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विरोध नहीं, जनहित के काम पर नजर रखना हमारा कर्तव्य : मेयर

परिचर्चा में रांची नगर निगम की मेयर आशा लकड़ा ने भी अपने विचार रखे. उन्होंने कहा कि डिस्टिलरी के सौंदर्यीकरण कार्य को लेकर हमारे बीच कोई विवाद नहीं है. लेकिन एक जनप्रतिनिधि होने के नाते हमारा नैतिक दायित्व है कि हम यह देखें कि जो काम कर रहे हैं, उससे शहरवासियों को क्या फायदा होने […]

परिचर्चा में रांची नगर निगम की मेयर आशा लकड़ा ने भी अपने विचार रखे. उन्होंने कहा कि डिस्टिलरी के सौंदर्यीकरण कार्य को लेकर हमारे बीच कोई विवाद नहीं है. लेकिन एक जनप्रतिनिधि होने के नाते हमारा नैतिक दायित्व है कि हम यह देखें कि जो काम कर रहे हैं, उससे शहरवासियों को क्या फायदा होने जा रहा है.
सौंदर्यीकरण के साथ-साथ हमें यह भी देखना होगा कि हम प्राकृतिक संरचना को तो नष्ट नहीं कर रहे हैं. आज डिस्टिलरी का सौंदर्यीकरण के तहत ड्रेन का निर्माण किया गया है. लेकिन इस ड्रेन में आसपास के सभी घरों के सैप्टिक टैंक को जोड़ दिया गया है. अब पुल के नीचे चेक डैम बनाने की योजना तैयार की गयी थी. ऐसे में ड्रेन से होते हुए सैप्टिक टैंक का पानी चेक डैम में आकर जमा होगा. बदबू उठेगी, फिर लोग इस योजना पर ही सवाल उठायेंगे. वैसे भी इस क्षेत्र की जनता चेक डैम के बजाय वृहद तालाब की मांग कर रही है. ऐसे में हमारा भी यह कर्तव्य है कि जनहित को देखते हुए हम यहां एक बड़ा तालाब का निर्माण करायें.
तालाब के लिए आंदोलन किया, राजनीति के लिए नहीं : आदित्य
इंपावर झारखंड के अध्यक्ष आदित्य विक्रम जायसवाल ने कहा कि उन्होंने यह आंदोलन डिस्टिलरी तालाब को पुनर्जीवित करने के लिए शुरू किया था. परंतु दुर्भाग्य से इसे लोग राजनीति करार दे रहे हैं.
तालाब के सौंदर्यीकरण कार्य का वे भी सपोर्ट करते हैं, परंतु निगम को भी यह ध्यान रखना होगा कि डिस्टिलरी के मूल स्वरूप में कोई छेड़छाड़ न हो. सौंदर्यीकरण को देख कर लगता है कि अब लोग इसे तालाब के रूप में नहीं, बल्कि पार्क के रूप में याद रखेंगे. यह कैसा विकास है, जिसमें तालाब को नष्ट कर उसमें पार्क और मार्केट बनाया जा रहा है. वैसे भी निगम ने तालाब के सौंदर्यीकरण के लिए किसी प्रकार का इंवायरमेंट क्लीयरेंस नहीं लिया है और न ही किसी से कोई विचार विमर्श किया है.
परिचर्चा में रांची नगर निगम के डिप्टी मेयर संजीव विजयवर्गीय ने कहा कि डिस्टिलरी को सुंदर बनाना उनकी पहली प्राथमिकता है. इस तालाब के सौंदर्यीकरण के लिए वे वर्ष 2002 से आवाज उठा रहे हैं. परंतु पिछले वर्ष में सरकार से दो करोड़ की राशि हमें मिली. इसके बाद हमने इसका सौंदर्यीकरण शुरू कराया है. आज जब सौंदर्यीकरण का काम शुरू हुआ, तो बहुत से लोग सवाल खड़े कर रहे हैं. ये लोग तब कहां थे, जब प्रतिवर्ष इस तालाब के गेट को साल में तीन बार खोल कर इसकी जमीन को धड़ल्ले से बेचा जा रहा था?
तब किसी ने इस पर आवाज नहीं उठायी. आज हम इस कार्य को धरातल पर उतारने में लगे हैं, तो लोग हमें ही गलत साबित करने पर तुले हुए हैं. आज पहले चरण का काम अंतिम चरण में है. इसे पूरा होने दिया जाये. हम दूसरे चरण की योजना भी बना रहे हैं. इसमें पुल के नीचे बड़ा सा तालाब बनाने का प्रस्ताव रखा गया है. एक बार योजना को धरातल पर उतरने दिया जाये. इसमें अब किसी प्रकार का बाधा उत्पन्न करना उचित नहीं है.
