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चुनाव परिणाम से तय होगा बिमल गुरुंग का भविष्य पुराने मामले फिर खुलने की संभावना सिलीगुड़ी : दाजिर्लिंग में लोकसभा चुनाव के लिए मतदान का काम संपन्न हो गया है और अब सबकी निगाहें यहां के चुनाव परिणाम पर टिक गयी है. मतगणना 16 मई को होना है और उसी दिन यह पता चल जायेगा […]

चुनाव परिणाम से तय होगा बिमल गुरुंग का भविष्य

पुराने मामले फिर खुलने की संभावना

सिलीगुड़ी : दाजिर्लिंग में लोकसभा चुनाव के लिए मतदान का काम संपन्न हो गया है और अब सबकी निगाहें यहां के चुनाव परिणाम पर टिक गयी है. मतगणना 16 मई को होना है और उसी दिन यह पता चल जायेगा कि पहाड़ पर राजनैतिक स्थिति कैसी रहेगी.खास कर गोजमुमो और गोजमुमो सुप्रीमो बिमल गुरूंग के भविष्य का भी निर्धारण होगा. लोकसभा चुनाव से पहले उम्मीदवारी को लेकर तृणमूल सुप्रीमो तथा राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी एवं जीटीए चीफ तथा गोजमुमो सुप्रीमो बिमल गुरूंग की बीच किस तरह की तनातनी की स्थिति रही यह किसी से छुपी नहीं है.

ममता बनर्जी चाहतीं थी कि गोजमुमो उनके उम्मीदवार बाईचुंग भुटिया का समर्थन करे लेकिन बिमल गुरूंग ने ऐसा नहीं किया. वह भाजपा के पाले में चले गए और भाजपा उम्मीदवार एस एस अहलुवालिया का समर्थन किया. यहीं से राजनीतिक स्थिति एक तरह से कहें तो बिगड़ गयी. एक ही दिन करीब 600 वारंट गोजमुमो के विभिन्न नेताओं के खिलाफ जारी हो गए. कईयों की गिरफ्तारी भी हुयी. यहां तक कि स्वयं बिमल गुरूंग तथा उनकी पत्नी आशा गरुंग के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी हुए. इन लोंगों को गिरफ्तारी की आशंका सता रही थी. अभी दोनों ही हाई कोर्ट से अग्रिम जमानत पर हैं.

लेकिन यह राहत उनको कितने दिनों तक मिलेगी यह लोकसभा चुनाव परिणाम पर ही निर्भर करेगा. ऐसे भी मंत्री गौतम देव के तेवर बिमल गुरूंग को लेकर तल्ख है और गाहे बगाहे बिमल गुरूंग को चेतावनी देते रहे हैं. उन्होंने कई मौकों पर कहा है गोजमुमो से कैसे निपटना है यह लोकसभा चुनाव के बाद देख लेंगे.स्वभाविक तौर पर दोनों दलो के बीच तल्खी बढ़ी है और इसका असर आने वाले दिनों पर पड़ेगा. राजनैतिक विेषकों के अनुसार सब कुछ लोकसभा चुनाव परिणामों पर निर्भर करता है. यदि गोजमुमो समर्थित भाजपा उम्मीदवार एस एस अहलुवालिया की जीत होती है तो बिमल गुरूंग के लिए यह राहत वाली बात हो सकती है. लेकिन यह सबकुछ इतना आसान नहीं है. इसका मुख्य कारण इस बार पहाड़ पर हुए मतदान का प्रतिशत भी है.

