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14 लाख का बुशिंग खराब, 600 करोड़ का नुकसान

रांची : पूरे झारखंड में बिजली की स्थिति खराब है. यहां तक की रांची के लोग भी लोड शेडिंग से परेशान हैं. वहीं, दूसरी ओर राज्य का एकमात्र सिकिदरी हाइडल प्रोजेक्ट (पनबिजली परियोजना) का एक यूनिट पिछले 20 माह से तथा दूसरी छह माह से ठप है. इस हाइडल प्रोजेक्ट की कुल क्षमता 130 मेगावाट […]

रांची : पूरे झारखंड में बिजली की स्थिति खराब है. यहां तक की रांची के लोग भी लोड शेडिंग से परेशान हैं. वहीं, दूसरी ओर राज्य का एकमात्र सिकिदरी हाइडल प्रोजेक्ट (पनबिजली परियोजना) का एक यूनिट पिछले 20 माह से तथा दूसरी छह माह से ठप है. इस हाइडल प्रोजेक्ट की कुल क्षमता 130 मेगावाट है. सूत्रों की मानें, तो जुलाई 2015 में यूनिट संख्या-दो की बुशिंग जल गयी थी. इसके बाद से अब तक इसकी मरम्मत नहीं की गयी है. बुशिंग का निर्माण 1977 में किया गया था. अब इसका निर्माण बंद है. पर अब भेल सिर्फ इस हाइडल प्रोजेक्ट के लिए बुशिंग बना रहा है, जिसकी कीमत करीब 14 लाख है.
इस बीच पिक अावर में राजधानी को बिजली देनेवाली इस परियोजना के ठप रहने से सरकार को करीब 30 करोड़ प्रति माह राजस्व नुकसान हो रहा है. अब तक करीब 600 करोड़ का नुकसान हाे चुका है. यह आकलन रोजाना 100 मेगावाट बिजली उत्पादन के आधार पर है. बुशिंग एक कुचालक (इंसुलेटिंग) उपकरण है, जिससे होकर बिजली प्रवाहित होती है. सिकिदरी हाइडल में 80 एमवीए का जेनरेटिंग ट्रांसफारमर लगा है. बुशिंग के बिना यह ट्रांसफारमर चालू नहीं हो सकता है. सिकिदरी हाइडल में लगे बुशिंग का अब उत्पादन बंद हो गया है, इस कारण समस्या आ रही है.
75 कर्मी हैं कार्यरत
सिकिदरी हाइडल में करीब 75 कर्मी कार्यरत हैं
सरकार इन्हें करीब 70 लाख रुपये सालाना वेतन देती है
फिलहाल सरकार इन्हें बैठा कर पैसे दे रही है
130 मेगावाट है क्षमता
सिकिदरी प्रोजेक्ट की कुल क्षमता 130 (65-65) मेगावाट है
यहां कुल दो यूनिट है, बुशिंग जलने से एक यूनिट ठप है
वहीं दूसरी यूनिट भी करीब छह माह से खराब है
भेल ने नया बुशिंग बनाया है. एक ट्रांसफॉरमर की हाउजिंग भी बदलनी है. सामान आ गये हैं. भेल के एक्सपर्ट 17 अप्रैल को रांची आनेवाले हैं. अप्रैल अंत तक हाइडल की एक यूनिट से बिजली उत्पादन शुरू हो जायेगा. दूसरी यूनिट बाद में चालू होगी.
– अमर नायक, प्रोजेक्ट मैनेजर, सिकिदरी हाइडल
विवादित रहा है मरम्मत का कार्य
सिकिदरी हाइडल के जीर्णोद्धार व मरम्मत पर राज्य सरकार ने 2012 में करीब 23 करोड़ खर्च किये थे
अारोप लगा था कि 2005 में जो काम मात्र 59 लाख रुपये में हुआ था. वही काम बाद में भेल के जरिये 23 करोड़ में हुआ
इसके बाद भी जो उपकरण अब बनते नहीं, उन्हें बदलने का काम नहीं हुआ
सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी ऑथोरिटी (सीइए)की जांच रिपोर्ट के अनुसार, 10 फरवरी 2012 को जीर्णोद्धार की निविदा निकाली गयी थी
निविदा 24 फरवरी 2012 को खुलना था. पर भेल ने 13 फरवरी 2012 को ही 24.34 करोड़ का इस्टिमेट बोर्ड को सौंप दिया
इसी दिन निदेशक मंडल की बैठक बुला कर बोर्ड ने निगोशियेशन कर 21.80 करोड़ के खर्च पर भेल से यह काम कराना स्वीकार कर लिया
दो दिन बाद इस लागत को बढ़ा कर 23.14 करोड़ कर दिया गया. भेल ने अधिक व्यय होने का कोई औचित्य नहीं बताया. बोर्ड ने भी यह जानने का प्रयास नहीं किया

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