चक्रधरपुर : इनसान को उसका एखलाक (व्यवहार) बुलंदियों तक पहुंचाता है. हजरत अनस (रजि) फरमाते हैं कि मैंने रसूल अल्लाह की दस साल तक खिदमत की. आप (स) ने कभी न डांटा न झिड़का. कभी मिट्टी का प्याला टूट जाता पर कभी आप (स) के चेहर ए अनवर पर शिकन तक न आता.
हजरत अनस (रिज) बयान करते हैं कि रसूल अल्लाह (स.) मुझे किसी काम के लिए भेजे और मैं बच्चों के साथ खेलने लगा, देर हुई और रसूल अकरम खुद पहुंच गये. कहा अनस अभी तक काम पर नहीं गये हो, अनस (रजि) ने कहा अब जाता हूं, लेकिन रसूल अकरम (स.) के चेहरे पर शिकन तक नहीं आयी. इस तरह के एखलाक की जरूरत आज मुसलमानों को है. एखलाक ऐसा हो, जिससे इस्लाम को फायदा पहुंचे.
मसजिद व इमाम का परिचय
अहले हदीस मसजिद जिसे छोटी मसजिद के नाम से भी जाना जाता है. तकरीबन 110 साल पहले इस मसजिद का निर्माण चक्रधरपुर के वार्ड- 6 में हुई थी. कहने को तो यह अहले हदीस मसजिद है, लेकिन सभी अकीदा व जमाअत के लोग भी यहां नमाजें अदा करते हैं. इसकी एक अहम वजह यह है कि यहां किसी मसलक के खिलाफ तकरीर नहीं होती. दो साल पहले मसजिद की पुरानी इमारत को शहीद कर नयी इमारत बनाने का काम शुरू हुआ था.
पिछले साल पहले तल्ला का काम पूरा हो चुका. इस मसजिद में एक साथ करीब एक हजार लोग नमाज अदा कर सकते हैं. इस मसजिद के पेश इमाम व इस लेख के लेखक मौलाना रिजवान आलम सलफी साहब हैं. पिछले 22 सालों से वह अब तक इस मसजिद में खिदमत का काम अंजाम दे रहे हैं.
उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह खुद मसजिद की सफाई करते हैं, चंदा इकट्ठा करते हैं, साल में केवल एक माह की छुट्टी पर घर जाते हैं, नमाज भी खुद पढ़ाते हैं और बच्चों को भी दीन की शिक्षा देते हैं. उनके साथ कोई मौअज्जीन भी नहीं है. वनमैन आर्मी की तरह पुरी मसजिद के काम को वह खुद अंजाम देते हैं.