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रूसी क्रांति की तरह भारत में भी आंदोलन की जरूरत

नामकुम : रूस की नवंबर क्रांति का सौ वर्ष पूरा होने को है. ऐतिहासिक महत्व वाले इस क्रांति को पुरजोर तरीके से याद करने की जरूरत है. इस आंदोलन ने रूस में एक नये युग का आरंभ किया था. किसान जमींदारों के शोषण से मुक्त हुए थे. गरीबी, बेकारी, भुखमरी, अशिक्षा, चिकित्सा के अभाव का […]

नामकुम : रूस की नवंबर क्रांति का सौ वर्ष पूरा होने को है. ऐतिहासिक महत्व वाले इस क्रांति को पुरजोर तरीके से याद करने की जरूरत है. इस आंदोलन ने रूस में एक नये युग का आरंभ किया था.

किसान जमींदारों के शोषण से मुक्त हुए थे. गरीबी, बेकारी, भुखमरी, अशिक्षा, चिकित्सा के अभाव का अंत हो सका था. इस क्रांति के बाद ही छह घंटे का कार्य दिवस लागू किया गया. ऐसी व्यवस्था जिसमें गरीब जनता को वास्तविक समानता मिले, यह भारत में भी आंदोलन के माध्यम से ही संभव है तथा इसकी बहुत जरूरत है. यह बातें भाकपा के केंद्रीय नेता कॉ. अरविंद सिन्हा ने कही. वह नामकुम स्थित बगइचा सभागार में सीपीआइ (एमएल) की प्रांतीय कमेटी के तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय सभा में मुख्य अतिथि के तौर पर बोल रहे थे. वहीं कॉ. सुबोध मित्र ने कहा कि रूसी क्रांति का पूरे विश्व में असर पड़ा तथा हर देश में कम्युनिस्ट पार्टी का निर्माण हुआ. रवींद्रनाथ टैगोर व बर्नाड शॉ जैसे बुद्धिजीवियों ने कम्युनिस्ट न होते हुए भी रूसी क्रांति के योगदान को स्वीकार किया था. शंभु महतो ने कहा कि कम्युनिस्ट विचारधारा एक विज्ञान है, जो कभी गलत नहीं हो सकती. यह वैसी ताकत है, जो समाज में होनेवाले परिवर्तन को बल प्रदान करती है.

हम गौर करें तो पायेंगे कि आज के समय में पूंजीवाद की अपेक्षा मार्क्सवाद अधिक प्रासंगिक है. जिसका स्पष्ट उदाहरण क्यूबा जैसा देश है. जहां सामाजिक समरसता, जीवन स्तर की गुणवत्ता व सुविधाओं की उपलब्धता समान रूप से उपलब्ध है. जो पूरे विश्व के लिए उदाहरण है. मौके पर कॉ. सियाशरण शर्मा, कमल किशोर यादव,

बिरसा हेमरोम, बाबूधन मुरमू आदि उपस्थित थे.

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