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खत्म हो गया है मांग व आपूर्ति का अंतर

रांची : पिछले कुछ साल से दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के कई इलाकों के साथ कई समृद्ध राज्यों में कोयले की कमी के कारण बिजली गुल नहीं हो रही है. इन राज्यों में संचालित पावर प्लांटों को ज्यादातर कोयला सीसीएल से जाता है. सीसीएल कोयले की आपूर्ति अच्छी तरह कर रहा है. ऐसी ही स्थिति […]

रांची : पिछले कुछ साल से दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के कई इलाकों के साथ कई समृद्ध राज्यों में कोयले की कमी के कारण बिजली गुल नहीं हो रही है. इन राज्यों में संचालित पावर प्लांटों को ज्यादातर कोयला सीसीएल से जाता है. सीसीएल कोयले की आपूर्ति अच्छी तरह कर रहा है. ऐसी ही स्थिति झारखंड के पावर प्लांटों की भी है. यहां के पावर प्लांटों में भी कोयले का अच्छा स्टॉक है. कोई भी कंपनी जब भी कोयला मांगेगी, हम देने को तैयार हैं. ऐसा कहना है सीसीएल के सीएमडी गोपाल सिंह का. श्री सिंह से प्रभात खबर से विशेष बातचीत की.
मांग बढ़ने पर बढ़ेगा उत्पादन : श्री सिंह ने कहा कि सीसीएल कई वर्षों से 48 मिलियन टन के आसपास उत्पादन कर रहा था. इससे आगे नहीं बढ़ पा रहा था. पिछले तीन साल से सीसीएल 50 मिलियन टन से ज्यादा कोयले का उत्पादन कर रहा है. हम 100 मिलियन टन उत्पादन की ओर बढ़ रहे हैं. कोयले का उत्पादन बढ़ जाने के कारण हजारीबाग एरिया, तापिन, झारखंड, मगध-आम्रपाली आदि खदानों से हम पूरी क्षमता से कोयला नहीं निकाल रहे हैं. जिस दिन मांग (डिमांड) बढ़ जायेगी, उस दिन हम उत्पादन करने लगेंगे.
मंत्रालय का नाम बदनाम नहीं हो रहा
पहले दिल्ली और आसपास के राज्यों में बिजली संकट होने पर कोयला मंत्रालय पर अंगुली उठती थी. कहा जाता था कि कोयला मंत्रालय ठीक से काम नहीं कर रहा है. कोल इंडिया उत्पादन में पीछे रह जा रहा है. अब स्थिति बदल गयी है. अब मंत्रालय का नाम बदनाम नहीं हो रहा है. इसका एक मुख्य कारण सीसीएल भी है.
सुधर रही है क्वालिटी ऑफ लाइफ
सीसीएल के कर्मियों का जीवन स्तर पहले बहुत अच्छा नहीं था. अब इसमें सुधार होने लगा है. जिस हिसाब से इनका वेतन था, उतनी सुविधा नहीं मिलती थी. रहने लायक कॉलोनियां भी नहीं थी. अब इसमें सुधार किया जा रहा है. पेयजल, सड़क के साथ बेहतर नागरीय सुविधा दी जा रही है. आवासीय के साथ-साथ चिकित्सकीय सुविधा भी बढ़ायी जा रही है. इसका असर होगा कि कर्मी उत्पादन में सीधे सहयोग करेंगे. काम के प्रति उनकी रुचि बढ़ेगी.

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