साहिबगंज : विज्ञान की माने तो मनोचिकित्सकीय क्षेत्र में किसी भी मानसिक रोगी का इलाज संभव है. अगर समय रहते इलाज करा दिया जाय तो 99 प्रतिशत मामले में पूरी तरह से सुधार की गुंजाइश होती है. मगर शहरवासी अपने में इतने मशगुल हैं कि दूसरों की फिक्र ही नहीं कर पा रहे. एक तो यहां ना तो ढंग का कोई मनोचिकित्सक है और ना ही यहां बने अस्पताल में डॉक्टर को ही पदस्थापित किया गया है. यहां के संपन्न लोगों को किसी प्रकार की कोई मानसिक परेशानी होती है,
तो वे अपना इलाज बाहर जाकर करा लेते हैं और वे स्वस्थ हो उठते हैं. मगर जरा उनके बारे में सोचिये जिनका कोई नहीं है. या फिर किसी कारणवश घर से निकाल दिये गये हैं, या फिर मानसिक स्थिति ठीक नहीं रहने की वजह से घर छोड़ कर निकल गये हैं. उनके बारे में कोई सोचने वाला नहीं है. ऐसे ही शहर में तीन विक्षिप्त भटक रहे हैं.
वृद्धा आश्रम की नहीं हुई शुरुआत
साहिबगंज झरना तट पर बने वृद्ध आश्रम का उदघाटन भी किया गया है लेकिन कोई एनजीओ द्वारा अभी तक लिया नहीं गया है. माह के अंत तक टेंडर के माध्यम से एनजीओ को दिया जायेगा. बहरहाल विक्षिप्त महिलाओं को काफी दिक्कत हो रही है.
… और मुंह फेर चले जाते हैं लोग
आजकल शहर में कुछ ऐसे ही लोग भटकते देखे जा रहे हैं. जिसकी सुधि लेने वाला कोई नहीं है. लोग आते हैं, देखते हैं और मुंह फेर कर चले जाते हैं. साहिबगंज की सड़कों के आसपास विगत कुछ दिनों से तीन ऐसे ही विक्षिप्त देखने को मिल रहे हैं. जिसके बारे में खोज खबर लेने वाला कोई नहीं है. ना ही उसके परिवार के लोग ही खोजबीन कर रहे हैं और ना ही शहरवासी इनके लिये आगे आ रहे हैं. दाने-दाने को मोहताज इल लोगों के समक्ष बढ़ती ठंड जिंदा जानलेवा साबित हो सकता है
नहीं बचाया जा सका था जगीरा
इससे पूर्व शहर में एक जगीरा नायक एक विक्षिप्त हुआ करता था. जीवन भर वह भटकता रहा. उसकी सुधि किसी ने नहीं ली. मानसिक स्थिति ठीक नहीं रहने के कारण शहर की सड़कों व गलियाें की खाक छानता रहा मगर इनके मदद कोई आगे नहीं आया. वहीं जब आये तो तब तक काफी देर हो चुका था. वह दुनिया को अलविदा कह चुका था. अगर समय पर जगीरा को बचाने की पहल होती तो शायद आज वह जिंदा भी होता और इलाज के बाद मानसिक रूप से स्वस्थ भी होता.
शहर के अन्यत्र स्थानों पर घुम रहे दो विक्षिप्त महिला
कहते हैं नप पदाधिकारी
विक्षिप्तों के लिये किसी प्रकार की फंड की व्यवस्था नहीं है. परंतु विशेष परिस्थिति में अन्य फंडों के माध्यम से व्यवस्था की जाती है.
– अमित प्रकाश, नप पदाधिकारी
कहते हैं सीएस
साहिबगंज सदर अस्पताल में मन: चिकित्सालय तो बना है परंतु डॉक्टर नहीं है. इसलिये यहां मरीजों को नहीं लाया जाता है. परंतु विक्षिप्तों का इलाज संभव है.
– डॉ बी मरांडी, सीएस, साहिबगंज