खरसावां : भक्त धन, भक्त ही जीवन, भक्त के लिए प्रभु छोड़ेंगे रत्न सिंहासन.. जी हां अमूमन देखा जाता है कि अपने आराध्य देव के दर्शन को मंदिरों में भक्त पहुंचते हैं. लेकिन रथ यात्रा एक ऐसा त्योहार है जब भक्तों को दर्शन देने के लिए प्रभु जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलभद्र व बहन सुभद्रा के साथ श्रीमंदिर के रत्न सिंहासन को छोड़ बाहर निकलते हैं. आषाढ़ शुक्ल के द्वितीया तिथि को आयोजित होने वाली रथ यात्रा में भक्त और प्रभु के मिलन की यह बेला काफी फलदायी मानी जाती है. मौसी घर में एक सप्ताह रहने के बाद पुन: प्रभु जगन्नाथ श्रीमंदिर वापस लौटते हैं.
उस समय दूसरी बार प्रभु अपने भक्तों को खुले रूप से दर्शन देते हैं. पुराणों के अनुसार वर्तमान के कलयुग में श्री जगन्नाथ भगवान श्री हरि विष्णु के अवतार हैं. प्रभु जगन्नाथ के दर्शन को मंदिरों में साल भर भक्तों का तांता लगा रहता है, परंतु रथ यात्र उत्सव ही एक मात्र ऐसा त्योहार है, जब भक्तों को दर्शन देने के लिये प्रभु जगन्नाथ मंदिर से बाहर निकलते हैं. कहा जाता है कि रथ यत्र में प्रभु के दर्शन मात्र से ही सारे पाप दूर हो जाते हैं. रथ यात्र उत्सव के दौरान मौसीबाड़ी में प्रभु जगन्नाथ का भव्य श्रृंगार होता है. रथ यात्रा का प्रसंग स्कंदपुराण, पद्मपुराण, पुरुषोत्तम माहात्म्य, बृहद्धागवतामृत में भी वर्णित है. शास्त्रों और पुराणों में भी रथ यात्रा की महता को स्वीकार किया गया है. स्कंद पुराण में स्पष्ट कहा गया है कि रथ यात्र में जो व्यक्ति श्री जगन्नाथ जी के नाम का कीर्तन करता हुआ गुंडिचा मंदिर तक जाता है, वह सीधे भगवान श्री विष्णु के उत्तम धाम को जाते हैं. जो व्यक्ति गुंडिचा मंडप में रथ पर विराजमान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा देवी के दर्शन करते हैं उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है.