गोड्डा: खदान में पिछले 10 दिनों से दरारें पड़ रही थीं. कर्मियों का कहना है कि उन्होंने चेताया भी था. लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया और गुरुवार को जबरन काम चालू करा दिया गया. महालक्ष्मी खनन कंपनी गुजरात की है. यहां खनन कार्य में काम कर रहे एक भी लोग स्थानीय नहीं थे. सभी गुजरात, बिहार, यूपी व झारखंड के गढ़वा व रामगढ़ इलाके के थे. मलबा में दबे सकील खान के परिजन मो सरफराज ने बताया कि गुरुवार शाम सात बजे घटना हुई है. लेकिन सलील का कोई अता-पता नहीं है.
कंपनी का कोई पदाधिकारी भी देखने तक नहीं आया है. वहां काम कर रहे कर्मी अलीम अंसारी, नाइट इंचार्ज चंद्रिका तिवारी ने बताया कि कंपनी के काम में लगे कोई भी लोग निबंधित नहीं थे. उन्हें वेतन भी मनमाना मिलता था, कभी दस हजार तो कभी बारह हजार. किसी कर्मी को बैंक खाते में तो किसी को हाथोंहाथ ही वेतन दे दिया जाता था. इसका कोई लेखा-जोखा मौजूद नहीं था. कर्मियों का लेखा-जोखा गगन सिंह रखा करता था. उसी के पास सबकी फाइल रहती थी. गुरुवार की घटना में वह भी मलबा में समा गया.
आंखों में आंसू लिये निकाल रहे थे साथियों की लाश
सुबह होते ही महालक्ष्मी कंपनी में कार्यरत लोग रात की दुर्घटना के बाद मलबा में दबे अपने सहकर्मियों को बचाने के प्रयास लग गये थे. मलबा व मशीनों के बीच फंसे लाशों को हटाने का काम किया. सुबह से पूरी मेहनत कर करीब 25-30 लोगों ने सुबह के दस बजे तक दो लोगों की लाश निकालने में सफल हुए. इनमें से नागेश्वर पासवान तथा राजेंद्र यादव का नाम शामिल है. कर्मियों ने पुन: मलबा से क्रमबद्ध करीब सात लाशों को दिन के ढाई बजे तक निकाल लिया. जबकि सुबह के वक्त घटना का जायजा लेने डीआइजी अखिलेश झा, महगामा एसडीपीओ आर मित्रा, एसडीओ संजय पांडेय तथा चार थाना के इंस्पेक्टर घटनास्थल पर पहुंचे.
देखते-देखते गर्त में समा गया सबकुछ
महालक्ष्मी कंपनी में कार्यरत मो मंसूर अंसारी (24) बताता है कि रात की शिफ्ट में उनके साथी काम में थे. अचानक जोरदार आवाज हुई और हंगामा करते हुए कुछ लोग इधर-उधर भागने लगे. कंपनी के कैंप में करीब 35 गाड़िया व मशीन के अलावा 40-41 की संख्या में कर्मी काम कर रहे थे. लोग भाग पाते इसके पहले पूरा मलबा मशीन व कर्मी समेत गर्त में चला गया. मंसूर कैंप से करीब 200 फीट की दूरी पर था. एक बार तो लोगों के चीखने चिल्लाने की आवाज की ओर जाने की कोशिश की, लेकिन पल भर में उसे समझ में आ गया कि माजरा क्या है. जब तक मंसूर पूरी घटना समझ, पाता करीब 1500 फीट नीचे सबकुछ मलबा में समा चुका था.
लगातार होती रही अनदेखी, अधिकारी छिपाते रहे सच्चाई
राजमहल परियोजना लगातार नियमों की धज्जी उड़ाते हुए विगत वर्ष 2012 से खनन कार्य में जुटी थी. खान अधिनियम 1957 के अनुसार बेंच कटिंग को अनिवार्य बताया गया है. यहां कभी भी बेंच कटिंग हुई ही नहीं. अगर इस नियम का पालन होता, तो स्लाइडिंग नहीं होती. डंप मिट्टी के नीचे से कोयला निकाला जा रहा था. जबकि पहले मिट्टी हटा कर कोयला निकाला जाना था. लेकिन कंपनी ज्यादा मुनाफा कमाने के चक्कर में डंप मिट्टी के नीचे से कोयला निकालने लगी. इस मानक को लागू करने के लिए वर्ष 2015 में स्थानीय समाजसेवी आशुतोष चक्रवर्ती ने निवर्तमान डीसी राजेश शर्मा को आवेदन दिया था कि कोयले की कटिंग में सेप्टी रूल को ध्यान में नहीं रखा जा रहा है. बावजूद इसके कोई कार्रवाई नहीं हुई.
हादसे की वजह 9.5 मिलियन क्यूबिक मीटर ओबी !
इसीएल की राजमहल परियोजना के भोड़ाय ओपेन कास्ट माइंस में हुई दुर्घटना की मुख्य वजह 9.5 मिलियन क्यूबिक मीटर ओवर बर्डन (ओबी) का अपने जगह से खिसकना बताया जा रहा है. प्रारंभिक जांच जो बातें सामने आयी है. उससे पता चलता है कि करीब 310 मीटर लंबा व 100 मीटर चौड़ा ओवर बर्डन का ढेर अपने स्थान से खिसक गया है, जिस कारण यह हादसा हुआ है. विशेषज्ञों की माने तो इतनी बड़ी मात्रा में ओबी खिसकने की मुख्य कारण ओवर बर्डन के तलहट्टी (नीचे का स्थान) का इनमैच्योर होना बताया जा रहा है. दुर्घटना के बाद ओवरबर्डन की ऊचाई 310 से घट कर 275 मीटर रह गयी है, जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि दुर्घटना कितनी भयावह होगी.