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इंजीनियरों पर प्राथमिकी का मामला तीन साल से लंबित

गरीबों के लिए शौचालय बनाये बिना ही सरकारी पैसों के गबन करने का है आरोप शकील अख्तर रांची : शौचालय बनाने के नाम पर 97.50 लाख रुपये की निकासी करनेवाले इंजीनियरों पर प्राथमिकी दर्ज करने का मामला कानूनी विवाद में उलझा हुआ है. 2009-10 में हुई गड़बड़ी के मामले में लोकायुक्त ने 2013 में प्राथमिकी […]

गरीबों के लिए शौचालय बनाये बिना ही सरकारी पैसों के गबन करने का है आरोप
शकील अख्तर
रांची : शौचालय बनाने के नाम पर 97.50 लाख रुपये की निकासी करनेवाले इंजीनियरों पर प्राथमिकी दर्ज करने का मामला कानूनी विवाद में उलझा हुआ है. 2009-10 में हुई गड़बड़ी के मामले में लोकायुक्त ने 2013 में प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया था, जिसे इंजीनियरों ने अदालत में चुनौती दी. रिट याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत ने मार्च 2014 में सरकार को जवाब देने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया. साथ ही अदालत ने तब तक के लिए पीड़क कार्रवाई करने पर रोक लगा दी.
तीन साल से यह मामला अदालत में विचाराधीन है. गड़बड़ी का यह मामला संपूर्ण स्वच्छता अभियान से संबंधित है. गरीबों के लिए शौचालय बनाये बिना ही सरकारी पैसों के गबन के मामले में वर्ष 2012 में लोकायुक्त से शिकायत की गयी थी. लोकायुक्त ने शिकायत पर सुनवाई के बाद मामले की प्रारंभिक जांच करने का आदेश दिया.
इस आदेश के आलोक में पेयजल एवं स्वच्छता विभाग ने अपर समाहर्ता से जांच करायी. जांच में पाया गया कि चौरेया, तरंगा, टांकर,रोल, ताला, लुंड्री और बालसोकरा पंचायतों में संपूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत बीपीएल परिवारों के लिए 4,796 शौचालय निर्माण की योजना स्वीकृत की गयी थी. योजना के निर्माण मेें बड़े पैमाने पर गड़बड़ी पायी गयी.
विभाग द्वारा जांच रिपोर्ट लोकायुक्त को उपलब्ध करायी गयी. लोकायुक्त ने शिकायत की सुनवाई के बाद 21 अक्तूबर 2013 को गड़बड़ी में शामिल इंजीनियरों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया. इस मामले में लोकायुक्त की ओर से पेयजल विभाग को भेजे गये निर्देश में तत्कालीन कार्यपालक अभियंता संजय कुमार, तत्कालीन कनीय अभियंता उमेश कुमार, तत्कालीन कनीय अभियंता विनोद कुमार सिंह के प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया.
सरकार द्वारा प्राथमिकी दर्ज करने से पहले ही आरोपी इंजीनियरों ने लोकायुक्त के आदेश को हाइकोर्ट में चुनौती दी. आरोपी इंजीनियरों की ओर से दायर रिट याचिका(6857/13) पर न्यायमूर्ति न्यायमूर्ति एनएन तिवारी की अदालत में सुनवाई हुई.
इसमें आरोपी इंजीनियर संजय कुमार की ओर से सीनियर एडवोकेट एके सिन्हा ने पक्ष रखा. सरकार की ओर से इस मामले में जूनियर काउंसिल हाजिर हुए. उन्होंने मामले में जवाब दाखिल करने के लिए तीन सप्ताह का समय मांगा. अदालत ने इसे स्वीकार करते हुए तब तक के लिए पीड़क कार्रवाई करने पर रोक लगा दी.
24 मार्च 2014 को दिया गया अदालत का यह आदेश विभाग में पहुंचने के बाद विभागीय अधिकारियों में इस बात पर बहस शुरू हुई कि आरोपी इंजीनियरों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की जा सकती है या नहीं. करीब 16 माह के बहस के बाद विभागीय स्तर पर कोई हल नहीं निकले पर अगस्त 2015 में इस मामले में महाधिवक्ता की राय मांगी गयी. महाधिवक्ता ने 15 सितंबर 2015 में इस अदालती आदेश पर अपनी राय दी.
उन्होंने अपनी राय में लिखा कि प्राथमिकी दर्ज करने के बाद पुलिस इंजीनियर को गिरफ्तार करेगी. यह पीड़क कार्रवाई होगी. विभागीय कार्यवाही शुरू कराना भी पीड़क कार्रवाई होगी. महाधिवक्ता की इस राय के बाद न तो आरोपी इंजीनियरों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज हो सकी न ही विभागीय कार्यवाही शुरू हुई. सरकार आरोपी इंजीनियरों पर कार्रवाई के लिए रिट याचिका के निष्पादित होने का इंतजार कर रही है.

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