लखनऊ : बुनकरों के उत्थान के लिये सार्थक पहल करने पर अमेरिका के प्रतिष्ठित ग्लोबल सिटिजन फेस्टिवल में सम्मानित उत्तर प्रदेश की बानो फातिमा का मानना है कि सिर्फ सियासी वादों से नहीं बल्कि उन पर अमल से ही बुनकरों की समस्याएं खत्म हो सकेंगी.
बानो ने टेलीफोन परकहा कि देश में बुनकरों के सामने सामाजिक, आर्थिक तथा लैंगिक स्तर के साथ-साथ स्वास्थ्य के मोर्चे पर भी अनेक चुनौतियां हैं. हालात के मद्देनजर डर इस बात का है कि कहीं उनकी कला खत्म न हो जाए. बानो का पैतृक ग्राम बाराबंकी का बड़ागांव है और उन्होंने इसी गांव से बुनकरों के उत्थान के लिये काम शुरु किया था. उन्हें हाल में न्यूयार्क के प्रतिष्ठित ग्लोबल सिटिजन फेस्टिवल में एचपी लाइफ एंटरप्रिन्योरशिप अवार्ड से सम्मानित किया गया है.
बानो का कहना है कि बुनकर आर्थिक मोर्चे पर कड़े संघर्ष के दौर से गुजर रहे हैं. ज्यादातर बुनकर असंगठित क्षेत्र के हैं और उत्पादन तथा विपणन की नई तकनीक से नावाकिफ होने और इसके लिये सरकार से भी कोई सार्थक मदद नहीं मिल पाने के कारण उन्हें पावरलूम सेक्टर से तगड़ी प्रतिस्पर्धा मिल रही है. गरीबी की वजह से बुनकरों का एक बड़ा तबका अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाता, जिसकी वजह से उनकी दुश्वारियां पीढ़ी-दर-पीढ़ी बरकरार रहती हैं. उन्होंने बताया कि बुनकर बिरादरी दलालों के हाथों जबर्दस्त शोषण का शिकार है. बुनकरों को एक चादर बुनने के लिये बमुश्किल 25 रुपए का मेहनताना दिया जाता है. साथ ही घंटों तक झुककर काम करने के कारण उन्हें रीढ़ की हड्डी में दर्द की समस्या भी होती है. इन सब कारणों से बुनाई के काम में लगे लोगों की नई पीढ़ी अब इस कारोबार से कतराने लगी है.
बुनकरों के उत्थान के लिये सुझाव सम्बन्धी सवाल पर बानो ने कहा कि इन कामगारों को बाजार की जरुरतों के बारे में बताने, बाजार तक पहुंचाने और तकनीकी जानकारी से लैस करने की सख्त जरुरत है. उनका मानना है कि स्वयं सहायता समूहों के जरिये उनकी मदद की जा सकती है.
ससेक्स यूनिवर्सिटी में ‘इंटरनेशनल डेवलपमेंट’ की पढ़ाई कर रहीं इस 24 वर्षीय छात्र ने बताया कि समुदाय की महिलाओं के नेतृत्व में स्वयं सहायता समूहों का गठन होने से बुनकरों का सामाजिक और आर्थिक उत्थान करने में खासी मदद मिल सकती है.
बानो ने बड़ागांव में करीब तीन साल पहले बुनकरों की हालत सुधारने के लिये अपनी बहन नबीला की मदद से ‘वीवर्स हट’ नामक पहल शुरु की थी. इसके तहत उन्होंने बुनकरों को अपने उत्पाद को खुद बाजार में बेचने के लिये दिल्ली समेत विभिन्न शहरी केंद्रों में प्रदर्शनियां लगवायीं. उन्हें नई तकनीक तथा बाजार की जानकारी उपलब्ध करायी. इसके अलावा उत्पाद आपूर्ति के बड़े आर्डर हासिल करने की जानकारी भी दी.
उन्होंने बताया कि बुनकरों के सामाजिक उत्थान के लिये समुदाय की महिलाओं से बातचीत करके उनकी समस्याओं के समाधान की कोशिश की गयी. बानो ‘वीवर्स हट’ पहल के तहत बाराबंकी के कुछ और गांवों को भी जोड़ना चाहती हैं और वह बुनकर समुदाय की लड़कियों के लिये छात्रवृत्ति शुरु करने की योजना बना रही हैं.