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कैदियों की मौत पर राज्य सरकार देती है जेल प्रशासन को राशि, अंतिम संस्कार के लिए सिर्फ 35 रुपये
रांची : जेल मैनुअल के अनुसार, झारखंड में एक कैदी के शव का अंतिम संस्कार करने के लिए राज्य सरकार की ओर से जेल प्रशासन को सिर्फ 35 रुपये दिये जाते है़ं यह व्यवस्था अंगरेजों के जमाने (वर्ष 1884) से चली आ रही है. अंगरेजों ने उस समय के हिसाब से 35 रुपये तय किये […]
रांची : जेल मैनुअल के अनुसार, झारखंड में एक कैदी के शव का अंतिम संस्कार करने के लिए राज्य सरकार की ओर से जेल प्रशासन को सिर्फ 35 रुपये दिये जाते है़ं यह व्यवस्था अंगरेजों के जमाने (वर्ष 1884) से चली आ रही है. अंगरेजों ने उस समय के हिसाब से 35 रुपये तय किये थे़ अंगरेजों की वह व्यवस्था 132 साल बाद भी लागू है.
बिरसा मुंडा केेंद्रीय कारा, होटवार के सूत्रों के अनुसार बहुत से सजायाफ्ता कैदी वर्षों से जेल में बंद है़ं बीमार होने के बाद इलाज के दौरान कई की मृत्यु हो जाती है़ कई बार उनके परिजनों को जानकारी देने के बाद भी वे शव लेने नहीं आते है़ं ऐसे में जेल प्रशासन को ही शव का अंतिम संस्कार करना पड़ता है. एक शव के अंतिम संस्कार में लगभग तीन हजार रुपये का खर्च आता है़ ऐसे में जेल में कार्यरत सरकारी कर्मचारियों से चंदा लेकर पैसा इकट्ठा किया जाता है़ गौरतलब है आम आदमी का निधन होने पर हरमू मुक्ति धाम में शव जलाने के लिए 21 सौ रुपये लगते है़ं .
कैंसर पीड़ित कैदी की मौत के बाद सारा खर्च जेल प्रशासन ने वहन किया
13 जुलाई को मांडर निवासी कैदी बुद्धु उरांव की मौत एम्स (दिल्ली) मेें हो गयी थी़ वह कैंसर से पीड़ित था. जेल प्रशासन ने अपने खर्च पर उसका शव दिल्ली से रांची लाया़ इस पर करीब पांच हजार रुपये खर्च हुए. इससे पहले बुद्धु उरांव की पत्नी व अन्य परिजनों को अपने खर्च पर जेल प्रशासन ने दिल्ली भेजा. कुल मिला कर 25 हजार रुपये खर्च हुए़ सारा खर्च जेल प्रशासन ने चंदा कर किया़ बुद्धु उरांव डायन बिसाही के आरोप में पांच हत्या का विचाराधीन कैदी था़
अज्ञात शव के अंतिम संस्कार के लिए पुलिस को मिलते हैं 500 रुपये
दूसरी ओर, पुलिस को अज्ञात शव का अंतिम संस्कार करने के लिए 500 रुपये मिलते हैं. इसके लिए थाना प्रभारी को कई तरह की कागजी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. एक थाना प्रभारी ने बताया कि 500 रुपये के लिए शव के फोटो के साथ एक आवेदन एसडीओ को भेजना पड़ता है़ एसडीओ के हस्ताक्षर के बाद आवेदन कोषागार में जाता है़ उसके बाद रुपया निकलता है़ इसमें लंबा समय लगता है. इसलिए अधिकतर थाना प्रभारी अपने पॉकेट से ही सारा खर्च वहन करते है़ं
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