उल्लेखनीय है कि वर्ष 2008 में लोकायुक्त और सरकार के निर्देश पर बोकारो में कोयले की अवैध तस्करी और इसमें पुलिस अफसरों की संलिप्तता की जांच निगरानी (एसीबी ) ने शुरू की थी, लेकिन 20 अक्तूबर, 2014 तक मामले में कोई विशेष जांच नहीं हुई. कोयला तस्करी की जांच के बजाय निगरानी के अफसरों ने पुलिस पदाधिकारी अशोक कुमार सिंह, अमोद नारायण सिंह, राम सागर तिवारी और संजय कुमार की संपत्ति की जांच शुरू कर दी. इस बात की जानकारी लोकायुक्त को मिली, तब उन्होंने मामले की जानकारी सरकार को दी. सरकार के निर्देश पर जब मामले की जांच शुरू हुई, तब मई 2015 में मामले में आरंभिक जांच पूरी कर ली गयी. सीनियर अफसरों के निर्देश पर सरकार के पास जांच रिपोर्ट भेज दी गयी, ताकि मामले में कार्रवाई हो सके.
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कोयला तस्करी: एक साल से दबी है जांच रिपोर्ट, नहीं हो पा रही कार्रवाई
रांची: भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने बोकारो में कोयला के अवैध कारोबार में संलिप्त और कोयला कारोबारियों को बचाने वाले थानेदार से लेकर आइपीएस के खिलाफ साक्ष्य एकत्र किये. सरकार के निर्देश पर जांच पूरी कर करीब एक साल पहले जांच रिपोर्ट सरकार काे भेजी गयी. जांच रिपोर्ट में बताया गया कि कैसे थानेदार से […]
रांची: भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने बोकारो में कोयला के अवैध कारोबार में संलिप्त और कोयला कारोबारियों को बचाने वाले थानेदार से लेकर आइपीएस के खिलाफ साक्ष्य एकत्र किये. सरकार के निर्देश पर जांच पूरी कर करीब एक साल पहले जांच रिपोर्ट सरकार काे भेजी गयी. जांच रिपोर्ट में बताया गया कि कैसे थानेदार से लेकर डीएसपी और एसपी कोयला कारोबारियों के खिलाफ दर्ज मामले की जांच में नरमी बरतते थे.
उनके खिलाफ कार्रवाई तक नहीं करते थे. एसीबी की रिपोर्ट के आधार पर फिर से सरकार ने रिपोर्ट की समीक्षा करने की जिम्मेवारी बोकारो के डीआइजी को सौंपी. डीआइजी ने रिपोर्ट की समीक्षा की. डीआइजी को समीक्षा के क्रम में गड़बड़ी से संबंधित तथ्य मिले. उन्होंने भी अपनी रिपोर्ट पुलिस मुख्यालय के पास भेज दी. इसके बाद से अभी तक मामले की जांच रिपोर्ट दबी हुई है. जांच रिपोर्ट किसके पास दबी हुई है, इसके बारे में एसीबी के अधिकारियों के पास अभी तक कोई जानकारी नहीं है. जांच रिपोर्ट दब जाने की वजह से एसीबी की रिपोर्ट पर अभी तक कोई कार्रवाई तक नहीं हुई है.
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2008 में लोकायुक्त और सरकार के निर्देश पर बोकारो में कोयले की अवैध तस्करी और इसमें पुलिस अफसरों की संलिप्तता की जांच निगरानी (एसीबी ) ने शुरू की थी, लेकिन 20 अक्तूबर, 2014 तक मामले में कोई विशेष जांच नहीं हुई. कोयला तस्करी की जांच के बजाय निगरानी के अफसरों ने पुलिस पदाधिकारी अशोक कुमार सिंह, अमोद नारायण सिंह, राम सागर तिवारी और संजय कुमार की संपत्ति की जांच शुरू कर दी. इस बात की जानकारी लोकायुक्त को मिली, तब उन्होंने मामले की जानकारी सरकार को दी. सरकार के निर्देश पर जब मामले की जांच शुरू हुई, तब मई 2015 में मामले में आरंभिक जांच पूरी कर ली गयी. सीनियर अफसरों के निर्देश पर सरकार के पास जांच रिपोर्ट भेज दी गयी, ताकि मामले में कार्रवाई हो सके.
कारोबारियों के खिलाफ जिन केस में नरमी बरतने की बात आयी थी सामने
चास मुफस्सिल थाना कांड संख्या 46/2008 दिनांक 16 अप्रैल, 2008 में अजय महथ, प्रदीप खवास एवं अनिल गोयल (तीनाें कोयला के कथित अवैध कारोबारी ) के संबंध में पुलिस ने साक्ष्य की कमी दिखाते हुए फाइनल रिपोर्ट कोर्ट में समर्पित की.
चास मुफस्सिल थाना कांड संख्या 54/2008 दिनांक 17 मई 2008 में अभियुक्त उमेश को असत्यापित दिखाया गया.
चास मुफस्सिल थाना कांड संख्या 56/2008 दिनांक 17 मई, 2008 में अजय शर्मा उर्फ अजय महथा एवं अंबुज शर्मा उर्फ अंबुज महथा को फरार एवं अनिल गोयल के संबंध में साक्ष्य की कमी दिखाते हुए अन्य अभियुक्त के खिलाफ आरोपपत्र समर्पित किया गया.
अमलाबाद ओपी कांड संख्या 14/2008, 20 जनवरी 2008 में कोयला कारोबारी के खिलाफ दर्ज केस में फाइनल रिपोर्ट कोर्ट में समर्पित की गयी.
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