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जमीन बंजर कर जल संकट का कारण बनती है पॉलिथीन

रांची : पॉलिथीन के बढ़ते इस्तेमाल ने सबसे ज्यादा नुकसान पर्यावरण को पहुंचाया है. समूचे मानव जाति के लिए पॉलिथीन अभिशाप बन गया है. पर्यावरणविदों का मानना है कि पॉलिथीन जिंदा वातावरण को निर्जीव बना रहा है. इसमें बिस्थेनॉल नामक जहरीला रसायन होता है. यह तालाब एवं नदियों के पानी को जहरीला बना देता है. […]

रांची : पॉलिथीन के बढ़ते इस्तेमाल ने सबसे ज्यादा नुकसान पर्यावरण को पहुंचाया है. समूचे मानव जाति के लिए पॉलिथीन अभिशाप बन गया है. पर्यावरणविदों का मानना है कि पॉलिथीन जिंदा वातावरण को निर्जीव बना रहा है. इसमें बिस्थेनॉल नामक जहरीला रसायन होता है. यह तालाब एवं नदियों के पानी को जहरीला बना देता है. इससे जैव विविधता घट रही है. पॉलिथीन मिट्टी की उर्वरा शक्ति को खत्म कर रहा है. भूमिगत जल स्तर को नीचे ले जा रहा है. कुओं, नदियाें, तालाबों के अलावा पाॅलिथीन पेड़-पौधों को भी पूरी तरह से बर्बाद कर रहा है. इससे मिट्टी, पानी खींचने का अपना स्वाभाविक गुण छोड़ देती है. ऐसे में जमीन बंजर हो जाती है. साथ ही, उस क्षेत्र का जलचक्र भी बुरी तरह प्रभावित होता है.
पर्यावरण चक्र को कर करता है अवरुद्ध : पर्यावरणविद् डॉ हेम श्रीवास्तव कहती हैं : प्लास्टिक कचरे के जमीन में दबने से वर्षा जल का भूमि में संचरण नहीं हो पाता. परिणाम यह होता है कि भू-जल स्तर गिरने लगता है. जमीन के अंदर पानी कम होने के कारण भूकंप का असर ज्यादा हो रहा है.

प्लास्टिक कचरा प्राकृतिक चक्र में नहीं जा पाता, जिससे पूरा पर्यावरण चक्र अवरुद्ध हो जाता है. पॉलिथीन हाइड्रोलॉजिकल साइकिल में अवरोधक बन जाता है. पॉलिथीन की परत के कारण धरती को न तो पर्याप्त मात्रा में जल मिल पाता है और न ही वह पानी का उत्सर्जन कर पाती है. पहाड़ों के आसपास प्लास्टिक फेंकने से मिट्टी के अंदर प्लास्टिक चला जाता है. जिस कारण मिट्टी ढीली हो जाता है. भू-स्खलन के समय सरकने वाली मिट्टी को सहारा नहीं मिल पाता है. नतीजतन ज्यादा बारिश होने पर भू-स्खलन का खतरा बना रहता है. मिट्टी के अंदर पॉलिथीन धीरे-धीरे बैठ जाता है. इस कारण पेड़ बढ़ नहीं पाते हैं. पेड़ को जल और भोज्य पदार्थ नहीं मिल पाता है. इस कारण उनकी डालियां टूटने लगती हैं.

हर तरह से पहुंचा रहा नुकसान : पर्यावरणविद् डॉ नीतीश प्रियदर्शी कहते हैं : पॉलिथीन पर्यावरण को हर तरह से नुकसान पहुंचा रहा है. यह जल्दी सड़ता-गलता नहीं है. 100-200 सालों तक यह मिट्टी के अंदर रहने के बाद भी गलता नहीं है. खुले में जलाने से डाइ-ऑक्सीन गैस निकलता है, जो कि बहुत जहरीला होता है. इसके धुएं से सांस लेने में तकलीफ और आंख में जलन होती है. मिट्टी के अंदर दब गया, तो मिट्टी की उर्वरा शक्ति धीरे-धीरे खत्म कर देता है. बारिश का पानी, जो भूमि के अंदर भूमिगत जल को रिचार्ज करता है, उसको पॉलिथीन रोकता है. इसी कारण गरमी के दिनों में तालाब और कुएं जल्दी सूखने लगते हैं. पॉलिथीन में मौजूद (खासकर रंगीन पॉलिथीन) में मौजूद जहरीले तत्व भूमिगत जल को प्रदूषित करते हैं. जानवर अगर पॉलिथीन खा ले, तो यह उसके आंत में फंस जाता है. इससे जानवरों की अकाल मृत्यु तक हो जाती है.
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यदि आपने अपने संस्थान, प्रतिष्ठान, स्कूल, कॉलेज, साेसाइटी, घर काे पॉलिथीन फ्री किया है, ताे हमें बतायें. आपकी बातें हम पाठकाें तक पहुंचायेंगे, ताकि वह भी इससे प्रेरणा लेकर मुहिम में शामिल हाें. पॉलिथीन के खिलाफ काेई मुहिम भी चलाते हैं, ताे इसका ब्याेरा हमें भेजें. आप अपना ब्याेरा मेल आइडी
vivek.chandra@prabhatkhabar.in पर भेजें.

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