घोटाले से जुड़ी सीडी भी सार्वजनिक हुई, लेकिन विधानसभा स्तर से तब जांच के लिए कोई पहल नहीं हुई़ वर्ष 2012 में मामला राजभवन पहुंचा़ तत्कालीन राज्यपाल डॉ सईद अहमद ने विधानसभा द्वारा की गयी नियुक्त-प्रोन्नति की वैधता पर विधानसभा से जवाब मांगा़ राज्यभवन की ओर से विधानसभा से 13 सवालों पर जवाब मांगा गया़ राज्यपाल के निर्धारित बिंदुओं (टर्म ऑफ रिफ्रेंस) पर वर्तमान में विक्रमादित्य आयोग घोटालों की परत खोल रहा है़ सूचना के मुताबिक, वर्तमान में आयोग निष्कर्ष की ओर पहुंच रहा है़ नियुक्ति-प्रोन्नति में घोटालों के कई तथ्य सामने आयेंगे़ जून तक आयोग अपनी रिपोर्ट सौंपेगा.
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विस में नियुक्ति-प्रोन्नति घोटाला : जांच आयोग खोल रहा घाेटालों की परतें
रांची : पिछले 14 वर्षों में विधानसभा में छह सौ से ज्यादा नियुक्तियां हुईं. नियुक्तियां नियम विरुद्ध हुईं. कानून का उल्लंघन कानून के मंदिर (विधानसभा) में ही हुआ. पूर्व स्पीकर इंदर सिंह नामधारी और आलमगीर आलम के समय हुई नियुक्तियों पर सवाल उठे़ लंबे समय तक विधानसभा में नियुक्ति घोटाले के मामले उठते रहे़ जांच […]
रांची : पिछले 14 वर्षों में विधानसभा में छह सौ से ज्यादा नियुक्तियां हुईं. नियुक्तियां नियम विरुद्ध हुईं. कानून का उल्लंघन कानून के मंदिर (विधानसभा) में ही हुआ. पूर्व स्पीकर इंदर सिंह नामधारी और आलमगीर आलम के समय हुई नियुक्तियों पर सवाल उठे़ लंबे समय तक विधानसभा में नियुक्ति घोटाले के मामले उठते रहे़ जांच के नाम पर टालमटोल होता रहा़.
घोटाले से जुड़ी सीडी भी सार्वजनिक हुई, लेकिन विधानसभा स्तर से तब जांच के लिए कोई पहल नहीं हुई़ वर्ष 2012 में मामला राजभवन पहुंचा़ तत्कालीन राज्यपाल डॉ सईद अहमद ने विधानसभा द्वारा की गयी नियुक्त-प्रोन्नति की वैधता पर विधानसभा से जवाब मांगा़ राज्यभवन की ओर से विधानसभा से 13 सवालों पर जवाब मांगा गया़ राज्यपाल के निर्धारित बिंदुओं (टर्म ऑफ रिफ्रेंस) पर वर्तमान में विक्रमादित्य आयोग घोटालों की परत खोल रहा है़ सूचना के मुताबिक, वर्तमान में आयोग निष्कर्ष की ओर पहुंच रहा है़ नियुक्ति-प्रोन्नति में घोटालों के कई तथ्य सामने आयेंगे़ जून तक आयोग अपनी रिपोर्ट सौंपेगा.
स्पीकर रहते हुए सीपी सिंह ने जांच कराने का किया था आग्रह : राजभवन की ओर से विधानसभा को जब पत्र आया, तब सीपी सिंह स्पीकर थे़ तत्कालीन स्पीकर सीपी सिंह ने कहा कि राज्यपाल चाहें तो खुद ही इसकी जांच करा लें. इसके बाद राज्यपाल ने जांच के लिए न्यायिक आयोग के गठन का आदेश दिया. सरकार के मंत्रिमंडल सचिवालय से नियुक्ति-प्रोन्नति की जांच के लिए आयोग गठन का पत्र जारी किया गया. सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति लोकनाथ प्रसाद की अध्यक्षता में पहली बार आयोग का गठन किया गया़ निर्धारित शर्त (टर्म ऑफ रिफ्रेंस) पर आयोग ने जांच शुरू की, लेकिन लोकनाथ प्रसाद के आयोग को सहयोग नहीं मिला़ इसके बाद सेवानिवृत्त न्यायाधीश विक्रमादित्य को जांच का जिम्मा मिला़
राजभवन की ओर से नियुक्ति-प्रोन्नति मामले में जो सवाल उठाये गये
क्या नियुक्ति/ प्रोन्नति में पिक एंड चूज पद्धति अपनायी गयी.
