रांची: यूनिसेफ के आंकड़े के अनुसार कुपोषण के कारण राज्य के करीब 47 फीसदी बच्चे नाटे (उम्र के अनुसार कम लंबाई वाले) हैं. झारखंड में हर वर्ष 1.6 लाख बाल विवाह होते हैं. हमारी 70 फीसदी लड़कियां-महिलाएं एनिमिक हैं. राज्य के ग्रामीण इलाके के 92 फीसदी लोग खुले में शौच करते हैं. राज्य में हर वर्ष 28 हजार बच्चों की मौत हो जाती है. शिक्षा के क्षेत्र में भी आंकड़े चिंताजनक हैं. प्राथमिक स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति 57 फीसदी है.
वहीं इंटर में सिर्फ 11-12 फीसदी बच्चे ही पढ़ाई करते हैं. पांच वर्ष से 14 वर्ष तक के पांच लाख बच्चे मजदूरी करते है. हर वर्ष हजारों (एक अध्ययन के हवाले से यूनिसेफ के अनुसार करीब 30 से 50 हजार) लड़कियों की तस्करी होती है. ये सभी आंकड़े विकास विरोधी हैं. इसलिए यूनिसेफ ने झारखंड में विकास के लिए पांच मुद्दों पर फोकस जरूरी बताया है़ इनके लिए सुझाव भी दिया है. सरकार भी इनसे सहमत है. समाधान का प्रयास भी हो रहा है, पर इसमें तेजी की जरूरत है.
कुपोषण व एनीमिया : गर्भवती के कुपोषित रहने, पर्याप्त व बेहतर भोजन न मिलने, विटामिन-ए व अायोडिन की कमी के कारण पांच वर्ष से कम उम्र के 22 लाख (कुल बच्चों का 55 फीसदी) बच्चे कुपोषित हैं. इनमें से करीब पांच लाख (12 फीसदी) अति कुपोषित हैं. वहीं तीन वर्ष से कम उम्र वाले 47 फीसदी बच्चे नाटे (उम्र के अनुसार लंबाई कम) हैं. झारखंड में 10 में से सात लड़कियां (70 फीसदी) एनीमिक हैं.
सुझाव : पोषण मिशन का गठन हो (हो गया है), पोषण सखी की नियुक्ति हो, बच्चों, लड़कियों व महिलाअों को आयरन फोलिक एसिड की गोली, विटामिन-ए व कृमि नाशक समय पर दिया जाये़
नवजात व शिशुअों की मौत : प्रसव में समस्या व संक्रमण, जन्मजात असामान्यता, कुपोषण तथा डायरिया व न्यूमोनिया से राज्य में हर वर्ष पैदा होने वाले अाठ लाख बच्चों में से 18400 बच्चे की मौैत पहले महीने में तथा 28800 की पहले जन्म दिन से पहले हो जाती है.
सुझाव : संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देना, नवजातों की विशेष देखभाल इकाई बने, डायरिया व न्यूमोनिया से बचाव के लिए क्रमश: रोटा वायरस टीका व पेंटा वेलेंट दिया जाये (मिल रहा है), सभी बच्चों का नियमित टीकाकारण सुनिश्चत हो तथा डॉक्टरों व नर्सों की कमी दूर की जाये.
खुले में शौच पर रोक व सुरक्षित पेयजल : शौचालय की सुविधा न होने तथा परंपरा बन जाने से झारखंड के ग्रामीण इलाके में 92 फीसदी लोग खुले में शौच करते हैं.
सुझाव : भोजन से पहले तथा शौच के बाद हाथ धोना सुनिश्चित हो, उपायुक्तों के साथ सीएम की मासिक बैठक में स्वच्छ भारत मिशन का एजेंडा भी शामिल हो, हर वर्ष आठ हजार गांवों को खुले में शौच से मुक्त किया जाये, स्कूली शौचायल के लिए स्वच्छ विद्यालय गाइडलाइन लागू हो पेयजल नीति बने (बनी है).
स्कूलों में उपस्थिति व पढ़ाई : राज्य में छह से 14 वर्ष के सभी बच्चे करीब 40 हजार स्कूलों में नामांकित. प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों की उपस्थिति सिर्फ 57 फीसदी (असर-2014). हाईस्कूल में नामांकन अनुपात सिर्फ 45 फीसदी तथा इंटर में 11-12 फीसदी. शिक्षकों की उपस्थिति के संदर्भ में झारखंड के सिर्फ 22 फीसदी स्कूल शिक्षा का अधिकार के अनुरूप.
सुझाव : शिक्षकों के करीब 75 हजार रिक्त पद भरे जायें. प्राथमिक स्कूलों के 30 लाख बच्चों को पढ़ने तथा गणित की बुनियादी शिक्षा के लिए व्यापक शिक्षण अाश्वासन कार्यक्रम शुरू हो, 38 हजार आंगनबाड़ी केंद्रों में तीन से छह वर्ष तक के 10 लाख बच्चों के प्री स्कूल कार्यक्रम में सुधार हो, उनकी मातृभाषा का उपयोग हो तथा निगरानी प्रणाली मजबूत हो.
बाल विवाह, बाल श्रम व बाल तस्करी : सामाजिक मान्यता, अशिक्षा व असुरक्षा की भावना के कारण झारखंड में बाल विवाह की दर राजस्थान व बिहार के बाद सबसे अधिक है. यहां करीब 45 फीसदी लड़कियों की शादी 18 वर्ष से पहले हो जाती है. यानी हर वर्ष करीब 1.6 लाख बाल विवाह. राज्य में पांच से 14 वर्ष के करीब पांच लाख बाल मजदूर हैं (जनगणना 2011). वहीं एक अध्ययन के अनुसार झारखंड से हर वर्ष 30 से 50 हजार लड़कियों की तस्करी होती है.
सुझाव : लड़कियों (18 वर्ष तक) की शिक्षा को बढ़ावा देना, सभी प्रखंडों में बाल श्रमिक तथा तस्करी या पलायन के शिकार बच्चों के लिए विशेष रूप से तैयार एक वर्षीय अावासीय कार्यक्रम शुरू हो, बाल श्रम के उन्मूलन के लिए स्टेट प्लान लागू हो, समेकित बाल संरक्षण योजना के तहत संरचनाअों व प्रणालियों (ग्राम बाल सुरक्षा समिति सहित) को मजबूत किया जाये़