिक चटर्जी ने दस हजार की सहायता प्रदान की.