क्या विज्ञापन में पदों की संख्या का उल्लेख नहीं था. क्या बिना पदों की संख्या जारी किया गया विज्ञापन वैध है.
क्या तैयार मेधा सूची में कई रोल नंबर पर ओवर राइटिंग की गयी है.
क्या गृह जिला (पलामू) के 13 अभ्यर्थियों को स्थायी डाक पता पर पोस्ट भेजा गया. क्या पत्र 12 घंटे के भीतर मिल गया. क्या सफल उम्मीदवारों ने दो दिनों के अंदर ही योगदान कर दिया.
क्या अनुसेवक के लिए नियुक्ति प्रक्रिया द्वारा कथित रूप से चयनित व्यक्तियों को ऑडरर्ली रूप से नियुक्त कर लिया गया.
क्या गठित नियुक्ति कोषांग में कौशल किशोर प्रसाद और सोनेत सोरेन को शामिल किया गया, जिनके खिलाफ एमपी सिंह ने प्रतिकूल टिप्पणी की थी.
तत्कालीन सचिव सह साक्षात्कार कमेटी के अध्यक्ष व सदस्य कौशल किशोर प्रसाद विधानसभा सत्र में व्यस्त थे, पूरी अवधि में टाइपिंग शाखा के तारकेश्वर झा व सहायक महेश नारायण सिंह शामिल हुए. इसके बाद भी साक्षात्कार कमेटी के सदस्यों ने हस्ताक्षर कर दिया.
क्या नियुक्ति की कार्रवाई बिना पद रहे प्रारंभ कर दी गयी या बिना पद के उपलब्ध परिणाम घोषित कर दिये गये.
क्या ड्राइवरों की नियुक्ति के लिए निकाले गये 28 दिसंबर 2006 के विज्ञापन में विहित अंतिम तिथि तक क्या पार्थसारथी चौधरी ने अपना आवेदन नहीं जमा कराया था. क्या वे तत्कालीन विधायक निरसा अपर्णा सेन गुप्ता के भाई थे. तो किस आधार पर साक्षात्कार के लिए बुलाया गया.
चालकों की 17 नियुक्तियों में 14 को एमवीआइ ने जांच में असफल पाया था, बावजूद इसके वे नौकरी पर रख लिये गये.
क्या इंदर सिंह नामधारी के अध्यक्ष काल में प्रतिवेदकों के 23 पदों के विरुद्ध 30 व्यक्तियों की नियुक्ति की गयी.
आयोग ने राज्यपाल के निर्देशित बिंदुओं पर यूं की जांच
नियुक्ति के मामले में नेताओं, प्रभावशाली लोगों के रिश्तेदारों को बहाल किये जाने का मामला सामने आया़ अनुसेवक से लेकर सहायक तक बहाल हुए़ नियुक्त हुए नेताओं के रिश्तेदारों के पते की छानबीन की गयी़ दस्तावेज के अनुसार यह प्रमाणित करने की कोशिश की गयी है कि ये लोग कैसे किस नेता के रिश्तेदार या करीबी है़ं
नियुक्त लोगों की कॉपियों से छेड़छाड़ को लेकर फॉरेंसिक जांच के लिए मामला बढ़ाया गया़
नियुक्ति-प्रोन्नति में शामिल अधिकारियों से आयोग ने अलग-अलग पूछताछ की़
नियुक्त लोगों के फॉर्म की भी जांच की गयी़ जांच के क्रम में यह भी पता लगाने की कोशिश की गयी है कि क्या किसी योग्य आवेदक के साथ भेदभाव हुआ है या नही़ं
अनुसेवकों की बहाली में किस तरह अनियमितता बरती गयी़ क्या मौखिक रूप से बहाल किया गया़ नियुक्ति पत्र भेजने में क्या प्रक्रिया अपनायी गयी़ कैसे एक खास जगह के अनुसेवक बहाल हुए़
साक्षात्कार की प्रक्रिया की भी जांच की गयी है़ साक्षात्कार कमेटी में शामिल पूर्व अधिकारियों से भी पूछताछ की गयी़
इसके अतिरिक्त राज्यपाल के सुझाये दूसरे बिंदुओं की गहनता से जांच हो रही है़
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