इस बार पूरे दाजिर्लिंग संसदीय क्षेत्र में भारी मतदान हुआ है. लेकिन यदि मतदान की तुलना समतल और पहाड़ पर पड़े मतदान के साथ करें तो तस्वीर कुछ अलग ही नजर आती है. दाजिर्लिंग संसदीय क्षेत्र को दो भागों में बांटा जा सकता है. पर्वतीय क्षेत्र में तीन विधानसभा सीटें दाजिर्लिंग,कर्सियांग और कालिम्पोंग है जबकि समतल पर चार विधानसभा सीट सिलीगुड़ी,माटीगड़ा-नक्सलबाड़ी,फांसीदेवा और चोपड़ा है. इस बात जहां समतल के विधानसभा क्षेत्र में जहां 80 से 88 प्रतिशत तक मतदान हुआ वहीं पहाड़ पर मतदान प्रतिशत कम था. चुनाव कार्यालय से प्राप्त आंकड़े के अनुसार कुल 14 लाख 15 हजार 168 मतदाताओं ने मतदान किया और मतदान का प्रतिशत 80.20 रहा.

समतल के सिलीगुड़ी विधानसभा क्षेत्र में एक लाख 96 हजार 542 लोगों ने वोट डाले एवं मतदान का प्रतिशत 80.82 रहा. सर्वाधिक मतदान फांसीदेवा विधानसभा क्षेत्र में हुआ और यहां एक लाख 90 हजार 366 मतदाताओं ने मतदान किया और मतदान प्रतिशत 88.19 था. इसी तरह माटीगाड़ा-नक्सलबाड़ी क्षेत्र में भी करीब 85 प्रतिशत मतदान हुआ. यहां दो लाख 22 हजार 997 मतदाताओं ने अपने वोट डालें. चोपड़ा विधानसभा क्षेत्र में भी मतदान का प्रतिशत 82.15 रहा और यहां एक लाख 93 हजार 597 मतदाताओं ने वोट डालें. दूसरी तरफ, पहाड़ के तीन विधानसभा क्षेत्रों की स्थिति दूसरी ही थी.

यहां सबसे अधिक मतदान कर्सियांग विधानसभा क्षेत्र में हुआ जहां, दो लाख नौ हजार 81 मतदाताओं ने वोट डालें और मतदान का प्रतिशत 78.2 रहा. सबसे कम मतदान दाजिर्लिंग विधानसभा क्षेत्र में हुआ. यहां मतदान का प्रतिशत 72.95 था और कुल दो लाख 20 हजार 692 मतदाताओं ने वोट डालें. पर्वतीय क्षेत्र के तीन विधानसभा क्षेत्रों में कम मतदान होने से गोजमुमो की चिंता बढ़ गयी है. समतल क्षेत्र के चार विधानसभा क्षेत्र में जहां, आठ लाख तीन हजार 503 मतदाताओं ने वोट दिया वहीं, पहाड़ के तीन विधानसभा क्षेत्र में छह लाख 11 हजार 665 लोगों ने मतदान किया. दाजिर्लिंग संसदीय क्षेत्र में इसबार मुख्य मुद्दा गोरखालैंड का था.

पहाड़ पर गोजमुमो ने गोरखालैंड को मुद्दा बनाकर अधिक से अधिक वोट हासिल करने की कोशिश की थी जबकि दूसरी तरफ तृणमूल कांग्रेस ने बंगाल विभाजन नहीं होगा के नारे के साथ तृणमूल कांग्रेस ने मतदाताओं को आकर्षित करने की कोशिश की थी. गोजमुमो नेताओं को यह डर सता रहा है कि हो सकता है बंगाल विभाजन नहीं होने के नाम पर समतल के मतदाताओं ने अधिक वोट दिया है. पहाड़ पर ऐसे भी वोटिंग कम हुई है और उसमें भी निर्दलीय उम्मीदवार महेंद्र पी लामा द्वारा काफी वोट ले जाने की उम्मीद जाहिर की जा रही है.

स्वाभाविक तौर पर गोजमुमो के प्रमुख नेता विमल गुरुंग, रोशन गिरी आदि इसको लेकर चिंतित है. समझा यह जा रहा है कि यहां मुख्य मुकाबला भी भाजपा और तृणमूल के बीच ही है. यदि गोजमुमो समर्थित भाजपा उम्मीदवार एसएस अहलुवालिया जीत होती है तो यह बिमल गुरूंग के लिए राहत की खबर होगी. यदि ऐसा नहीं हुआ तो एक बार फिर से पहाड़ अशांत हो सकता है.

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