देहरादून: करीब 18 दिन पहले हरीश रावत की अगुवाई में गठित उत्तराखंड की नई सरकार के खिलाफ मुख्य विपक्षी भाजपा द्वारा राज्य विधानसभा में पेश अविश्वास प्रस्ताव आज गिर गया.लगभग छह घंटे लंबी बहस के बाद प्रस्ताव पर गोपनीय मतदान किया गया जिसमें प्रस्ताव के विरोध में 40 और उसके पक्ष में 29 मत पडे. 70-सदस्यीय विधानसभा में सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी के 33 विधायक हैं, जबकि उसे सात सदस्यों वाले प्रगतिशील लोकतांत्रिक मोर्चा का समर्थन प्राप्त है.
विपक्षी भाजपा के 30 विधायक हैं, जबकि उसके रुद्रपुर से विधायक राजकुमार ठुकराल एक मामले में फरार चलने के कारण सदन में मौजूद नहीं थे. इससे पहले, मुख्यमंत्री रावत ने प्रस्ताव का जबाव देते हुए उसके औचित्य पर ही सवालिया निशान लगाया और कहा कि संसदीय लोकतंत्र में अविश्वास प्रस्ताव विपक्ष का आखिरी हथियार होता है जिसे बहुत जरुरी होने पर ही उपयोग किया जाना चाहिये.
उन्होंने कहा, ‘‘मैं यह समझ नहीं पा रहा हूं कि केवल एक पखवाडे में हमने क्या गलत कर दिया. मैंने या मेरी सरकार ने ऐसी क्या गलती कर दी जिसके कारण विपक्ष को हमारे खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाना पड़ा.’’ गत एक फरवरी को प्रदेश की बागडोर संभालने के बाद से अपनी सरकार द्वारा किये गये कार्यों का ब्यौरा देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि इतने कम समय में उनकी कैबिनेट ने 102 निर्णय लिये हैं और 800 शासनादेश जारी किये गये हैं.
कैबिनेट में एकता न होने और महत्वपूर्ण मंत्रलयों के लिये उनके बीच मची आपसी होड़ के कारण विभागों का बंटवारा न हो पाने के विपक्ष के आरोप का जबाव देते हुए रावत ने पूछा कि क्या ऐसी स्थिति में इतने कम समय में कोई कैबिनेट इतने सारे निर्णय ले सकती है.
रावत ने पिछले साल आयी प्राकृतिक आपदा के समय पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा द्वारा उठाये गये कदमों के लिये उनकी तारीफ की और कहा कि उन्होंने भीषण त्रसदी की भयावहता को देखते हुए एक ‘सुपर ह्यूमन’ की तरह कार्य किया जहां करीब एक लाख 20 हजार लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला गया.
हालांकि उन्होंने कहा, ‘‘राज्य में आपदा प्रबंधन के मोर्चे पर अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है लेकिन यह कहना गलत है कि हमने कोई शुरुआत नहीं की है. एनडीआरएफ की तर्ज पर राज्य में एसडीआरएफ का गठन किया जा चुका है और आपदा की दृष्टि से संवेदनशील स्थानों पर उसकी तैनाती की जायेगी.’’ इससे पहले, आज सुबह प्रस्ताव को रखे जाने के मसले पर भाजपा और सरकार के बीच तीखी नोंकझोंक हुई और सदन में शोर शराबे के बीच कार्यवाही को करीब एक घंटा स्थगित भी करना पडा. लेकिन सदन के दोबारा शुरु होते ही अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने कल भाजपा को दिये अपने आश्वासन के तहत उसे प्रस्ताव पर बोलने की मंजूरी दे दी.
प्रस्ताव रखते हुए विपक्ष के नेता अजय भट्ट ने कहा कि करीब 18 दिन पहले प्रदेश में मुख्यमंत्री हरीश रावत के नेत्त्व में बनी सरकार सदन, जनता और अपने मंत्रिपरिषद का विश्वास खो चुकी है और अब इसे एक क्षण भी सत्ता में बने रहने का हक नहीं रह गया है.विभागों के बंटवारे में हो रही देरी को अभूतपूर्व बताते हुए भट्ट ने कहा कि मंत्रिपरिषद के सदस्यों को मंत्रलय देने का काम उसके गठन के अमूमन दो तीन दिन के अंदर हो जाता है लेकिन प्रदेश के मुख्यमंत्री अब तक सभी विभागों को खुद अकेले ही संभाले बैठे हैं.
उन्होंने कहा, ‘‘सरकार बनने के 18 दिन बाद भी विभागों का बंटवारा न हो पाना अविश्वास का परिणाम है. मंत्रियों में रार की वजह से मंत्रिपरिषद में भी आपसी विश्वास नहीं है और ऐसे में प्रदेश का विकास कैसे होगा.’’ उन्होंने कहा, ‘‘अगर वर्तमान मुख्यमंत्री को अकेले ही काम करना था तो मंत्रिमंडल के गठन की जरुरत ही क्या थी. इस संबंध में उन्होंने कहा कि खुद मंत्री भी काम न होने की बात कहने लगे हैं जिससे साफ है कि सरकार में सब कुछ ठीक नहीं है.’’ भट्ट ने यह भी आरोप लगाया कि अब भी सत्ताधारी पार्टी में गुटीय संघर्ष जारी है और सरकार का चेहरा बदलने से उसमें कोई कमी नहीं आयी है.
उन्होंने कहा कि दो साल पहले कांग्रेस की सरकार बनने के समय से ही उसने पहले 10 करोड़ रुपये देकर एक विधायक का ईमान डुलाया और फिर जमीनों की खरीद फरोख्त से लेकर अन्य कामों में भ्रष्टाचार के रिकार्ड तोड़ दिये.