रांची: राजकीय पॉलिटेक्निक, चर्च रोड रांची को राज्य का महत्वपूर्ण तकनीकी संस्थान माना जाता है, लेकिन नियमित कक्षा व प्रैक्टिकल के अभाव में यहां के विद्यार्थियों का भविष्य चौपट होता दिख रहा है. यहां के विद्यार्थियों के अनुसार संस्थान में शिक्षकों व क्लास रूम की कमी है. प्रैक्टिकल के लिए आधारभूत साधन नहीं हैं. पुस्तकालय में स्तरीय व अद्यतन किताबों का अभाव है.
यहां की हालत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रति सेमेस्टर एक बार भी प्रैक्टिकल हो जाये, तो विद्यार्थी इसी को उपलब्धि मानते हैं. पांच ब्रांच (सिविल, मेकेनिकल, इलेक्ट्रिकल, कंप्यूटर साइंस तथा इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्यूनिकेशन) में कुल एक हजार विद्यार्थियों के लिए यहां सिर्फ आठ क्लास रूम है.
क्लास रूम की कमी से अलग-अलग सेमेस्टर का क्लास बारी-बारी से लिया जाता है. जब एक सेमेस्टर के विद्यार्थी अपनी क्लास में होते हैं तो दूसरे अपनी बारी का इंतजार करते हैं. दिन भर में किसी खास सेमेस्टर का दो-तीन क्लास ही हो पाता है. क्लास रूम में बेंच-डेस्क भी टूटे हुए हैं. लाइब्रेरी में बाबा-आदम जमाने की किताबें आज के तकनीक के लिहाज से अप्रासंगिक हैं. वर्कशॉप व लैब की हालत भी इससे अलग नहीं है. वर्कशॉप में लगी चार लेथ मशीनों में से सिर्फ एक कार्यरत है. सीएनसी व अन्य उपकरण है ही नहीं.
उधर इलेक्ट्रॉनिक्स व कंप्यूटर लैब के ज्यादातर उपकरण खराब हैं. कुल 12 कंप्यूटर में से छह ही ठीक हैं. इलेक्ट्रिकल ब्रांच के विद्यार्थियों ने आज तक लैब नहीं देखा है. छात्रवास की स्थिति भी बदतर है. खिड़की में पल्ला नहीं, बाथरूम बेहद गंदे हैं. कैंपस में चहारदीवारी तक नहीं है. इस्लाम नगर का अतिक्रमण हटा, पर चहारदीवारी नहीं बनी, जबकि इसके लिए करीब 49 लाख रु आवंटित हुए डेढ़ वर्ष हो गये. संस्थान के मुख्य द्वार पर कोई गेट नहीं है. दिन भर लोगों का आना-जाना लगा रहता है. इसी माहौल में यहां इंजीनियरिंग की पढ़ाई हो रही है. विद्यार्थियों का प्रशिक्षण समय के अनुरूप नहीं हो रहा है.
टेक्विप का 92 लाख मिला है
इस संस्थान को राज्य सरकार ने टेक्निकल एजुकेशन क्वालिटी इंप्रूवमेंट प्रोग्राम (टेक्विप) के लिए चुना है. इसके तहत वर्ल्ड बैक से इस संस्थान को अब तक 92 लाख रु मिले हैं, पर इससे टेक्निकल एजुकेशन में कोई सुधार नहीं दिखता. संस्थान के अंतिम वर्ष में पढ़ने वाले विद्यार्थियों ने भी आज तक किसी विभागीय अधिकारी को संस्थान में निरीक्षण करते नहीं देखा. गौरतलब है कि मुख्यमंत्री के अधीन ही विज्ञान व प्रावैधिकी विभाग है.