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लोगों की सुविधा के लिए सरकार ने शुरू की ऑनलाइन सुविधाएं, लेकिन प्रज्ञा केंद्र बन गये वसूली का अड्डा

सरकार हर सेवा को आइटी (इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी) से जोड़ रही है. उद्देश्य है कि अधिक से अधिक लोगों को सरकारी सेवाओं का लाभ मिले और उन्हें सरकारी बाबुओं की चिरौरी न करनी पड़े. इसी कड़ी में राज्य में जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र सहित अन्य प्रमाण पत्र बनाने का काम प्रज्ञा केंद्र के माध्यम से कराया जा […]

सरकार हर सेवा को आइटी (इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी) से जोड़ रही है. उद्देश्य है कि अधिक से अधिक लोगों को सरकारी सेवाओं का लाभ मिले और उन्हें सरकारी बाबुओं की चिरौरी न करनी पड़े. इसी कड़ी में राज्य में जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र सहित अन्य प्रमाण पत्र बनाने का काम प्रज्ञा केंद्र के माध्यम से कराया जा रहा है. लेकिन, मिल रही शिकायतों पर गौर करते, तो ऐसा लगता है कि ये प्रज्ञा केंद्र वसूली का अड्डा बन गये हैं.
रांची: सरकार ने प्रज्ञा केंद्रों पर आनेवाले आवेदनों के निबटारे के लिए एक समय सीमा भी निर्धारित की है. लेकिन, इन केंद्रों में कार्यरत कर्मचारी लोगों को सेवा देने के बजाये केवल अवैध वसूली के फिराक में लगे रहते हैं. नतीजतन, जो काम दो से तीन दिनों में हो जाना चाहिए, उसके लिए भी लोगों को महीनों तक प्रज्ञा केंद्रों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं.

शहर में करीब 40 प्रज्ञा केंद्र हैं. सबसे अधिक भीड़ रांची नगर निगम के प्रज्ञा केंद्र में होती है. इस कारण सबसे अधिक दलाल भी यहीं दिखायी देते हैं, जिनकी सांठगांठ केंद्र के काउंटर पर बैठे कर्मचारी से होती है. यहां आनेवाला जो व्यक्ति सीधे दलाल से संपर्क करता है, उसका काम मिनटों में होता है. वहीं, जो व्यक्ति काउंटर पर बैठे कर्मचारी को आवेदन देता है, उसे जवाब मिलता है कि पहले से ही बहुत बैकलाॅग चल रहा है. आप 10 दिनों बाद आइए. दलाल ऐसे आवेदनकर्ता पर गिद्ध दृष्टि जमाये रहते हैं. जिन लोगों का आवेदन काउंटर पर स्वीकार नहीं होता, उन्हें भी दलाल अपने जाल में फांस लेते हैं. वे मोलभाव करते हैं. आदमी की औकात अौर उसके काम के हिसाब से 300-1000 रुपये तक वसूले जाते हैं.
कर्मचारी बार-बार दौड़ाते हैं आवेदक को : जो व्यक्ति दलाल से संपर्क नहीं करते और 10 दिनों बाद दोबारा प्रज्ञा केंद्र में पहुंचता है. उसे सर्वर और लिंक खराब होने का हवाला देकर दोबारा 10 दिनों बाद आने को कहा जाता है. ऐसे ही बहाने बना कर आवेदक को बार-बार दौड़ाया जाता है. चूंकि प्रज्ञा केंद्र का सारा काम आॅनलाइन है. ऐसे में जब तक आपके आवेदन की इंट्री नहीं हो जाती है, उसे ट्रैक नहीं किया जा सकता है. यानी आप यह किसी वरीय पदाधिकारी के पास नहीं कर सकते हैं कि आपका आवेदन कितने दिनों से पेंडिंग है.
परची से होता है पैसे के लेनदेन का सारा खेल
दलाली के इस खेल में नीचे से लेकर ऊपर तक के पदाधिकारी शामिल रहते हैं. बात चाहे रजिस्ट्रार की हो या एसडीओ ऑफिस में बैठे कर्मचारियों की. हर जगह का रेट फिक्स रखा है. एसडीओ ऑफिस में गवाही के नाम पर लोगों से 100 से लेकर 300 रुपये तक की वसूली की जाती है. वहीं रजिस्ट्रार के यहां अग्रसारित कराने के नाम पर भी 50-200 रुपये प्रति आवेदन वसूले जाते हैं.
सीसीटीवी नाम का अंदर बैठते हैं बिचौलिये
निगम स्थित प्रज्ञा केंद्र में दलाली पर रोकने के लिए सीसीटीवी कैमरा भी लगाया गया है, लेकिन यह कैमरा केंद्र के बाहर में लगाया गया है. केंद्र के अंदर में कैमरा नहीं होने के कारण वकील और दलाल यहां अंदर ही बैठे रहते हैं. अंदर बैठ कर ये दलाल जिन आवेदनों का नंबर बताते हैं, केंद्र में बैठे कर्मचारी केवल उनका ही इंट्री करते हैं.
केस: 1
बिरसा चौक के अंकित कुमार ने अपने बेटे के जन्म प्रमाण पत्र के लिए 15 दिन पहले आवेदन निगम के प्रज्ञा केंद्र में जमा किया. अब तक अंकित के आवेदन की इंट्री भी नहीं हुई है. अंकित जब भी प्रज्ञा केंद्र में अपने आवेदन की स्थिति जानने जाता है, उससे कहा जाता है कि नेट की समस्या है. आपके आवेदन की इंट्री अब तक नहीं हुई है. अंकित कहते हैं कि केंद्र में कार्यरत एक लड़के ने उनसे चाय-पानी का खरचा मांगा था, जो उन्होंने नहीं दिया. इसलिए आवेदन को इंट्री ही नहीं कर रहे हैं.
केस-2
रातू रोड इंद्रपुरी के सोनी देवी ने अपने बेटी के प्रमाण पत्र
के लिए प्रज्ञा केंद्र में आवेदन किया. 20 दिनों तक उसके आवेदन की इंट्री नहीं की गयी. इस पर सोनी ने इसकी शिकायत निगम के वरीय अधिकारियों से की. वरीय अधिकारियों के आदेश के बाद सोनी के आवेदन को एक सप्ताह में बना कर दिया गया. परंतु इसमें भी प्रज्ञा केंद्र के कर्मचारियों ने खेल कर दिया. इसमें बच्चे के स्पैलिंग में ही इन कर्मचारियों ने गलती कर दी.

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