रांची : सरकार गरीब परिवारों को पशुपालन के लिए प्रेरित कर रही है. अाय वृद्धि के लिए सूकर पालन, बकरी पालन तथा मुरगी पालन की योजनाएं संचालित हो रही हैं. पशुपालन विभाग, ग्रामीण विकास विभाग तथा कल्याण विभाग यह कार्यक्रम चला रहे हैं. दूसरी ओर राज्य में सूकरों की कमी हो गयी है. सरकार को भी सूकर नहीं मिल रहे हैं. पशुपालन विभाग (कांके स्थित सूकर प्रक्षेत्र तथा बिरसा कृषि विवि का सूकर प्रजनन केंद्र) के सूकर के दो महत्वपूर्ण उत्पादन केंद्र हैं. इसके अलावा राज्य भर में कुछ निजी सूकर फार्म भी संचालित हो रहे हैं. पर वहां सूकरों की संख्या इतनी नहीं कि बड़े पैमाने पर इन्हें वितरित किया जा सके. इससे सरकारी योजनाएं प्रभावित हो रही हैं.
कल्याण विभाग से संबद्ध झारखंड जनजातीय विकास कार्यक्रम के तहत राज्य के कुल 14 जिलों में सूकर, बकरी व मुरगी शेड बनवाये गये हैं. झारखंड आदिवासी सशक्तीकरण व अाजीविका कार्यक्रम (जेटीइएलपी) के तहत जनजातीय बहुल गांवों में ये शेड बनवाये गये हैं. गोड्डा, साहेबगंज, गुमला व जामताड़ा जिले में सौ-सौ यानी कुल चार सौ सूकर शेड बने हैं, पर इन सबके लिए सूकर नहीं मिल रहे हैं.
एक सूकर शेड में चार मादा व दो नर यानी कुल छह सूकर रखे जाने हैं. पर 3656 के लक्ष्य के विरुद्ध अब तक 731 सूकर ही मिले हैं. बीएयू में विकसित टीएंडडी (झारसुक) नस्ल के सूकरों के वितरण को प्राथमिकता दी जा रही है, पर यह नहीं मिलने से दूसरे नस्ल के सूकर भी दिये जा रहे हैं. पर ये भी पर्याप्त नहीं हैं. मनरेगा के तहत बने सूकर शेड में भी यही समस्या है.
अधिकारियों को यह समझ नहीं आ रहा है कि वित्तीय वर्ष 2017-18 में जो शेड बनेंगे, उनके लिए सूकर कहां से आयेंगे. गौरतलब है कि अगले वर्ष जेटीइएलपी व मनरेगा के तहत 8800 पशुपालन शेड बनाने का लक्ष्य है. इनमें करीब डेढ़ हजार शेड सूकर के होंगे. इससे पहले समीक्षा बैठक में सूकरों की कमी का यह मुद्दा मुख्य सचिव के समक्ष भी उठा था. इस पर मुख्य सचिव ने सलाह दी थी कि जेटीइएलपी भी छह सूकर ब्रिडिंग सेंटर खोले. इसके बाद गुमला जिले के सिसई प्रखंड के कुदरा गांव में अभी एक ब्रिडिंग सेंटर शुरू हुआ है, पर यहां सूकरों को बच्चे जनने में अभी वक्त लगेगा. एक सूकर साल में दो बार अधिकतम एक दर्जन बच्चे देते हैं.