जल संचय के लिए सरकार गांवों में डोभा खुदवा रही है, लेकिन रांची में ही तालाब को भरकर पार्क बनाया जा रहा है. पार्क के बीच जिसे तालाब का रूप दिया गया है, वह छोटा सा गड्ढा भर है. वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए हमें पानी बचाने के लिए गंभीर होना होगा. बेहतर होगा कि डिस्टिलरी तालाब को उसके पुराने स्वरूप में वापस लाया जाये.
सवाल केवल डिस्टिलरी तालाब के खत्म होने का नहीं है. हमें अन्य तालाबों की हालत भी देखनी चाहिए. बहुत पहले भूतहा तालाब को भर कर मैदान बनाया गया था. आज उस पर मार्केट बन रहा है. बड़ी-बड़ी इमारतें तो बहुत बन रही हैं, लेकिन पिछले 15 वर्षों में राजधानी में एक नया तालाब क्यों नहीं बना, इसका जवाब किसी के पास नहीं है.
पूर्व में करम नदी राजभवन के समीप से निकलती थी. इस नदी का ही यह असर है कि आज भी करमटोली चौक के समीप धान की खेती साल में दो बार होती है. परंतु जिस प्रकार से अतिक्रमण हुआ, अब यह नदी गायब होने के कगार पर पहुंच गयी है. हमारी सरकार से मांग है कि वह करम नदी और डिस्टिलरी तालाब को पुनर्जीवित करे.
वर्ष 1994 से लगातार डिस्टिलरी में छठ हो रहा था, लेकिन तालाब के सूखने की वजह से वर्ष 2014 से यहां छठ होना बंद हो गया है. जब डिस्टिलरी में पानी रहता था, तब हमारे घर का कुआं पूरे साल पानी से लबालब रहता था. आज 300 फीट का बोरिंग भी सूख गया है. निगम अधिकारियों से हमारी अपील है कि इसे तालाब के रुप में ही रखा जाये.
वर्ष 1970 में घर में कुएं की खुदाई हो रही थी. उस समय मात्र सात फीट में पानी निकल गया था. आज 300 फीट बोरिंग के बाद भी पानी नहीं मिल रहा है. जल संरक्षण को लेकर राज्य सरकार एक ओर गांवों में डोभा खुदवा रही है. वहीं, राजधानी में तालाब भर कर पार्क बनाया जा रहा है. हमारी मांग है कि डिस्टिलरी को तालाब ही रहने दें.
हमें सौंदर्यीकरण से परहेज नहीं है. पानी का मुद्दा अहम है. शहर में पानी की भारी किल्लत हो रही है. ऐसे में बेहतर होगा कि डिस्टिलरी तालाब को वाटर बॉडी के रूप में विकसित किया जाये. चाहे फेज वन से हो या फेज टू से, हमें सौंदर्यीकरण कार्य तेजी से पूरा करना होगा. ताकि शहर में एक अच्छा
स्थल लोगों को देखने के लिए मिले.
सौंदर्यीकरण के नाम पर जब से डिस्टिलरी तालाब को सुखाया गया है, तभी से कोकर सहित इसके आसपास में जलस्तर तेजी से नीचे जा रहा है. रांची नगर निगम से हमारी मांग है कि यहां पार्क और मार्केट बनाने के बजाय इसे तालाब के रूप में ही विकसित किया जाये. इससे आसपास के इलाकों में पानी की समस्या स्वत: समाप्त हो जायेगी.
डिस्टिलरी के सौंदर्यीकरण कार्य के विरोध में अब राजनीति ज्यादा हाे रही है. मेयर को भी इस काम में किसी प्रकार का अड़चन न लगाते हुए इसे जल्द पूरा करवाना चाहिए. क्योंकि जितना जल्दी काम होगा, उतना ही इसका फायदा कोकर और लालपुर वासियों को होगा. जल संरक्षण अहम मुद्दा है. निगम को इस पर भी विचार करना चाहिए.
40 वर्षों से कोकर में रह रहा हूं, आज तक कभी घर का कुआं नहीं सुखा था. लेकिन जब से डिस्टिलरी को सुखाया गया है, कुएं का पानी नवंबर में ही सुखने लगता है. अगर आज हम इस तालाब को पुराने स्वरूप में वापस नहीं लाये, तो हमारी आने वाली पीढ़ियां हमें कभी माफ नहीं करेंगी. कहने का मतलब है कि सौंदर्यीकरण से ज्यादा पानी जरूरी है.
आज कुछ लोगों द्वारा डिस्टिलरी को तालाब मानने से ही इनकार किया जा रहा है. मेरी नजर में ऐसे लोग मूर्ख हैं. ऐसे लोगों से बात करके कोई हल नहीं निकलने वाला है. नगर निगम से हमारी मांग है कि पूर्व की तरह ही डिस्टिलरी को तालाब के रूप में विकसित किया जाये. यह वर्तमान के साथ-साथ हमारे भविष्य का भी सवाल है.

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