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झारखंड के किसानों को नहीं मिल रहा जलाशय योजना का लाभ, विभिन्न जिलों के डैमों की क्या है स्थिति, पढ़ें रिपोर्ट

राज्य की बृहद जलाशय परियोजना दशकों से अधूरी पड़ी हुई है. उचित रखरखाव के अभाव में पूरी हो चुकी जलाशय योजनाओं से भी सिंचाई के लिए खेतों तक पानी नहीं पहुंच रहा है.

झारखंड के खेत पानी के लिए तरस रहे हैं. इनकी प्यास बुझाने की सारी कोशिशें बेकार साबित हुईं. राज्य में लगभग 30 हजार हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि है. इसमें से जल संसाधन विभाग 10 हजार हेक्टेयर में ही सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने का दावा करता है. लेकिन, हकीकत यह है कि खेतों तक पानी नहीं पहुंच रहा है. कहीं नहर टूटी पड़ी है, तो कहीं डैम ही सूख रहे हैं. कहीं मेड़ क्षतिग्रस्त हैं, तो कहीं नहर में मिट्टी भर गयी है. इधर, राज्य की बृहद जलाशय परियोजना दशकों से अधूरी पड़ी हुई है. उचित रखरखाव के अभाव में पूरी हो चुकी जलाशय योजनाओं से भी सिंचाई के लिए खेतों तक पानी नहीं पहुंच रहा है. नतीजन, किसान एक फसलीय खेती करने के लिए मजबूर हैं. प्रभात खबर ने राज्य के विभिन्न जिलों के डैमों की स्थिति का जायजा लिया है. पेश है विशेष रिपोर्ट

पलामू : रैयतों ने खोला फाटक बह जाता है बटाने डैम का पानी

पलामू के छत्तरपुर और नौडीहा प्रखंड में बटाने नदी पर बना बटाने डैम का पानी बर्बाद हो रहा है. रैयतों ने डैम का फाटक खोल कर फिक्स कर दिया है. जिससे पानी रुकता नहीं है. पूरा पानी बह जाने से डैम का उद्देश्य समाप्त हो गया है. बटाने डैम के लिए 33 सौ एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया गया था. वर्ष 1972 में शुरू हुआ डैम का निर्माण 1984 में पूरा हुआ. तब केवल दो करोड़ रुपये में तैयार हुए डैम के लिए अधिग्रहित की गयी रैयतों की लगभग 2600 एकड़ भूमि के एवज में एक अरब से अधिक रुपये मुआवजा के तौर पर भुगतान किया गया. करीब 700 एकड़ भूमि का मुआवजा भुगतान अभी शेष है. रैयतों की नाराजगी का यही कारण है.

दूसरे टर्म का भुगतान आज तक है लंबित

बटाने डैम में पानी की क्षमता 76 आरएल पानी जमा करने क्षमता है. इससे झारखंड और बिहार मिलाकर लगभग 10 हजार एकड़ से अधिक भूमि पर सिंचाई की सुविधा बहाल की जा सकती है. लेकिन, डैम के गर्भ में लगाये गये दो फाटक रैयतों ने खोल दिये हैं. जिस कारण लगातार पानी का बहाव होता रहता है. रैयतों का कहना है कि वर्ष 1976-77 में एक टर्म का भुगतान किया गया था. 1984-85 में किया जाने वाला दूसरे टर्म का भुगतान आज तक लंबित है. हाल ही में 200 एकड़ भूमि का मुआवजा बांटने के लिए रैयतों को नोटिस दिया गया है.

कोडरमा : 10 साल पहले बने डैम से अब तक पटवन नहीं

वर्ष 1984-85 में कोडरमा में पंचखेरो जलाशय व केशो जलाशय का शिलान्यास किया गया था. दोनों डैम का निर्माण पांच वर्ष के अंदर पूरा करना था. वर्ष 2013-14 में पंचखेरो जलाशय का निर्माण पूरा हो गया. लेकिन अब तक किसानों को इससे पटवन की सुविधा पूर्ण रूप से नहीं मिल पायी है. डैम से निकली नहर में कई जगह लीकेज होने और पूर्ण नहीं होने के कारण इससे सिंचाई की सुविधा नहीं दी जा रही है. हालांकि, विभाग का दावा है कि इससे 500 हेक्टेयर में खेती के लिए पानी दी जा रही है. डैम निर्माण के बाद से इसकी साफ-सफाई नहीं की गयी है. इसका दायरा भी बढ़ा-घटा नहीं है. केशो जलाशय का निर्माण अब तक पूरा नहीं हुआ है. पंचखेरो डैम के अलावा कोडरमा में तिलैया डैम भी है. 1953 में बने तिलैया डैम में दामोदर घाटी निगम पनबिजली परियोजना का भी संचालन करता है. तिलैया डैम से झुमरी तिलैया शहर व कोडरमा नगर के अलावा सरमाटांड रेलवे को जलापूर्ति की जा रही है. जल्द ही कोडरमा रेलवे स्टेशन को भी जलापूर्ति की योजना है. तिलैया डैम के दायरे में भी कोई परिवर्तन नहीं है.

