चक्रधरपुर : हाजी मो अली साहब व मो सईद अहमद साहब ने बताया कि सिमिदीरी में 1964 से पहले मदरसा में नमाज अदा की जाती थी. जामा मसजिद सिमिदीरी की शुरुआत 1964 में हुई थी.
पहले लकड़ी और पुआल की मसजिद बना कर नमाज पढ़ी जाती थी. इसके बाद मसजिद तामीर करने की बात हुई. इसके लिए पैसों की जरुरत थी. सिमिदीरी गांव में जगह–जगह नूर नामा पढ़ा जाता और पैसे इकट्ठे किये जाते थे. 1968 में पक्की मसजिद बनाने के लिए बुनियाद रखी गयी.
तीन साल के बाद मसजिद बन कर तैयार हुई. मदरसा में शिक्षक का काम करने वाले गया के मास्टर मो मुश्ताक साहब शुरू में इमामत करते थे. उस समय रज्जब मौलवी साहब सदर और हाजी लियाकत हुसैन सचिव हुआ करते थे. पीर साहब मौलाना शाह अब्दुल हक काठियावारी (आजमगढ़) ने सिमिदीरी की मसजिद बनवाने में काफी मेहनत की थी.
नूर मोहम्मद, नसीरूद्दीन, मो यासीन आदि उस जमाने में मसजिद तामीर का काम करवा रहे थे. चक्रधरपुर की जामा मसजिद उस जमाने में जितनी जमीन में फैली हुई थी, उसी के बराबर जमीन में सिमिदीरी की जामा मसजिद की तामीर की गयी थी.
सिमिदीरी की मसजिद का बरामदा 2006 में शहीद कर नये सिरे से बनवाया गया. सिमिदीरी में लोग अपने लगन से मसजिद का संचालन एक समिति के माध्यम से करवा रहे हैं.