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पांच महीनों में वितरण निगम ने खरीदी 2125 करोड़ की बिजली

रांची : झारखंड बिजली वितरण निगम ने पिछले पांच महीनों में 2125 करोड़ रुपये की बिजली खरीदी है. वित्तीय वर्ष 2016-17 में अप्रैल महीने से अगस्त तक हर महीने औसतन 425 करोड़ रुपये की बिजली खरीदी गयी है. अकेले दामोदर वैली कॉरपोरेशन से हर महीने 210 करोड़ की बिजली वितरण निगम खरीदता है. डीवीसी क्षेत्र […]

रांची : झारखंड बिजली वितरण निगम ने पिछले पांच महीनों में 2125 करोड़ रुपये की बिजली खरीदी है. वित्तीय वर्ष 2016-17 में अप्रैल महीने से अगस्त तक हर महीने औसतन 425 करोड़ रुपये की बिजली खरीदी गयी है. अकेले दामोदर वैली कॉरपोरेशन से हर महीने 210 करोड़ की बिजली वितरण निगम खरीदता है.

डीवीसी क्षेत्र में अपना ट्रांसमिशन सिस्टम नहीं होने की वजह से डीवीसी से ही बिजली खरीद कर वहां सप्लाई की जाती है. डीवीसी निगम को 4.90 रुपये प्रति यूनिट की दर से खरीद कर 2.10 रुपये प्रति यूनिट की दर बिजली की आपूर्ति करते हुए निगम लगातार घाटा उठा रहा है. बल्क पॉवर कंज्यूमर्स के लिए निर्धारित दर अधिक होने और डोमेस्टिक कंज्यूमर्स के लिए निर्धारित दर कम होने की वजह से निगम को महंगी बिजली खरीद कर सस्ती दर पर आपूर्ति करनी पड़ रही है.
केवल टीवीएनएल पर निर्भर है पूरा राज्य
झारखंड सरकार गुजरे वर्षों में अपना एक भी नया पॉवर प्लांट नहीं लगा सकी है. राज्य गठन के बाद लगी दो निजी कंपनियों द्वारा लगाये गये पावर प्लांट से राज्य को अतिरिक्त बिजली मिलती है. इनलैंड पावर से 55 मेगावाट व आधुनिक पावर से 122 मेगावाट अतिरिक्त बिजली राज्य को मिल रही है. पीटीपीएस की स्थिति जस की तस है. रघुवर दास की सरकार ने एनटीपीसी के हाथों पीटीपीएस का संचालन सौंप दिया है.

एनटीपीसी वहां चार हजार मेगावाट का पावर प्लांट लगायेगा और पीटीपीएस के वर्तमान प्लांट से उत्पादन 325 मेगावाट तक बढ़ायेगा. हालांकि इसमें समय लगेगा. वर्तमान में राज्य में बिजली की पूरी निर्भरता टीवीएनएल पर है. यहां से लगभग 380 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है. सिकिदिरी हाइडल की स्थिति सामान्य नहीं है. केवल बारिश के मौसम में ही यह यूनिट चालू होती है. इससे पीक ऑवर में 120 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है.
लगातार बढ़ रहा है घाटा
वर्ष 2010 में राज्य में 14 लाख बिजली के उपभोक्ता थे, जो 2016 में बढ़ कर 26 लाख हो गये. उस समय 82 करोड़ यूनिट बिजली की खपत प्रतिमाह होती थी. राजस्व 125 करोड़ मिलता था, जबकि खर्च 260 करोड़ रुपये प्रतिमाह था. अब उपभोक्ताओं की संख्या बढ़ने से प्रतिमाह 97 करोड़ यूनिट की खपत होती है. राजस्व 220 करोड़ ही प्राप्त होता है. झारखंड विद्युत वितरण निगम लिमिटेड 425 करोड़ रुपये की बिजली प्रतिमाह खरीदता है. निगम का अपना स्थापना व्यय 35 करोड़ के करीब है. यानी निगम को प्रतिमाह अभी भी 205 करोड़ रुपये का घाटा हो रहा है.

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