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चतरा : सिमटते जा रहे डैम, दुलकी जलाशय का भी रकबा कम हो रहा

चतरा में डैम सिमटते जा रहे हैं. 1967 में बना दुलकी जलाशय का रकबा लगातार कम होता जा रहा है. 500 किसानों को लाभान्वित करने की क्षमता वाले इस जलाशय का दायरा अतिक्रमण के कारण लगातार कम होता जा रहा है. प्रतापपुर प्रखंड के टंडवा गांव में 1967 में ही जयप्रकाश डैम बनाया गया था. कई बार इसका जीर्णोद्धार करने के साथ मरम्मत भी की गयी. वर्ष 2015 में अधिक पानी होने से डैम का बांध टूट गया था, जो आज तक नहीं बना. अब डैम सूखा पड़ा है. वैसे, चतरा में करीब दो दर्जन डैम हैं. 1970 में बना हैरू डैम करीब पांच एकड़ में फैला है. इस डैम से शहरी जलापूर्ति की जाती है. डैम में बरसात के दिनों में 10 फीट पानी रहता है. लेकिन धीरे-धीरे पानी घटता चला जाता है. गर्मी के दिनों में यह डैम सूख जाता है. बक्शा डैम से भी जलापूर्ति होती है. हंटरगंज, सिमरिया, प्रतापपुर व सदर प्रखंड के डैमों से किसानों को लाभ हो रहा है. वहां खेतों में सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी मिल रहा है. हिरू जलाशय (डहुरी डैम) का निर्माण 1975 में किया गया था. इस डैम से हजारों एकड़ जमीन सिंचित की जा रही है. इसमें पूरे साल पानी रहता है.

लोहरदगा : नहरों से सिंचाई के लिए पानी देने के बदले की जा रही गांव में पेयजलापूर्ति

जिले के नंदनी जलाशय से नहरों में पानी नहीं छोड़ा जा रहा है. जिस कारण किसानों को डैम का कोई लाभ नहीं मिल रहा है. लेकिन, डैम से भंडरा प्रखंड के खारू माटू तथा आकाशी के विभिन्न गांवों में पेयजलापूर्ति की जा रही है. लोहरदगा में किसानों को सिंचाई सुविधा मुहैया कराने के लिए दो डैम बनाये गये हैं. कैरो एवं भंडरा प्रखंड की सीमा पर नंदनी जलाशय और किस्को प्रखंड में खरकी पंचायत में बंजारी डैम. नंदनी जलाशय का निर्माण 1983-84 में लगभग नौ करोड़ की लागत से किया गया था. इसकी तीन नहरों में भरी मिट्टी निकालने और क्षतिग्रस्त मेड़ बनवाने पर वर्ष 2010-11 में 57 करोड़ रुपये की लागत आयी थी. इस वर्ष भी 54 करोड़ करोड़ रुपये से नहरों का पीचिंग कार्य कराया जा रहा है. उधर, किस्को प्रखंड क्षेत्र के बंजारी में किसानों को सिंचाई की सुविधा देने के लिए वर्ष 2002-03 में डैम बनाया गया था. लेकिन इस डैम से आज तक न तो नहर में पानी छोड़ा गया और न ही किसानों को इसका कोई लाभ हुआ. पहाड़ों से उतरनेवाला बारिश का पानी बरसात में डैम भर जाता है. इससे डटमा, बानपुर, बंजारी, सेमरडीह, हेसापीढ़ी सहित अन्य गांवों को सिंचाई सुविधा दी जा सकती है.

गढ़वा : सुखाड़ के कारण डैमों से सिंचाई के लिए नहीं छोड़ा जा सका पानी

गढ़वा में 11 डैम हैं. सभी डैम 1970 से 1990 के बीच बनाये गये हैं. इनमें अन्नराज, पनघटवा, चिरका, उतमाही, बायीं बांकी, फूलवरिया, सरस्वतिया, कवलदाग, पंडरवा, बभनीखांड़ व बंबा डैम शामिल हैं. इससे लगभग आठ हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई की जा सकती है. हालांकि, इस वर्ष सुखाड़ के कारण इन डैमों से सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी नहीं छोड़ा जा सका है. डैमों के कच्चे नहर का पक्कीकरण कार्य किया जा रहा है. डैमों की सफाई कभी नहीं हुई है. पक्कीकरण के बाद अंतिम छोर तक पानी पहुंचने की उम्मीद की जा रही है.

