पंकज कुमार पाठक
चंदौली : सपा- बसपा और कांग्रेस से तो पहले ही भरोसा उठ गया था. हमें भाजपा से उम्मीद थी कि वह गरीबों के लिए काम करेगी. इस सरकार ने भी हमारी उम्मीदें तोड़ दी. अब हम भरोसा करें भी, तो किस पर ? हम 15 सालों से सड़क किनारे रह रहे हैं किसी को हमारी चिंता नहीं है. सरकार बदलती है लेकिन हमारे हालात नहीं बदलते. विनोद एक पुरानी सी खराब ट्रक में गाय के लिए लाया गया चारा एक तरफ रख रहे थे और उनका बच्चा इसी ट्रक में खेल रहा था. ट्रक के ठीक नीचे चक्के के पास एक चारपाई लगी थी. मैं जब चारपाई की तरफ देखने लगा तो जवाब मिला, हम यहीं सोते हैं इस ट्रक के नीचे, मैंने चंदौली के विकास पर सवाल किया, तो उन्होंने वही जवाब दिया. आप विकास पर सवाल पूछने भी किससे आये हैं, हमारी हालत तो देख रहे हैं. मेरी और विनोद की यह बातचीत चंदौली में पुलिस लाइन के सामने ही दलितों की एक छोटी सी बस्ती में हो रही थी. प्लास्टिक और बोरे की मदद से यहां 4 या पांच घर बनें हैं….
सफाई कर्मचारियों के पास ना तो शौचालय है ना बिजली पानी
इस इलाके में सिर्फ 4 परिवार हैं लेकिन यहां एक परिवार में 8 से 10 सदस्य हैं. बरसात में इनके घरों में पानी भर आता है. यह परिवार सड़क किनारे कुछ सालों या महीनों से नहीं रह रहा यहां इनलोगों ने 15 साल से ज्यादा का वक्त बिता दिया. पीने के लिए पानी है, ना बिजली और ना ही शौचालय. चंदौली के वार्ड नंबर 8 में केदवई नगर दलितों की एक बड़ी बस्ती है. यहां दलित ज्यादातर सफाई कर्मचारी हैं, ठेके पर सफाई का काम करते हैं या नगर निगम में हैं. केदवई नगर में हालात फिर भी ठीक हैं यहां 100 से ज्यादा घर होंगे लेकिन चंदौली में मुख्य सड़क के पास इन चार परिवारों की हालात खराब है.
सफाई करते हैं ना रोटी का ठिकाना है ना मकान का
विनोद बताते हैं कि हम मूल रूप से काशी के रहने वाले हैं. पापा की जब नौकरी लगी तो हमारा परिवार यहां आ गया. पापा की सरकारी नौकरी थी, तो उन्होंने घर बनाने का सोचा और दलात को पैसे दे दिये. दलाल ने सारे पैसे ठग लिये. हम सड़क पर आ गये. अब पापा रिटायर्ड हैं, हमारे पास कोई बड़ा काम नहीं है मैं पुलिस लाइन में स्वीपर का काम करता हूं. पैसे है नहीं कि घर बनाये, 15 सालों से सड़क किनारे इसी झुग्गी में जीवन बिता रहे हैं. इसी बस्ती में रह रहे राजेन्द्र कहते हैं, अब आप आये हैं, आपसे पहले भी बहुत सारे लोग आये, हमें लगा कि चुनाव है, हमारा कुछ भला हो जायेगा लेकिन नहीं हुआ. मैं भी पुलिस लाइन में काम करता हूं. महीने का पांच हजार रुपया मिलता है वो भी समय से नहीं. कई महीने का वेतन अटका रहता है, घर चलाना मुश्किल हो जाता है. आप देख तो रहे हैं हमारे पास ना, तो घर है और ना ही रोटी की कोई व्यवस्था है.
हमारा भी सपना है कि हमारे बच्चे पढ़ें
इस बस्ती में रहने वाले जोगिन्दर कहते हैं. इस देश में स्वच्छता को लेकर इतना बड़ा जनआंदोलन हुआ. क्या नाले, गली, आफिस की सफाई में साधारण लोग हैं. हमारे ही लोग काम करते हैं. हम इतने सालों से चंदौली के नगर निगम, सरकारी दफ्तरों में काम कर रहे हैं, क्या हम इतना भी अधिकार नहीं कि हम अपने बच्चों को पढ़ा सकें. हमें पांच हजार रुपये मिलते हैं. महीने के तीन हजार रुपये तो बच्चों के दुध में खर्च हो जाता है. अब आप ही बताइये घर कैसे चलेगा, बच्चों की पढ़ाई कैसे होगी. हम नहीं पढ़े तो हमें यह काम करना पड़ा क्या हमारे बच्चों को भी पढ़ने का अधिकार नहीं है. हमारा भी सपना है कि वह अच्छे स्कूल में पढ़ें अफसर बनें घर में रोटी नहीं होगी तो पढ़ाई का खर्च कहां से आयेगा.