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झारखंड की सहिया : कोरोना काल में 42 हजार आशा कार्यकर्ताओं के कार्यों की केंद्र सरकार ने की तारीफ

Jharkhand News, sahiya of jharkhand, asha workers, covid19 : रांची/नयी दिल्ली : झारखंड में लगभग 42,000 आशा कार्यकर्ता गत मार्च से कोविड-19 से संबंधित विभिन्न गतिविधियों में सक्रिय रूप से लगी हुई हैं. हर जगह सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए एक प्रेरणा साबित हुई हैं. सरकार ने बुधवार को यह जानकारी दी.

रांची/नयी दिल्ली : झारखंड में लगभग 42,000 आशा कार्यकर्ता गत मार्च से कोविड-19 से संबंधित विभिन्न गतिविधियों में सक्रिय रूप से लगी हुई हैं. हर जगह सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए एक प्रेरणा साबित हुई हैं. सरकार ने बुधवार को यह जानकारी दी.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, झारखंड में आशा कार्यकर्ताओं ने स्वास्थ्य सेवाओं को अंतिम छोर, विशेषकर आदिवासी इलाकों में पहुंचाया है. मंत्रालय के अनुसार, आशा कार्यकर्ता मार्च, 2020 से कोविड-19 से संबंधित विभिन्न गतिविधियों में सक्रिय रूप से लगी हुई हैं.

मंत्रालय ने बताया कि आशा कार्यकर्ता कोविड-19 के निवारक उपायों के बारे में जागरूकता पैदा कर रही हैं. उन्होंने बताया कि वे लोगों को साबुन और पानी से लगातार हाथ धोने, सार्वजनिक स्थानों पर बाहर निकलते समय, खांसते और छींकते समय उचित शिष्टाचार का पालन करते हुए मास्क/फेस कवर का उपयोग करने के बारे में जागरूक कर रही है.

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बयान में कहा गया है कि वे कोविड-19 से संबंधित मामलों में संपर्क का पता लगाने में भी शामिल हैं. बोकारो जिला के तेलो गांव की कमरुन्निसा और उनके पति नूर मोहम्मद बांग्लादेश में आयोजित जमात में भाग लेने के बाद 13 मार्च, 2020 को घर लौटे थे. एयरपोर्ट पर कोविड19 जांच के बाद उन्हें गांव में घर पर कोरेंटिन में रहने की सलाह दी गयी.

स्थानीय स्तर पर सहिया के रूप में पहचानी जाने वाली गांव की मान्यताप्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता रीना देवी ने घरेलू सर्वेक्षण के दौरान कमरुन्निसा और उनके पति के बारे में पता लगाया कि वह कोरोना से संक्रमित हैं. उसने तुरंत ब्लॉक के चिकित्सा अधिकारी को इसकी सूचना दी.

रीना देवी ने पति-पत्नी को तय मानदंडों के अनुसार घर पर कोरेंटिन रहने के बारे में सारे तौर-तरीके समझाये. इसके बाद उनके स्वास्थ्य की स्थिति और स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों के बारे में नियमित रूप से जानकारी लेती रहीं. कमरुन्निसा के कोरोना पॉजिटिव पाये जाने पर उसे तुरंत बोकारो जनरल अस्पताल में भर्ती करा दिया गया.

रीना देवी ने अगले दिन दंपती के परिवार के सदस्यों को घर में कोरेंटिन में रहने में मदद करने के लिए एक मेडिकल टीम के साथ समन्वय किया. टीम ने कमरुन्निसा के घर जाकर परिवार वालों को सभी जरूरी जानकारी दी. उन्हें बताया कि किस तरह से कोरेंटिन में रहना है.

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रीना देवी ने इस तरह से कमरुन्निसा के परिवार के साथ-साथ समुदाय में जागरूकता पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. रीना देवी द्वारा समय पर की गयी कार्रवाई और लगातार प्रयासों से कमरुन्निसा के परिवार के साथ ही स्थानीय समुदाय में कोविड का संक्रमण फैलने से रोकने में काफी मदद मिली.

सहिया के नाम से जानी जाती हैं आशाकर्मी

झारखंड में ‘सहिया’ के नाम से जानी जाने वाली आशाकर्मी विशेष रूप से आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं में सहयोग करती हैं. राज्य में लगभग 42,000 सहिया हैं. इन्हें 2,260 सहिया साथियों (आशाकर्मियों), 582 ब्लॉक प्रशिक्षकों, 24 जिला सामुदायिक मोबलाइजर और एक राज्य स्तरीय सामुदायिक प्रक्रिया संसाधन केंद्र की ओर से मदद मिलती है.

कार्यक्रम की शुरुआत से ही जनजातीय और दूर-दराज के क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं पहुंचाने में सहियाओं की प्रतिबद्धता को स्वीकार किया गया है और उसे समुचित महत्व दिया गया है. मार्च, 2020 से ही सहिया कोविड-19 से संबंधित विभिन्न गतिविधियों में सक्रिय रूप से जुड़ी हुई हैं.

इनमें कोविड​​-19 के निवारक उपायों के बारे में जागरूकता पैदा करना, जैसे साबुन और पानी से लगातार हाथ धोना, सार्वजनिक स्थानों पर बाहर निकलते समय मास्क/फेस कवर का उपयोग करना, खांसी और छींकने आदि के दौरान उचित शिष्टाचार का पालन करना, कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग, लाइन लिस्टिंग जैसे नियमों का पालन करना आदि शामिल है.

गहन जन स्वास्थ्य सर्वेक्षण कराया

झारखंड ने कोविड-19 के लिए उच्च जोखिम वाली आबादी की पहचान करने के लिए 18 से 25 जून के बीच सप्ताह भर गहन जन स्वास्थ्य सर्वेक्षण (आईपीएचएस) शुरू कराया. सर्वेक्षण के पहले दिन, ग्रामीण स्तर पर और शहरों में सामुदायिक बैठकें क्षेत्र स्तर की गतिविधियों की योजना बनाने के लिए आयोजित की गयीं. इसके बाद लगातार तीन दिनों तक, हाउस-टू-हाउस सर्वे किया गया.

इस सर्वेक्षण में लगभग 42,000 सहियाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. उन्होंने स्थानीय उच्च जोखिम वाले लोगों की पहचान करने के लिए हजारों घरों का सर्वेक्षण किया. इस दौरान लोगों में एन्फ्लुएंजा जैसे संक्रमण, 40 वर्ष से अधिक की उम्र वालों में सह-रुग्ण स्थितियों, नियमित टीकाकरण से चूक गये पांच वर्ष से कम उम्र वाले बच्चों की आबादी एंटी नेटल चेकअप से चूक गयी गर्भवती महिलाओं का पता लगाया.

आइएलआइ की शिकायत वाले व्यक्तियों का परीक्षण उसी दिन सुनिश्चित किया गया. उच्च जोखिम वाले व्यक्तियों की जानकारी उप-केंद्र और ब्‍लॉक/जिला स्तर की स्वास्थ्य टीमों के साथ साझा की गयीं. सर्वेक्षण के दौरान, सहियाओं ने कई कार्य किये (जैसे कि एनएसी/पीएनसी के लिए काउंसलिंग, घर में नये जन्मे बच्चे की देखभाल, छोटे बच्चे की घर पर देखभाल, पुरानी बीमारियों के इलाज पर लगातार निगरानी रखना) सहियाओं के सहयोग के कारण विभिन्न गतिविधियों के लिए एक ही घर में कई बार जाने की आवश्यकता कम हुई.

Posted By : Mithilesh Jha

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