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नाम विकास प्राधिकार, काम विकास का नहीं

रांची क्षेत्रीय विकास प्राधिकार (आरआरडीए) का गठन राज्य सरकार ने इस उद्देश्य से किया था कि वह राजधानी सहित राजधानी के आसपास के क्षेत्र का समेकित विकास करेगा. शहर के सौंदर्यीकरण के लिए योजना बनायेगा. उन योजनाओं को धरातल पर उतारने का प्रयास करेगा. लेकिन आरआरडीए अपने मूल उद्देश्यों से भटक गया है़ वह सिर्फ […]

रांची क्षेत्रीय विकास प्राधिकार (आरआरडीए) का गठन राज्य सरकार ने इस उद्देश्य से किया था कि वह राजधानी सहित राजधानी के आसपास के क्षेत्र का समेकित विकास करेगा. शहर के सौंदर्यीकरण के लिए योजना बनायेगा. उन योजनाओं को धरातल पर उतारने का प्रयास करेगा. लेकिन आरआरडीए अपने मूल उद्देश्यों से भटक गया है़ वह सिर्फ नक्शा पास करने तक ही सिमट कर रह गया है़ नक्शा भी पिछले कई वर्षों से पास नहीं हो रहा है़.
रांची: रांची क्षेत्रीय विकास प्राधिकार (आरआरडीए) का गठन जिस उद्देश्य से किया गया था, वह पूरा नहीं होता दिख रहा है़ आरआरडीए का गठन इसलिए किया गया था कि वह जमीन खरीद कर मल्टीस्टोरी बिल्डिंग का निर्माण कराये. जमीन की प्लॉटिंग कर लोगों के आवास की जरूरतों को पूरा करे. कम कीमत पर आवास उपलब्ध कराये. शहरों का योजनाबद्ध तरीके से विकास करे. परंतु आरआरडीए अपने उद्देश्यों से भटक गया है. आज कचहरी चौक स्थित प्राधिकार का प्रगति सदन केवल एक नक्शा पास करनेवाली एजेंसी बन कर रह गयी है.
आरआरडीए अपने क्षेत्र में विकास का कार्य करे, इसके लिए सरकार ने इसके क्षेत्र में 243 गांवों को शामिल किया है. इसकी सीमा खूंटी, लोहरदगा सहित कई जिलों तक है. सरकार की योजना यह है कि आरआरडीए इन ग्रामीण क्षेत्रों के विकास का बेहतर प्लान बनाये. साथ ही इन क्षेत्रों में बेहतर नागरिक सुविधाएं उपलब्ध कराये. लेकिन पिछले पांच सालों में आरआरडीए ने ग्रामीण क्षेत्र से आये नक्शों के आवेदनों को भी स्वीकृति नहीं दी. जो भी आवेदन आरआरडीए में जमा हुए, उसे लगातार रिजेक्ट करने का काम किया. नक्शा पास कराने के इच्छुक लोगों के लाखों रुपये डूब गये.
मार्केट-दुकान के पैसे से कर्मचारियों को दिया जाता है वेतन
वर्तमान में आरआरडीए की राजधानी में आरटीआइ बिल्डिंग, न्यू मार्केट रातू रोड, न्यू डेली मार्केट, खादगढ़ा बस स्टैंड मार्केट, कांके मार्केट में दुकानें हैैं. इन सारी दुकानों से हर माह आरआरडीए को 25 लाख रुपये के आसपास राजस्व प्राप्त होता है. इन दुकानों के पैसे से ही आरआरडीए के कर्मियों काे वेतन भुगतान किया जाता है. वर्तमान में यहां कर्मचारियों- पदाधिकारियों की संख्या 32 के आसपास है. इन कर्मचारियों के वेतन मद में ही हर वर्ष 22 लाख से अधिक की राशि खर्च होती है. वर्तमान में आरआरडीए अगर चाहे, तो अपने इन मार्केट कॉम्प्लेक्स को डेवलप कर हर माह करोड़ों रुपये कमा सकता है. परंतु यहां के अधिकारियों में इच्छाशक्ति नहीं है.
दाग लगा ऐसा कि छुड़ाना मुश्किल
नक्शा विचलन मामले में सीबीआइ ने कई प्राथमिकी दर्ज की है. इसमें बिल्डरों के साथ-साथ आरआरडीए के अधिकारियों व कर्मचारियों को भी आरोपी बनाया गया. महीनों तक जांच चलती रही. यह जांच झारखंड हाइकोर्ट के आदेश पर सीबीआइ को दी गयी थी. इस जांच के घेरे में आये कई अधिकारी व टाउन प्लानर को जेल भी जाना पड़ा. सीबीआइ के इस जांच का असर यह पड़ा कि आज भी इस प्राधिकार में कोई भी अधिकारी मन लगा कर काम नहीं करना चाहता है. जो भी अधिकारी यहां प्रतिनियुक्ति पर आते हैं, उनकी भी यह इच्छा होती है कि जितनी जल्दी हो सरकार यहां से हमें हटा दे या अगर रहना ही पड़ा, तो हम केवल टाइम पास करके ही गुजारा करेंगे.
कर्मचारियों की भी किल्लत
नक्शा पास करनेवाली एजेंसी के रूप में अपनी पहचान बनानेवाला यह प्राधिकार आज कर्मचारियों की कमी से भी जूझ रहा है. पिछले पांच सालों में प्राधिकार को एक भी उपाध्यक्ष स्थायी रूप से नहीं मिला. इसके उपाध्यक्ष हमेशा प्रभार में ही रहे. यहां जूनियर इंजीनियरों के 15 स्वीकृत पदों में मात्र दो जेइ ही कार्यरत हैं. वहीं सात सहायक अभियंताें के पद में केवल एक सहायक अभियंता कार्यरत हैं. पिछले पांच सालों से यहां कोई फुल टाइम टाउन प्लानर भी नहीं रहा. नगर निगम के टाउन प्लानरों काे ही यहां के प्रभार में रखा गया. पिछले सात सालों से इस प्राधिकार के अध्यक्ष का पद भी खाली था, जिसे इसी महीने सरकार ने भरा. वर्तमान में इस प्राधिकार के अध्यक्ष के तौर पर परमा सिंह की नियुक्ति राज्य सरकार ने की है.

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