लातेहार : खतरे में सभी डैमों का अस्तित्व, सरकार उदासीन

जिले में अतिक्रमण के कारण डैमों का अस्तित्व खतरे में है. जिले के नौ प्रखंडों मे छोटे-बड़े दो दर्जन डैम हैं. 25 से 30 वर्ष पहले बने इन डैमों का उद्देश्य खेतों तक पानी पहुंचा कर किसानों को समृद्ध करना था. लेकिन, अब सभी डैमों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. निर्माण के बाद आज तक जिले के किसी डैम की साफ-सफाई नहीं हुई है. ललमटिया व मोंगर डैम से थोड़ी-बहुत सिंचाई होती है. लेकिन डैम से खेतों तक पानी पहुंचाने वाले कैनाल की साफ-सफाई पिछले 10-15 वर्षों से नहीं की गयी है. अतिक्रमण के कारण डैम का दायरा लगातार कम होता जा रहा है. लातेहार में कई डैम हैं, जिनमें क्षमता से अधिक पानी होने पर भी क्षतिग्रस्त कैनाल के कारण खेतों तक पानी नहीं पहुंच पाता है. इस कारण किसान धान के अलावा किसी दूसरी फसल की खेती नहीं कर पाते हैं. रख-रखाव के अभाव में डैम मरणासन्न स्थिति में पहुंच गये हैं.

गुमला : किसानों को मुश्किल से मिलता है डैम का पानी

गुमला जिले के डैमों पर अरबों रुपये खर्च करने के बाद भी खेत सूखे हैं. जिले में छोटे-बड़े लगभग 40 डैम हैं. इसमें अपरशंख, दतली, धनसिंह, कतरी, मसरिया जलाशय सबसे बड़े हैं. लेकिन इसमें कुछ ही डैमों से लोगों को लाभ हो रहा है. ज्यादातर डैम केवल खाओ-पकाओ योजना बन कर रह गये हैं. डैमों की मरम्मत हर साल होती है. साफ-सफाई भी होती है. लेकिन, करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी किसानों को मुश्किल से ही पानी मिल पाता है. डैम से सटे खेतों तक पानी तो पहुंच जाता है. परंतु, डैम से जैसे जैसे खेत दूर होते जाती है. नहरों से पानी भी घटता जाता है.

कतरी जलाशय : दो अरब खर्च, नहर सूखे

गुमला से 22 किमी दूर स्थित कतरी गांव में कतरी जलाशय है. 85 करोड़ रुपये से बना है. लेकिन, तीन साल पहले इसकी मरम्मत में 100 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किये गये. इसके बाद भी इसका सही लाभ किसानों को नहीं मिल रहा है.

कंस जलाशय : गर्मी में नहीं मिलता लाभ

भरनो में कंस जलाशय है. 1973 में बने इस डैम की लागत 37 लाख थी. गर्मी में लाभ लोगों को नहीं मिलता है. इस जलाशय पर अब तक 100 करोड़ रुपये से अधिक खर्च हो चुका है. 3380 हेक्टेयर खेत में खरीफ व 340 हेक्टेयर खेत में रबी की खेती होती है.

अपरशंख जलाशय : खेतों को पानी नहीं

चैनपुर व डुमरी प्रखंड के नवगाई में अपरशंख जलाशय है. दो अरब खर्च हो गया. फिर भी इस क्षेत्र में खेत को पानी नहीं मिलता है. डैम से सटे कुछ हिस्से में खेती होती है. अपरशंख का लाभ किसानों को अब मछली पालन में मिल रहा है.

मसरिया जलाशय : घट गया दायरा

घाघरा प्रखंड के मसरिया डैम का निर्माण 1977 में हुआ था. मरम्मत के नाम पर सिर्फ नहर का निर्माण 2018 में हुआ. करोड़ों रुपये खर्च हो गये. लेकिन, खेत के कुछ ही हिस्सों तक पानी पहुंचता है. डैम का दायरा भी कम हो गया है.

मुंदार जलाशय : लूट मरम्मत के नाम पर

बिशुनपुर प्रखंड में मुंदार जलाशय है. निर्माण 1956 में हुआ था. लेकिन अब यह मृत होने के कगार पर है. हालांकि मरम्मत के नाम पर यह डैम इंजीनियरों के लिए दुधारू गाय है. प्रखंड में नरमा डैम 1971 में बना था. अब इसकी हर साल मरम्मत होती है.

धनसिंह जलाशय : खेती
नहीं अब मछली पालन होता है

बसिया प्रखंड में धनसिंह टोली जलाशय है. डैम से सटे खेत में खेती होती है. परंतु, कुछ दूरी के बाद खेत सूखे नजर आते हैं. हालांकि डैम में अब मछली पालन पर फोकस किया गया है. डैम की मरम्मत में हर साल दो साल में लाखों रुपये खर्च होता है.

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