11.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

…तो बदल सकती है सारंडा के लोगों की तस्वीर

सरकारी पहल से सुधर सकती है वनवासियों की आर्थिक स्थिति वनोपजों से उपलब्ध हो सकते हैं बेहतर रोजगार के अवसर किरीबुरू : एशिया प्रसिद्ध सारंडा जंगल करीब 850 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है. इस सघन वन क्षेत्र में सैकड़ों प्रजाति की वनौषधियों के अलावा,फल, कंद-मूल एवं अन्य वनोत्पाद उपलब्ध हैं. इसके बावजूद यहां के […]

सरकारी पहल से सुधर सकती है वनवासियों की आर्थिक स्थिति

वनोपजों से उपलब्ध हो सकते हैं बेहतर रोजगार के अवसर
किरीबुरू : एशिया प्रसिद्ध सारंडा जंगल करीब 850 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है. इस सघन वन क्षेत्र में सैकड़ों प्रजाति की वनौषधियों के अलावा,फल, कंद-मूल एवं अन्य वनोत्पाद उपलब्ध हैं. इसके बावजूद यहां के वन वासियों की आर्थिक उन्नति नहीं हो पा रही है, उनके जीवन स्तर में सुधार नहीं हो रहा है और उनके बच्चे कुपोषण का शिकार हो हैं. इसका एकमात्र कारण राज्य सरकार व वन विभाग की उपेक्षा है. सारंडा के ग्रामीणों को वन आधारित रोजगार से जोड़ने का कभी प्रयास ही नहीं किया गया.
बताते चलें कि सारंडा जंगल में प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये मूल्य के वनोत्पाद उचित बाजार नहीं मिलने या रोजगार मूलक प्रशिक्षण या जानकारी नहीं होने के कारण नष्ट हो जा रहे हैं. उदाहरण के तौर पर आम, कटहल, इमली, महुआ, चिरौंजी, बेर, तेंदू व साल पत्ता, लाह, धूना, महुआ, साल बीज, शहद आदि अनेक ऐसे वनोत्पाद हैं, जिनके लिए वन विभाग सारंडा के विभिन्न क्षेत्रों में क्रय-विक्रय केंद्र खोल दे, तो न सिर्फ सरकार को राजस्व मिलेगा, बल्कि सारंडा के ग्रामीणों को रोजगार भी मिल जायेगा. यही नहीं, इन वनोत्पादों से अन्य उत्पाद बनाने का काम भी वे कर सकते हैं, जिससे कुटीर उद्योग को बढ़ावा मिलेगा. इन उत्पादों की ब्रांडिंग कर सरकार बिक्री कर सकती है तथा सारंडा के हजारों लोगों को रोजगार भी मिल जायेगा. इससे वनों की कटाई भी रुकेगी.
ग्रामीण कौड़ियों के भाव बेच देते हैं चिरौंजी : सारंडा पीढ़ के मानकी लागुड़ा देवगम ने बताया कि सारंडा की चिरौंजी को स्थानीय व बाहरी व्यापारी ग्रामीणों से एक डब्बा चिरौंजी के बदले 14-15 डब्बा घटिया किस्म का चावल देकर खरीदते हैं और उसी चिरौंजी को सात सौ से एक हजार रुपये किलो तक बेचते हैं.
यही हाल महुआ, इमली, लाह, धूना, साल व तेंदू पता आदि वनोत्पादों का भी हो रहा है, जिसका उचित मूल्य सारंडा के लोगों को नहीं मिल रहा है. यह ग्रामीणों के साथ ही सरकार के लिए भी दुर्भाग्य की बात है. उन्होंने कहा कि सरकार अथवा वन विभाग सारंडा के थलकोबाद, दीघा, मनोहरपुर, छोटानागरा, रोआम आदि स्थानों पर इन वनोत्पादों की खरीद के लिए सरकारी दुकानें खोले एवं उक्त वनोत्पादों की दर निर्धारित कर दे तो सारंडा के लोगों की आर्थिक स्थिति सुधर जायेगी.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें