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झारखंड में बैंकों के 46 अरब डूबने के कगार पर

रांची jivesh.singh@prabhatkhabar.in झारखंड में बैंकों के 45 अरब 97 करोड़ 97 लाख रुपये डूबने के कगार पर हैं. 31 मार्च 2016 को जारी राज्यस्तरीय बैंकर्स समिति (एसएलबीसी) की रिपोर्ट में बताया गया है िक झारखंड में कार्यरत 41 बैंकों में से 35 की विभिन्न शाखाओं से लोन के रूप में दिये गये पैसों में से […]

रांची
jivesh.singh@prabhatkhabar.in
झारखंड में बैंकों के 45 अरब 97 करोड़ 97 लाख रुपये डूबने के कगार पर हैं. 31 मार्च 2016 को जारी राज्यस्तरीय बैंकर्स समिति (एसएलबीसी) की रिपोर्ट में बताया गया है िक झारखंड में कार्यरत 41 बैंकों में से 35 की विभिन्न शाखाओं से लोन के रूप में दिये गये पैसों में से 459797.89 लाख रुपये की सही तरीके से वसूली नहीं हो पा रही है. बैंकों ने इस राशि को एनपीए (नॉन-परफॉर्मिंग एसेट) की श्रेणी में डाल रखा है. जिनके सबसे ज्यादा पैसे फंसे हैं, उनमें पहले स्थान पर पंजाब नेशनल बैंक है. पीएनबी ने अपनी विभिन्न शाखाओं से लोन के रूप में जारी 89288.15 लाख रुपये को एनपीए खाता में डाल रखा है.
दूसरे स्थान पर बैंक अॉफ इंडिया और तीसरे स्थान पर स्टेट बैंक अॉफ इंडिया है. बीअोआइ के 88155.09 लाख व एसबीआइ के 79240.16 लाख रुपये फंसे हैं.
रांची में सबसे अधिक एनपीए : राज्य के सभी जिलों में बैंकों के पैसे फंसे हैं. सबसे ज्यादा पैसे रांची (130096.01 लाख) व सबसे कम पैसे पाकुड़ (3788.59 लाख) में फंसे हैं. इसके अलावा कुछ बैंकों ने वैसे लोनधारकों की भी सूची जारी की है, जिन्हें विलफुल डिफॉल्टर (वैसे कर्जधारक, जो जानबूझ कर पैसे नहीं देते) की सूची में रखा गया है. 31 मार्च को जारी सूची के अनुसार, पंजाब नेशनल बैंक की ऐसी कर्जधारक 27 कंपनियों पर 15318 लाख रुपये बकाया हैं.

जबकि बैंक अॉफ बड़ौदा के सात डिफॉल्टरों के पास 8.32 करोड़ रुपये हैं. दूसरी ओर बैंक अॉफ इंडिया के रांची जोन की 112 शाखाओं के 32 हजार खाताधारकों पर 500 करोड़ रुपये का बकाया है. इनमें मात्र 31 खाताधारकों पर 207.48 करोड़ रुपये बकाया है. झारखंड में बैंक अॉफ इंडिया के पांच जोन हैं, जिनमें रांची, धनबाद, हजारीबाग, जमशेदपुर व संथाल शामिल हैं. रांची जोन में गढ़वा, पलामू, लातेहार, लोहरदगा, गुमला, सिमडेगा, खूंटी व रांची जिला आता है. बैंक अॉफ इंडिया झारखंड का लीड बैंक है. बैंक अॉफ इंडिया ने अपने किसी भी बकायेदार को विलफुल डिफॉल्टर की श्रेणी में नहीं रखा है. खास बात यह है कि एनपीए के इस आंकड़े में निजी क्षेत्र के सभी बैंक शामिल नहीं हैं.

इधर झारखंड में भी तैयारी : राज्य के सभी 24 जिलों में सर्टिफिकेट केसों के निष्पादन के लिए स्वतंत्र अधिकारी नियुक्त करने की प्रक्रिया अंतिम चरण में है. चुकी सर्टिफिकेट केसों का निबटारा न्यायाधिकरण में होता है, इसलिए न्यायिक पदाधिकारी के लिए विधानसभा व राज्यपाल ने अपनी मंजूरी दे दी है, अब राष्ट्रपति की मंजूरी बाकी है. इसका निष्पादन होते ही सभी जिलों में स्वतंत्र पदाधिकारी की तैनाती होगी और सर्टिफिकेट केसों के निष्पादन में तेजी आयेगी.
क्या है सरफेसी कानून : सरफेसी कानून बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों को यह अधिकार देता है कि फंसे कर्ज की वसूली के लिए रेहन रखी गयी आवासीय या कारोबारी संपत्ति को नीलाम कर सके. कानून में संशोधन होने से सभी डीआरटी ऑनलाइन हो जायेंगे, जिससे वादी-प्रतिवादी ऑनलाइन ही अपनी बात डीआरटी के समक्ष पेश कर सकेंगे. इससे मामले का निबटारा जल्द होगा.
क्या है स्टैंडर्ड, सब-स्टैंडर्ड, डाउटफुल, लॉस एसेट लोन, विलफुल डिफॉल्टर : अगर कर्जधारक समय पर लोन की वापसी करता है, तो लोन अकाउंट स्टैंडर्ड माना जाता है. दूसरी ओर जब कोई एसेट 12 महीने या उससे कम समय तक एनपीए रहता है, तो वह सब-स्टैंडर्ड एसेट कहलाता है. ऐसे लोन में देनदार के नेटवर्थ या चार्ज्ड सिक्यूरिटी की मार्केट वैल्यू इतनी नहीं होती कि उससे समूचे बकाया की वसूली हो सके. जब कोई एसेट 12 महीने तक सब-स्टैंडर्ड रहता है, तब वह डाउटफुल एसेट की श्रेणी में आ जाता है. ऐसे लोन की बकाया रकम की वसूली की संभावना बहुत कम होती है. विलफुल डिफॉल्टर की श्रेणी में वे लोग आते हैं, जिनके संबंध में बैंक यह मान लेता है कि वो पैसे रहते हुए भी देना नहीं चाहते. फिर बैंक उनके नाम आरबीआइ को भेजता है. आरबीआइ से उन्हें इस श्रेणी में रखा जाता है.
कहते हैं अर्थशास्त्री
रमेश शरण : राज्य में बैंकों का इतना बड़ा बकाया होना चिंता का विषय है. इसका मतलब है कि राज्य में उद्योग व व्यवसाय सही तरीके से नहीं चल रहे, तभी उद्योगपति व व्यवसायी पैसे नहीं लौटा रहे. बैंकों के कर्ज नहीं लौटे तो राज्य का विकास घटेगा, क्योंकि वो कर्ज नहीं देंगे. इससे खेती से लेकर सब प्रभावित होंगे. इसमें सुधार आवश्यक है.
क्या होती है दिक्कत
लोन के पैसे वापस नहीं होने के कारण बैंक बचाव की मुद्रा में काम करते हैं और फिर वे सही व्यक्ति को भी लोन देने में आनाकानी करते हैं. इससे राज्य के विकास का मार्ग अवरुद्ध होता है.
बैंकों की कार्यपूंजी कम होती है, तो केंद्र सरकार को मदद करनी होती है, इससे केंद्रीय बजट का वित्तीय घाटा और बढ़ जाता है
बढ़ते एनपीए के कारण अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों की नजर में भारतीय बैंकों व सरकार की शाख गिरती है.
अब नहीं बच पायेंगे कर्ज नहीं चुकानेवाले : बैंकों के फंस रहे पैसों को लेकर चिंतित केंद्र सरकार ने एक अगस्त को लोकसभा में कर्ज वसूली का नया कानून दि एनफोर्समेंट अॉफ सिक्यूरिटी इंटरेस्ट एडं रिकवरी अॉफ डेट लॉ एंड मिसलेनियस प्रोविजन्स (अमेंडमेंट) बिल 2016 पास किया है. इसमें सरफेसी एक्ट, डीआरटी एक्ट, इंडियन स्टांप एक्ट व डिपोजिटरी एक्ट को संशोधित किया गया है. इससे अब बैंक पैसों की वसूली ज्यादा सख्ती से कर सकेंगे.
क्यों होता है ऐसा
अभी भी झारखंड में मात्र दो जिले में ही सर्टिफिकेट केस के निष्पादन के लिए स्वतंत्र अधिकारी हैं. अन्य जिलों में यह पद प्रभार में है. इस कारण यहां सर्टिफिकेट केसों के निष्पादन में तेजी नहीं है. अभी भी यहां मात्र 4 अरब 43 करोड़ 61 लाख रुपये की वसूली के लिए सर्टिफिकेट केस चल रहा है.
खास कर बड़े ऋणधारक सोचते हैं कि उनका पूरा धंधा बैंकों से लिये कर्ज पर ही टिका है और उससे आनेवाला पैसा उनका अपना है, इस कारण वे कर्ज लौटाने की जगह उसका इस्तेमाल करने लगते हैं और फिर यह फंसता चला जाता है.
कई बार राजनीतिक या अन्य बड़े आयोजन के कारण बैंकों पर यह दबाव रहता है कि वे एक साथ भारी संख्या में लोन बांटे, ऐसे में कई बार गलत व्यक्ति को भी लोन मिल जाता है और ऐसे पैसे वसूलने में दिक्कत होती है.
क्या है एनपीए : जब कोई देनदार अपने बैंक को कर्ज चुकाने के लिए मासिक किस्त देने में नाकाम रहता है, तब उसका लोन अकाउंट नॉन-परफॉर्मिंग एसेट कहलाता है. नियमों के हिसाब से जब किसी लोन का किस्त, सूद या मूल धन (इएमआइ, प्रिंसिपल या इंटरेस्ट) निर्धारित तिथि के 90 दिन के भीतर नहीं आता, तो उसे एनपीए में डाल दिया जाता है.
किस जिले में कितना एनपीए
जिला एनपीए (रुपये में)
रांची 130096.01 लाख
बोकारो 31494.03 लाख
चतरा 4860.57 लाख
देवघर 22130.02 लाख
धनबाद 35585.70 लाख
दुमका 9033.60 लाख
पू सिंहभूम 67614.63 लाख
गढ़वा 6345.01 लाख
गिरिडीह 16116.60 लाख
गोड्डा 8623.61 लाख
गुमला 11059.52 लाख
हजारीबाग 16658.59 लाख
जिला एनपीए (रुपये में)
जामताड़ा 6293.06 लाख
खूंटी 6277.59 लाख
कोडरमा 5784.63 लाख
लातेहार 4579.94 लाख
लोहरदगा 8910.18 लाख
पाकुड़ 3788.59 लाख
पलामू 13702.61 लाख
रामगढ़ 13431.36 लाख
साहिबगंज 6032.24 लाख
सरायकेला 12091.79 लाख
सिमडेगा 6866.17 लाख
प सिंहभूम 12421.83 लाख

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