यह क्षोभमंडल से बाहर नहीं जा पाता. यही कारण है कि धरती का तापमान बढ़ रहा है. यह तापमान एक सीमा से अधिक होने पर धरती पर जीवन खतरे में पड़ सकता है.वर्ष 2000 से 2010 के बीच विश्व में प्रति वर्ष 130 लाख हेक्टेयर वनों की कटाई हुई है. कार्बन डाइअॉक्साइड की मात्रा बढ़ने का यह भी एक कारण है. वन पारिस्थितिकी तंत्र (फॉरेस्ट इकोसिस्टम) में कार्बन डाइअॉक्साइड जंगल में मौजूद विभिन्न चीजों जैसे लकड़ी, कीड़े-मकोड़े, जीव-जंतु व वन भूमि में ही समाहित या ठहरी रहती है. जंगल कार्बन डाइअॉक्साइड को वातावरण में जाने से रोक कर धरती को जीवन के अनुकूल बनाये रखते हैं. यानी पौधे लगाकर तथा वनों को सुरक्षित रख कर ही हम विकास की सही दौड़ लगा सकते हैं.
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जंगल से ही रुकेगा जलवायु परिवर्तन
रांची: धरती का अपना एक वातावरण है, जिसमें भूमि, जल, वन कार्बन डाइअॉक्साइड, अॉक्सिजन व अन्य तत्व एक निश्चित मात्रा में हैं. इन सभी के आपसी सामंजस्य से ऐसा वातावरण बना, जिसमें जीवन की शुरुआत हो सकी. मनुष्य की उत्पत्ति भी अतिसूक्ष्म जीवन कण तथा क्रमिक रूप से हुई. इस दौरान मनुष्य जीवन जीने तथा […]
रांची: धरती का अपना एक वातावरण है, जिसमें भूमि, जल, वन कार्बन डाइअॉक्साइड, अॉक्सिजन व अन्य तत्व एक निश्चित मात्रा में हैं. इन सभी के आपसी सामंजस्य से ऐसा वातावरण बना, जिसमें जीवन की शुरुआत हो सकी. मनुष्य की उत्पत्ति भी अतिसूक्ष्म जीवन कण तथा क्रमिक रूप से हुई. इस दौरान मनुष्य जीवन जीने तथा इसे आसान बनाने के लिए अपने अासपास के वातावरण को बदलता रहा. पहले गांव बनाया और फिर शहर. पर विकास व शहरीकरण की सीमा पहचान पाने में हम विफल रहे हैं. हमारी धरती अत्यधिक गरमी, अत्यधिक वर्षा व बाढ़ के रूप में अपना गुस्सा दिखा रही है.
इंटर गवर्नमेंटल पैनल अॉन क्लाइमेट चेंज (आइपीसीसी) के अनुसार 1901 से 2012 तक समुद्र का जलस्तर 19 सेमी बढ़ा है. वहीं पूरे विश्व के तापमान में भी 0.89 डिग्री सेंटिग्रेड की वृद्धि हुई है. शताब्दी के अंत तक यह तापमान 1.5 डिग्री से 4.5 डिग्री तक अौर बढ़ने का अनुमान है. वैज्ञानिक आकलन के अनुसार एक से तीन डिग्री तक तापमान वृद्धि से कृषि की उत्पादकता बढ़ेगी. पर इसके बाद तापमान में हर एक डिग्री की वृद्धि उत्पादकता को सात से 14 फीसदी तक कम करेगी. बाढ़ व सूखा हम झेल ही रहे हैं. ग्लोबल वार्मिंग से डायरिया, सांस व हृदय संबंधी रोग बढ़ने की भी आशंका है. अनुमान यह भी है कि तापमान में अत्यधिक वृद्धि से पौधों व जीव-जंतुअों की विभिन्न प्रजातियां 20 से 30 फीसदी तक कम हो सकती है.
पूरी दुनिया में अब ग्लोबल वार्मिंग के प्रति जागरूकता बढ़ी है. दरअसल जलवायु परिवर्तन व वनों के बीच एक गहरा संबंध है. धरती को इसकी संपूर्ण ऊर्जा सूर्य से मिलती है. वहीं धरती भी उसे मिली ऊर्जा का उत्सर्जन विकिरण के रूप में करती है. धरती के ऊपर इसकी सबसे निचली सतह ट्रोपोस्फेयर (क्षोभमंडल) में मौजूद कार्बन डाइअॉक्साइड, मिथेन, नाइट्रस अॉक्साइड व अोजोन जैसे गैस उत्सर्जित होनेवाली ऊर्जा के कुछ भाग को रोक लेते हैं. इन गैसों को ग्रीन हाउस गैस कहते हैं. इससे धरती पर जीव-जंतुअों व वनस्पतियों के लिए एक उचित तापमान बना रहता है. इधर, धरती पर मौजूद ऊर्जा स्रोतों के लगातार दहन, वनों की कटाई व अौद्योगिकीकरण से हमारे वातावरण में कार्बन डाइअॉक्साइड की मात्रा 290 पीपीएम (पार्टस पर मिलियन) से 396 पीपीएम हो गयी है. ग्रीन हाउस गैस के बढ़ने से गैर जरूरी तापमान वातावरण में बना रह जाता है.
(लेखक प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) झारखंड हैं)
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