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सपा में टूट, फायदे में बीजेपी या बसपा ?

समाजवादी पार्टी में अंतर्कलह चरम पर है. आज तेजी से बदलते घटनाक्रम के बीच अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव समेत चार मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया. उधर सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के आदेश पर शिवपाल ने वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव को पार्टी की सदस्यता से छह सालों के लिए निष्कासित कर दिया […]

समाजवादी पार्टी में अंतर्कलह चरम पर है. आज तेजी से बदलते घटनाक्रम के बीच अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव समेत चार मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया. उधर सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के आदेश पर शिवपाल ने वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव को पार्टी की सदस्यता से छह सालों के लिए निष्कासित कर दिया है.

शिवपाल ने रामगोपाल यादव पर बीजेपी से सांठगांंठ का आरोप लगाया है. रामगोपाल यादव,अखिलेश यादव के साथ हैं तो मुलायम खेमे में शिवपाल. इस लिहाज से देखा जाये तो समाजवादी पार्टी में फिलहाल दो गुट बन चुके हैं.इस उठापटक से सपा कार्यकर्ता हैरान हैं.मुलायम परिवार में हुए इस घमासान के बाद यूपी विधानसभा चुनाव में राजनीतिक समीकरण बदलने की संभावना बढ़ गयी है. लेकिन अब भी यह सवाल कायम है कि इस बदली हुई परिस्थितियों का फायदा किस पार्टी को पहुंचेगी. कांग्रेस , भारतीय जनता पार्टी या बहुजन समाजवादी पार्टी को?

समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में ओबीसी वोटों पर पकड़ रखती है. अगर समाजवादी पार्टी टूटती है तो इसका फायदा बीजेपी को हो सकती है. खासतौर से सपा की ओबीसी वोटों पर बीजेपी सेंध लगा सकती है. पिछली विधानसभा चुनाव में सपा को मुसलिम वोट हासिल हुए थे. अगर सपा पार्टी टूटकर अलग हुई. इस बार सपा की स्थिति कमजोर है. मुसलिम वोट मायावती के झोली में जाने की संभावना बढ़ जायेगी. एक खेमे में मुलायम सिंह यादव होंगे वहीं दूसरी खेमे में अखिलेश यादव होंगे. ऐसी परिस्थिति में सपा के कोर वोटर भ्रमित हो जायेंगे. मुसलिम वोट बसपा की झोली में जा सकते हैं.

क्या विधानसभा चुनाव के पहले सपा संभल पायेगी

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले समाजवादी पार्टी में कलह खत्म होने की संभावना लगभग समाप्त हो चुकी है. पिछले तीन महीनों से चले घमासान के बाद पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल गिर चुका है. यहीं नहीं कुछ कार्यकर्ता मुलायम और शिवपाल के साथ हैं वहीं अखिलेश के खेमे में भी कार्यकर्ता नारेबाजी कर रहे हैं.अगर चुनाव तक यही हालत बनी रही तो अखिलेश के लिए दुबारा मुख्यमंत्री बनना टेढ़ी खीर साबित होगी. केंद्र की राजनीति में मुलायम सिंह की भूमिका बेहद सीमित होगी.

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