ज्ञापन में कहा गया है कि झारखंड जनजातीय परामर्शदातृ परिषद की जगह सही नाम झारखंड जनजाति सलाहकार परिषद प्रतिष्ठापित किया जाये़ संविधान के पारा चार (एक) के अनुसार जनजाति सलाहकार परिषद में कुल 20 जनजाति समुदाय के लोग ही होने चाहिए, जिसमें 15 जनजाति विधायक व शेष पांच अनुसूचित जनजाति के सदस्य होंगे, जबकि मुख्यमंत्री रघुवर दास जो गैर आदिवासी विधायक हैं इसमें पदेन अध्यक्ष के रूप में शामिल है़ं
बैठक के लिए जनजाति सलाहकार परिषद के सदस्य सचिव, सह सचिव कल्याण विभाग द्वारा पूर्ण हस्ताक्षर और पांच कार्य दिवस को ध्यान में रख कर पत्र निर्गत करना जरूरी है़ पर यह पत्र रविवार 30 अक्तूबर को निर्गत किया गया है, जिसमें संलग्न कार्यवली में किसी सक्षम पदाधिकारी का हस्ताक्षर भी नहीं है. इसमें संशोधनों की पंक्तियां दर्ज हैं, जबकि इसके साथ ही वर्तमान धाराओं को भी लिखे जाने की आवश्यकता थी़ संविधान की नौवीं अनुसूचि की क्रम संख्या 209, 210 व 211 में सीएनटी एक्ट 1908, एसपीटी एक्ट 1949 व बिहार अनुसूचित क्षेत्र विनियम 1969 अंकित है़ इनमें संशोधन के लिए राज्यपाल द्वारा टीएसी के समक्ष विशेष प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाना था़ क्या राज्यपाल ने टीएसी की बैठक में सीएनटी एक्ट 1908 व एसपीटी एक्ट 1949 की धाराओं में संशोधन के लिए कोई निर्देश दिया है? क्या राष्ट्रपति ने संशोधन अध्यादेश को निरस्त किया है? यदि निरस्त नहीं किया गया है, तब तीन नवंबर को होने वाली टीएसी की बैठक में प्रावधानों को संशोधित करने के लिए परामर्श लेने की जरूरत क्यों हुई?
झारखंड जनजाति सलाहकार परिषद के गठन व कार्य पद्धति से संबंधित नियमावली आज तक नहीं बनी है़ फिर किस आधार पर इसकी बैठक बुलायी गयी है? राष्ट्रपति ने 11 अप्रैल 2007 को झारखंड के 12 जिले, तीन प्रखंड व दो पंचायतों को अनुसूचित क्षेत्र घोषित किया है, जहां जमीन अधिग्रहण व हस्तांतरण के लिए केंद्रीय कानून पी-पेसा 1996 की धाराएं प्रभावी है, जिसमें संशोधन का अधिकार राज्य सरकार को नहीं है.