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सरकार द्वारा घोषित स्थानीय नीति के विरोध में फरसाबेड़ा स्थित सरना बगीचा में महासंघर्ष उलगुलान जन सभा का आयोजन किया गया. आदिवासी-मूलवासी संघर्ष समिति की ओर से आयोजित इस सभा में बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए़ कहा: 1932 के खतियान के आधार पर ही स्थानीय नीति का निर्धारण किया जाना चाहिए़ सिमडेगा : फरसाबेड़ा […]

सरकार द्वारा घोषित स्थानीय नीति के विरोध में फरसाबेड़ा स्थित सरना बगीचा में महासंघर्ष उलगुलान जन सभा का आयोजन किया गया. आदिवासी-मूलवासी संघर्ष समिति की ओर से आयोजित इस सभा में बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए़ कहा: 1932 के खतियान के आधार पर ही स्थानीय नीति का निर्धारण किया जाना चाहिए़
सिमडेगा : फरसाबेड़ा स्थित सरना बगीचा में आदिवासी-मूलवासी संघर्ष समिति के तत्वावधान में महासंघर्ष उलगुलान जन सभा का आयोजन किया गया. जनसभा में हजारों की संख्या में ग्रामीणों ने भाग लिया. पूरा बगीचा परिसर लोगों से खचाखच भरा था. सुबह नौ बजे से कार्यक्रम आयोजित था, किंतु दिन के 12 बजे तक जिले के विभिन्न क्षेत्रों से ग्रामीणों के पहुंचने का सिलसिला जारी था.
कार्यक्रम में पूर्व विधायक देवेंद्र चांपिया, मानवधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी, लेखक एवं मानवधिकार कार्यकर्ता ग्लेडसन डुंगडुंग, पूर्व विधायक मंगल सिंह वोबोंगा, आदिवासी समन्वय समिति के सुशील बारला, संघर्ष मोरचा जमशेदपुर के नरेश मुरमू, पूर्व प्रधान महालेखाकार बेंजामिन लकड़ा, सिमडेगा धर्म प्रांत के बिशप विसेंट बरवा मुुख्य रूप से उपस्थित थे. आदिवासी-मूलवासी संघ समिति के संयोजक सह पूर्व विधायक नियेल तिर्की ने अतिथियों का परिचय कराया. सभी अतिथियों को बुके देकर सम्मानित किया गया. महिला मंडली द्वारा स्वागत गीत प्रस्तुत किया गया. कार्यक्रम के दौरान रघुवर सरकार द्वारा परिभाषित स्थानीय नीति का विरोध किया गया. स्थानीय नीति के खिलाफ लोगों ने जम कर नारेबाजी की. पूर्व विधायक देवेंद्र चांपिया ने अपने संबोधन में कहा कि आदिवासी व मूलवासी को एकजुट होने की जरूरत है, तभी उनका अधिकार मिलेगा.
कहा : झारखंड की रघुवर सरकार ने स्थानीय नीति को आदिवासी-मूलवासी पर जबरन थोपने का काम किया है, जिसे बरदाश्त नहीं किया जा सकता है. आदिवासी-मूलवासी को अपने अधिकार के लिए आगे आना होगा तथा अपने अधिकार के लिए संघर्ष करना होगा. आदिवासी मूलवासी संघर्ष समिति के संयोजक नियेल तिर्की ने कहा कि 1932 के खतियान के आधार पर ही स्थानीय नीति का निर्धारण किया जाना चाहिए.
सरकार ने जो स्थानीय नीति बनायी है, वह आदिवासी विरोधी है. इसे झारखंड की आदिवासी कभी बरदाश्त नहीं करेंगे़ हमें स्थानीय नीति के विरोध में लंबी लड़ाई लड़नी होगी. जरूरत पड़ी, तो हम दिल्ली तक जायेंगे. इस मौके पर अन्य वक्ताओं ने भी अपने विचार व्यक्त किये. कार्यक्रम का संचालन नील जस्टीन बेक व मो मोइनुद्दीन ने संयुक्त रूप से किया.

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