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मातृभाषा और राष्ट्रभाषा को सम्मान दें : कुलपति
बांग्ला एकेडमी द्वारा शनिवार को राष्ट्रीय एकात्मता की रक्षा में भाषा के योगदान विषय पर साहित्य सम्मेलन की शुरुआत की गयी. सम्मेलन के पहले दिन कई विद्वानों ने विचार रखे. रांची : प्रत्येक नागरिक को अपनी मातृभाषा आैर राष्ट्रभाषा को सम्मान देना चाहिए. इससे अपना आैर देश का सम्मान बढ़ता है. अंगरेजी भाषा अच्छी है. […]
बांग्ला एकेडमी द्वारा शनिवार को राष्ट्रीय एकात्मता की रक्षा में भाषा के योगदान विषय पर साहित्य सम्मेलन की शुरुआत की गयी. सम्मेलन के पहले दिन कई विद्वानों ने विचार रखे.
रांची : प्रत्येक नागरिक को अपनी मातृभाषा आैर राष्ट्रभाषा को सम्मान देना चाहिए. इससे अपना आैर देश का सम्मान बढ़ता है. अंगरेजी भाषा अच्छी है. उसे जाने, लेकिन अपनी भाषा को छोड़ कर अंगरेजी के पीछे भागना नहीं चाहिए. जापान, जर्मनी, फ्रांस व चीन के लोग अंगरेजी जानते है, लेकिन अपनी मातृभाषा व राष्ट्रभाषा में ही बात करना पसंद करते है. सभी भाषाएं भारतीय संस्कृति को संरक्षित करती है. संस्कृत सभी भाषाअों में सामंजस्य बनाने का सशक्त माध्यम है.
उक्त बातें रांची विश्वविद्यालय के कुलपति डाॅ रमेश कुमार पांडेय ने कही. वे शनिवार को बांग्ला एकेडमी झारखंड द्वारा कांटाटोली चाैक के समीप स्थित होटल अंजलि में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय एकात्मता की रक्षा में भाषा का योगदान विषयक साहित्य सम्मेलन के उदघाटन सत्र में बोल रहे थे. डाॅ पांडेय ने कहा कि परिस्थितियां बदली है. इसके बावजूद विचाराें का आदान-प्रदान होते रहना चाहिए. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनी रहे. भाषा की उत्पत्ति के पूर्व भी आदान-प्रदान का माध्यम था.
डाॅ गिरिधारी राम गाैंझू ने कहा कि जहां आदमी रहता है, खाता है, वहां की संस्कृति में रच बस जाता है. देश की एकता व अखंडता को बनाये रखने में भाषाअों की बड़ी भूमिका है. आशीष सिन्हा ने कहा कि देश की एकता को बनाये रखने में प्रादेशिक भाषाअों का अहम योगदान है.
भाषा समस्या का समाधान है. समरसता, सामाजिकता सभी भाषाअों की शक्ति है. आज भाषा के प्रति दृष्टि व दृष्टिकोण बदलने की जरूरत है. अशोक पागल ने कहा कि सम्मान पाना बड़ी बात नहीं है, किसी को सम्मान देना बड़ी बात होती है. साहित्य भाषा की सर्वोत्तम परिणति है. साहित्य से सबका भला होता है. सभी भाषाअों की एक लिपि रहने से भाषा को समझने, लिखने आैर बोलने में सुविधा होगी.
एकेडमी के अध्यक्ष सिद्धार्थ ज्योति रॉय ने कहा कि सभी को जोड़ने के लिए भाषा की अहम भूमिका है. संवादहीनता की स्थिति में भ्रांतियां पैदा होती, तनाव व बिखराव होता है. इससे भाषा बचाती है. राष्ट्रीय एकता की बुनियाद खड़ी होती है. सभी भाषाअों को जानना चाहिए.
एकेडमी के सचिव मृगेंद्र विश्वास ने कहा कि धर्म या समूह के आधार पर सामाजिक समरसता संभव नहीं है, परंतु भाषा से हम समाज व देश को एक भावना में समरस कर राष्ट्रीय अखंडता को मजबूत कर सकते है. इस दौरान अपने क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान देनेवाले डा श्यामा प्रसाद मुखर्जी, हरेन ठाकुर, अशोक पागल, प्रवीण कर्मकार व दिलीप बैराग्य को एकेडमी की अोर से सम्मानित किया गया.
कुलपति डाॅ पांडेय ने उन्हें पाैधा, स्मृति चिह्न व शॉल देकर सम्मानित किया. जुलिया आदित्य व अजाना मित्रा व नरेन हांसदा ने गीत-संगीत प्रस्तुत किया. कार्यक्रम का संचालन डॉ कमल बोस व सुपर्णा चटर्जी तथा धन्यवाद ज्ञापन गोपाल चंद्र लाला ने किया. इस अवसर पर कुणाल बसु, विभास सरकार, अशोक मुखर्जी सहित विभिन्न भाषाअों के विशेषज्ञ उपस्थित थे.
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