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………..न हम सुधरेंगे, न बदलेंगे मानसिकता

………..न हम सुधरेंगे, न बदलेंगे मानसिकता शहर को गंदा करने में शहर के लोग भी अहम भूमिका निभा रहे हैं-शहर की सफाई में कर देते हैं रात दिन एक, फिर भी गंदगी फैलानेवाले अपनी आदत से नहीं आते बाजतसवीर अमित दास, सुनील गुप्ता व अन्य कीरांची़ राजधानी की 13 लाख जनता को यह शहर साफ […]

………..न हम सुधरेंगे, न बदलेंगे मानसिकता शहर को गंदा करने में शहर के लोग भी अहम भूमिका निभा रहे हैं-शहर की सफाई में कर देते हैं रात दिन एक, फिर भी गंदगी फैलानेवाले अपनी आदत से नहीं आते बाजतसवीर अमित दास, सुनील गुप्ता व अन्य कीरांची़ राजधानी की 13 लाख जनता को यह शहर साफ सुथरा दिखे, इसको लेकर रांची नगर निगम प्रयासरत है. सुबह आंख खुलने के बाद शहरवासियों अपने मोहल्ले की सड़कें गंदी न दिखे, इसके लिए रांची नगर निगम के कर्मचारी रात-रात भर जाग कर सड़कों पर बिखरे कचरे को उठाव करते हैं. झाड़ू लगाया जाता है. पानी के टैंकर से डिवाइडरों को साफ किया जाता है. परंतु हम अपनी आदत से बाज नहीं आ रहे हैं. हमारी यह मानसिकता बन गयी है कि शहर को साफ रखने की जिम्मेवारी केवल नगर निगम की है. बाकी हम तो वही करेंगे, जो हमारे मन को भाता है.250 कर्मचारी रात 11 बजे से उठाते हैं कूड़ा: आम तौर पर शहर की प्रमुख सड़कों पर दिन के वक्त जाम लगा रहता है. ऐसे में दिन में कूड़ा का उठाव करने से इन सड़कों पर जाम लगने की संभावना और भी बढ़ जाती है. इसलिए नगर निगम ने यह फैसला किया है कि शहर की प्रमुख सड़कों से कूड़े का उठाव रात 11 बजे से किया जायेगा. इसके लिए 250 सफाई कर्मचारी को लगाया गया है. ये कर्मचारी प्रतिदिन एमजी मार्ग, सर्कुलर रोड, बरियातू से बू्टी मोड़, बूटी मोड़ से कांटाटोली होते हुए ओवरब्रिज तक, ओवरब्रिज से राजेंद्र चौक होते हुए बिरसा चौक तक, बिरसा चौक से हरमू रोड में रातू रोड चौक तक सुबह पांच बजे तक सफाई अभियान चलाते हैं. इस दौरान कचरे को एकत्र कर वाहन में लोड किया जाता है. फिर इस कचरे को उठा कर हरमू रोड स्थित डंपिंग यार्ड में भेजा जाता है. यहां से उसे कॉम्पकटर में लोड कर झिरी स्थित डंपिंग यार्ड में डंप किया जाता है. नगर निगम के ये कर्मचारी आम तौर पर रात में उस समय कूड़े का उठाव करते हैं, जब शहर का हर शख्स अमूमन गहरी निंद में सोया हुआ रहता है.अपनी आदत में करना होगा बदलाव शहर को साफ रखने की जितनी जिम्मेवारी रांची नगर निगम की है, उतनी ही जिम्मेवारी हमारी भी है. अगर हम देश के सबसे साफ सुथरे शहरों की बात करें, तो ये शहर केवल इसलिए सुंदर नहीं हैं कि वहां का नगर निगम बेहतर काम करता है, बल्कि इसलिए कि वहां के लोग जागरूक हैं. ऐसे शहरों के लोग खुले में कूड़ा नहीं फेंकते हैं. निर्धारित समय पर डस्टबीन में कूड़े को डालते हैं. अपने घर के अगल-बगल में बिखरे पड़े कचरे को भी उठा कर डस्टबीन में डाल देते हैं.