– मनोज कुमार –
चार साल में नहीं मिला एक भी बाल श्रमिक, टास्क फोर्स भी कर रही खानापूरी
चाईबासा : पश्चिमी सिंहभूम में सुदूर गांव से लेकर शहरी इलाकों तक रोजाना बाल श्रमिकों को पिसते हुए देखा जा सकता है. यहां बाल श्रम के खिलाफ चलाये जाने वाली योजनाओं को हाल बुरा है. अगर सरकारी आकड़ों में देखा जाये तो जिला में बाल मजदूर नहीं के बराबर है.
14 साल के कम उम्र के बच्चों में बाल श्रम के मामले में सख्ती अथवा कानूनी कार्रवाई का आलम यह है कि पिछले चार साल में बाल श्रम अधिनियम के तहत एक भी मामला जिला के किसी भी थाने में दर्ज नहीं किया गया है.
जबकि हकीकत प्रतिदिन सुदूर गांव की कौन कहें, शहरी इलाकों में ही दिख जाती है. अधिकांश दुकानों-होटलों में 14 साल से कम उम्र के बच्चे काम करते हुए देखे जा सकते है. भवन निर्माण से लेकर ईंट निर्माण, बाइक मरम्मत, गैरेज आदि में बाल श्रमिकों का उपयोग धल्ले से किया जा रहा है.
टास्क फोर्स नहीं हो सका प्रभावी
वर्ष 2012 में जिला में टास्क फोर्स का गठन किया गया है. दिलचस्प है कि गठन के बाद से टास्क फोर्स द्वारा क्या कार्रवाई बाल श्रम उन्मूलन की दिशा में की गयी इसका ब्योरा तक श्रम अधीक्षक कार्यालय में उपलब्ध नहीं है. उपायुक्त की अध्यक्षता वाले टास्क फोर्स द्वारा कभी छापेमारी ही नहीं की गयी है. श्रम अधीक्षक कार्यालय के अनुसार बीते चार साल में बालश्रम में किसी पर प्राथमिकी दर्ज नहीं हुई है.