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एमवी एक्ट व आरटीएस एक्ट में विरोधाभास, जो काम 24 घंटे में करना है, उसके लिए दिये 15 दिन

रांची: दुर्घटनाग्रस्त वाहनों की जांच रिपोर्ट लेने में वाहन मालिकों को परेशानी होती है, क्योंकि राज्य के मोटर व्हिकल इंस्पेक्टर (एमवीआइ) एमवी एक्ट और राइट-टू सर्विस एक्ट के विरोधाभास का फायदा उठाते हैं. मोटर व्हिकल एक्ट (एमवी एक्ट) के अनुसार दुर्घटनाग्रस्त वाहनों की जांच का वक्त 24 घंटा है. एमवी एक्ट की धारा 136 के […]

रांची: दुर्घटनाग्रस्त वाहनों की जांच रिपोर्ट लेने में वाहन मालिकों को परेशानी होती है, क्योंकि राज्य के मोटर व्हिकल इंस्पेक्टर (एमवीआइ) एमवी एक्ट और राइट-टू सर्विस एक्ट के विरोधाभास का फायदा उठाते हैं. मोटर व्हिकल एक्ट (एमवी एक्ट) के अनुसार दुर्घटनाग्रस्त वाहनों की जांच का वक्त 24 घंटा है.

एमवी एक्ट की धारा 136 के अनुसार जब कोई वाहन दुर्घटनाग्रस्त होता है, तो राज्य सरकार द्वारा अधिकृत व्यक्ति के द्वारा वाहन का इंस्पेक्शन किया जायेगा. इंस्पेक्शन के 24 घंटे के भीतर गाड़ी को छोड़ने का प्रावधान है, जबकि झारखंड में वर्ष 2011 में लागू राइट-टू सर्विस एक्ट में इस काम के लिए 15 दिन का वक्त तय किया गया है. बस व ट्रक ऑनर्स एसोसिएशन के लोग बताते हैं कि छोटी दुर्घटना होने पर पुलिस एमवीआइ से गाड़ी की जांच कराने की लिए कहती है. एमवीआइ द्वारा जांच कर रिपोर्ट देने में अनावश्यक विलंब किया जाता है. पूछने पर एमवीआइ द्वारा यह बताया जाता है कि झारखंड सरकार के राइट-टू सर्विस एक्ट के तहत 15 दिन के भीतर जांच रिपोर्ट देनी है. 15 दिन के भीतर दे दिया जायेगा.
दलाल वसूलते हैं घूस
ट्रांसपोर्टरों के मुताबिक बिना एमवीआइ रिपोर्ट के पुलिस गाड़ी को नहीं छोड़ती है. दुर्घटनाग्रस्त वाहनों को जल्दी छुड़ाने के लिए जब वह एमवीआइ के पास जाते हैं, तो कई एमवीआइ के दफ्तर में मौजूद दलाल उनसे घूस मांगते हैं. घूस देने पर जल्दी जांच रिपोर्ट दिया जाता है. नहीं देने पर 15 दिन में देने की बात कही जाती है.

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