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आदिवासी-मूलवासी के लिए विनाशकारी है संशोधन, हस्तक्षेप करें

रांची: राज्य सरकार द्वारा सीएनटी-एसपीटी एक्ट में किये गये संशोधन के खिलाफ विपक्ष ने राष्ट्रपति का दरवाजा खटखटाया है. झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरेन के नेतृत्व में विपक्ष ने राष्ट्रपति डॉ प्रणब मुखर्जी को ज्ञापन सौंप कर इस मामले में हस्तक्षेप का आग्रह किया है. विपक्ष के नेताओं ने आरोप लगाया कि सरकार संख्या बल के […]

रांची: राज्य सरकार द्वारा सीएनटी-एसपीटी एक्ट में किये गये संशोधन के खिलाफ विपक्ष ने राष्ट्रपति का दरवाजा खटखटाया है. झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरेन के नेतृत्व में विपक्ष ने राष्ट्रपति डॉ प्रणब मुखर्जी को ज्ञापन सौंप कर इस मामले में हस्तक्षेप का आग्रह किया है. विपक्ष के नेताओं ने आरोप लगाया कि सरकार संख्या बल के आधार पर आदिवासी मूलवासी को तबाह करने पर आमादा है. इससे आदिवासी-मूलवासी गहरे संकट में हैं.
राष्ट्रपति से मिलनेवालों में झामुमो, कांग्रेस, झाविमो और वामदलों के नेता शामिल थे. इन लोगों ने राष्ट्रपति से कहा है कि सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन विनाशकारी है. इससे आदिवासी-मूलवासी तबाह हो जायेंगे. वे इस मामले में हस्तक्षेप करें अौर संशोधन पर सहमति न दें. विपक्षी नेताओं ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार ने इस संशोधन को विधानसभा से असंवैधानिक तरीके से पारित कराया है. एक छोटा सत्र आहूत कर सरकार ने बिना बहस के ही इसे पारित कर दिया.
राष्ट्रपति के पास पहुंचे थे ये नेता
प्रतिपक्ष के नेता हेमंत सोरेन, सांसद विजय हांसदा, कांग्रेस अध्यक्ष व विधायक सुखदेव भगत, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय, झामुमो विधायक स्टीफन मरांडी, चंपई सोरेन, नलिन सोरेन, जगन्नाथ महतो, कुणाल षाड़ंगी, रवींद्र नाथ महतो, जय प्रकाश भाई पटेल, दीपक बिरुआ, पौलुस सुरीन, निरल पूर्ति, शशिभूषण सामड़, अनिल मुरमू, दशरथ गागराई, अमित महतो, चमरा लिंडा, मासस विधायक अरूप चटर्जी, माले के पूर्व विधायक विनोद सिंह, सुप्रियो भट्टाचार्य और विनोद पांडेय.
राष्ट्रपति को गिनायी संशोधन की खामियां
विपक्षी नेताओं ने राष्ट्रपति को सौंपे ज्ञापन में कहा है कि जमीन ही आदिवासी-मूलवासी की पूंजी है, जमीन उनका स्वाभिमान है. एक्ट में संशोधन का विनाशकारी प्रभाव आदिवासी-मूलवासी के सामाजिक और आर्थिक ढांचे पर पड़ेगा. क्योंकि वर्तमान संशोधन पिछले सभी संशोधनों से अलग है. सीएनटी-एसपीटी की जमीन को कृषि भूमि से गैरकृषि घोषित होते ही उस पर यह कानून प्रभावी नहीं होगा. सरकार के संशोधन के बाद यह कानून एक जिंदा लाश की तरह हो जायेगा. कानून तो वैध रहेगा, लेकिन प्रभावी नहीं होगा. कृषि भूमि को गैर कृषि भूमि घोषित कर उस पर व्यावसायिक लगान वसूल करना, कानून की मूल भावना के विपरीत है. भूमि अधिग्रहण कानून-2013 में प्रावधान है कि जमीन अधिग्रहण के लिए रैयतों की सहमति और सामाजिक अंकेक्षण जरूरी है. सरकार इसी से बचने के लिए संशोधन कर रही है. सरकार ने मालिकाना हक की बात कर भ्रांति बना रही है. भूमि अधिनियम में मालिकाना हक शब्द का उपयोग पहले नहीं हुआ है.

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