शहर में सिर्फ12 सार्वजनिक शौचालय राजधानी रांची में सार्वजनिक शौचालय की कमी है. वर्तमान में राजधानी की आबादी 13 लाख है, लेकिन शहर में मुख्य सड़कों पर केवल 12 सार्वजनिक शौचालय ही रांची नगर निगम की ओर से संचालित हैं. शहर की कई प्रमुख सड़कों में तो पांच-पांच किलोमीटर के दायरे में कोई पब्लिक टॉयलेट नहीं है. इससे लोगों को काफी दिक्कत होती है. इस कारण भी लोग सड़क किनारे खड़े होकर पेशाब करने को मजबूर हैं. शौचालय को गंदा कर रहे लोग राजधानी में जो पब्लिक टॉयलेट रांची नगर निगम की ओर से बनाये गये हैं. उनकी हालत खस्ता करने में यहां के लोगों की भी महत्वपूर्ण भूमिका है. ये लोग रात में शौचालय में घुस कर जहां-तहां शौच करके गंदगी फैलाते हैं.डिप्टी मेयर संजीव विजयवर्गीय की पहल पर अक्तूबर माह में कोकर में ही एक मॉडल शौचालय का निर्माण किया गया था. परंतु एक सप्ताह बाद से ही शरारती तत्वों ने इसमें गंदगी फैलानी शुरू कर दी़ बकौल डिप्टी मेयर संजीव विजयवर्गीय की मानें, तो अब रांची नगर निगम शौचालय के समीप 24 घंटे तो किसी से पहरा नहीं दिला सकता. इसके लिए शहर के आम लोगों को ही जागरूक होना पड़ेगा. डस्टबीन तक चुरा कर ले गयी रांची नगर निगम की ओर से वर्ष 2014 में शहर की प्रमुख सड़कों पर 1200 डस्टबीन लगाये गये थे.शहर में इन डस्टबीनों को लगाने के पीछे निगम का यह मकसद था कि इसमें लोग अपनी दुकान से निकलने वाले कागज व पॉलीथिन को इसमें डालेंगे, ताकि शहर गंदा न दिखे. परंतु एक साल बाद ही निगम ने इन डस्टबीनों का सर्वे करवाया, तो पाया कि शहर की सड़कों से 550 से अधिक डस्टबीन ही गायब है. इन डस्टबीनों काे कोई चुरा न सके, इसके लिए इसमें चेन के साथ ताला भी लगाया गया था. परंतु शरारती तत्वों ने चेन को काट दिया और डस्टबीन को उठा कर अपने घर लेते गये.कूड़ेदान में तब्दील होती जा रही राजधानी: राजधानी रांची से प्रतिदिन निकलने वाले 550 टन कचरे को शहर से दूर झिरी में डंप किया जाता है. यहां कूड़ा निस्तारण का प्लांट नहीं होने से यहां कूड़े का ढेर लग गया है. दूर से किसी पहाड़ का दृश्य लगता है. कूड़ा का निस्तारण नहीं किये जाने से इसके पांच किलोमीटर के दायरे में कूड़े की बदबू से लोगों का जीना मुहाल है. वहीं आस-पास के मोहल्ले में मक्खी मच्छरों का प्रकोप भी इस कदर बढ़ गया है कि लोग अब यहां घर के दरवाजे पर परदा लगाने के बजाय, मच्छरदानी टांग कर रखते हैं. कूड़े की बदबू के कारण यहां के लोग मलेरिया, टायफाइड, डायरिया जैसी बीमारियों से भी ग्रसित हो रहे हैं. हालांकि नगर निगम के द्वारा सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के तहत एसेल इंफ्रा के साथ करार किया गया है. इसके तहत कंपनी को प्लांट लगाना है. परंतु लांट लगने में कम से कम तीन साल लगेंगे. यानी आनेवाले तीन सालों तक झिरी के आस-पास रह रहे लोगों को परेशानी झेलनी होगी़

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