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राज्य में वर्ष 2011 से ही वर्जित है 40 माइक्रोन तक के पॉलिथीन का निर्माण और उपयोग, पॉलिथीन प्रतिबंधित करना नहीं, प्रतिबंध को लागू करना सरकार के लिए चुनौती

झारखंड सरकार ने पॉलिथीन के उपयोग पर प्रतिबंध तो कई बार लगाया, लेकिन इसे कभी सख्ती से लागू नहीं किया गया. अपवादों को छोड़ दें, तो अब तक राज्य में कहीं भी पॉलिथीन के निर्माण या उपयोग करने पर किसी को दंडित नहीं किया गया है. जानकार कहते हैं कि पॉलिथीन को प्रतिबंधित करना नहीं, […]

झारखंड सरकार ने पॉलिथीन के उपयोग पर प्रतिबंध तो कई बार लगाया, लेकिन इसे कभी सख्ती से लागू नहीं किया गया. अपवादों को छोड़ दें, तो अब तक राज्य में कहीं भी पॉलिथीन के निर्माण या उपयोग करने पर किसी को दंडित नहीं किया गया है. जानकार कहते हैं कि पॉलिथीन को प्रतिबंधित करना नहीं, बल्कि इस प्रतिबंध को लागू कराना राज्य सरकार के लिए चुनौती है.
रांची: पर्यावरणविद और सामाजिक कार्यकर्ताओं के दबाव के बाद झारखंड सरकार ने 16 मार्च 2011 को झारखंड में पहली बार पॉलिथीन पर प्रतिबंध लगाया गया था. उस समय राज्य में में 40 माइक्रोन तक के पॉलिथीन का उपयोग वर्जित किया गया. 2013 में एक बार पॉलिथीन प्रतिबंधित करने का आदेश दिया. 40 माइक्रोन से कम मोटाई की पॉलिथीन बैग के निर्माण व उपयोग को प्रतिबंधित किया गया.

नियम का पालन न करने वालों को आईपीसी की धारा 133 (बी) के तहत सजा देने का कानून बनाया. झारखंड म्युनिसिपल एक्ट की धारा 155 के तहत नियम का उल्लंघन करनेवालों के खिलाफ जुर्माना वसूलने का प्रावधान बनाया गया. लेकिन, इसे कोई मानने को तैयार नहीं है़. आंकड़े बताते हैं कि राज्य भर में रोजाना लगभग 60 टन कचरा केवल पॉलिथीन (40 माइक्रोन से कम) के रूप में निकल रहा है.

पाॅलिथीन की वजह से नीचे चला गया है भू-जलस्तर : झारखंड में 50 से 55 फीसदी क्षेत्र पठारी है. बारिश का पानी ज्यादातर जगहों पर बहते हुए ही निकलता है. जहां-तहां फेेंके गये पॉलिथीन की वजह से राज्य के तकरीबन सभी शहरों में ग्राउंड वाटर लेबल काफी नीचे चला गया है. पॉलिथीन हाइड्रोलॉजिकल साइकिल में अवरोधक बन जाता है. पॉलिथीन की परत के कारण धरती को न तो पर्याप्त मात्रा में जल मिल पाता है, और न ही वह पानी का उत्सर्जन कर पाती है. विशेषज्ञ पिछले कुछ वर्षों से राज्य में होनेवाली असमान्य बारिश का कारण पॉलिथीन को ही बताते हैं. जानकारों के अनुसार पॉलिथीन पर प्रतिबंध का कड़ाई से पालन हो, तो शहरों में ग्राउंड वाटर लेबल स्वत: ही ऊपर आ जायेगा. साथ ही, हर वर्ष बनने वाली सुखाड़ की स्थिति में भी सुधार जरूर होगा.
कई राज्यों में पॉलिथीन के इस्तेमाल पर हो जाती है जेल : देश के कई राज्यों में पॉलिथीन का इस्तेमाल करने पर जेल जाना पड़ सकता है. हिमाचल प्रदेश पहला राज्य था, जिसने पॉलिथीन पर वर्ष 2002 में ही पूर्णत: प्रतिबंध लगा दिया था. देश के कई बड़े शहरों में यह प्रतिबंधित है. मुंबई, हैदराबाद, चंडीगढ़ जैसे शहरों में इसका प्रयोग नहीं किया जाता है. कई राज्यों ने पॉलिथीन के प्रयोग को रोकने के लिए कड़े कानून बनाये हैं. उपयोग करते हुए पकड़े जाने पर 500 रुपये सेे एक लाख रुपये तक का नकद जुर्माना भरना पड़ सकता है. जुर्माने की राशि अदा नहीं करने पर पांच साल तक की सजा भी हो सकती है.
पॉलिथीन का इस्तेमाल बंद करना इसलिए है जरूरी : पर्यावरण और आम जन-जीवन पर पड़नेवाले दुष्प्रभाव के कारण पॉलिथीन का इस्तेमाल बंद करना जरूरी है. इस्तेमाल के बाद फेंका गया पॉलिथीन गाय और उस जैसे अन्य पशुओं के मौत का कारण भी बनता है. कई शहरों के नगर निकायों के अध्ययन में पाया गया है कि शहर से रोज निकाले जानेवाले कूड़े का 50 से 60 फीसदी प्लास्टिक उत्पाद होता है. निकायों में तकरीबन सभी जगहों पर कूड़े का 20 फीसदी हिस्सा उपयोग किया गया पॉलिथीन पाया गया. इस्तेमाल के बाद फेेंके गये पॉलिथीन के कारण वायु, जल और भूमि प्रदूषण तो बढ़ ही रहा था, साथ ही शहरों के सीवरेज सिस्टम पर व्यापक असर पड़ रहा था. नालियों का जाम होना, सड़कों पर नालियों का पानी बहना और बरसात के मौसम में नारकीय स्थिति से बचने के लिए कई शहरों में पॉलिथीन पर प्रतिबंध पूरी कड़ाई के साथ लागू किया गया है. हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों में बढ़ते भूस्खलन का कारण पॉलिथीन को मानते हुए प्रतिबंधित किया गया है.

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