जिस तरह डेनमार्क, फिनलैंड, स्वीडन और भूटान में प्रधानमंत्री से लेकर अन्य नौकरशाहों के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं, वही व्यवस्था भारत में भी लागू होनी चाहिए. सरकारी स्कूलों को सामान्य विद्यालय की तरह सरकार को चलाना चाहिए. उनका कहना है कि वैकल्पिक स्कूल का गठन कर बच्चों के मन से डर भगा कर उसे जीवन जीने का सही संदेश देना चाहिए. उनका मानना है कि मिट्टी और सूर्य की ताकत को पहचान कर वैकल्पिक जरूरतें पूरी की जानी चाहिए. प्रस्तुत है उनसे बातचीत के अंश:
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देश भर में वैकल्पिक स्कूल शुरू होना चाहिए : वांगचुक
रांची: जाने-माने वैज्ञानिक और इंजीनियर सोनम वांगचुक इन दिनों रांची में हैं. वे रांची में आयोजित युवा महोत्सव में भाग लेने यहां आये हैं. अपने रांची प्रवास के क्रम में उन्होंने प्रभात खबर संवाददाता से कई मुद्दों पर बातचीत की. उनका मानना है कि भारत में शिक्षण प्रणाली में व्यापक सुधार की आवश्यकता है. जिस […]
रांची: जाने-माने वैज्ञानिक और इंजीनियर सोनम वांगचुक इन दिनों रांची में हैं. वे रांची में आयोजित युवा महोत्सव में भाग लेने यहां आये हैं. अपने रांची प्रवास के क्रम में उन्होंने प्रभात खबर संवाददाता से कई मुद्दों पर बातचीत की. उनका मानना है कि भारत में शिक्षण प्रणाली में व्यापक सुधार की आवश्यकता है.
आपके जीवन पर आधारित थी थ्री इडियट्स फिल्म? यह आपसे कितना सानिध्य रखती है?
हां, फिल्म बनी थी. पर रील लाइफ और रीयल लाइफ में काफी अंतर है. मैंने लद्दाख में वैकल्पिक स्कूल की शुरुआत की है. यहां पर सौर ऊर्जा से जीवन के सभी पहलू संचालित होते हैं. गरमी में अंदर का तापमान मेरे स्कूल में कम रहता है, जबकि जाड़ों में अंदर का तापमान 15 डिग्री सेल्सियस रहता है. जीरो इनर्जी और प्राकृतिक सानिध्यता मेरे स्कूल मैं है, जहां पढ़ाई, खाना, व्यावहारिक ज्ञान और बिजली सभी चीजें सूर्य की रोशनी से संचालित होती हैं. यहां पर वैसे बच्चे पढ़ते हैं, जो 10वीं कक्षा में तीन बार-चार बार अथवा पांच बार फेल हो चुके हैं. दो वर्ष में कई ने विशेष सफलता अर्जित कर जीवन का मुकाम हासिल किया है. इसमें से एक पत्रकार बन कर 27 वर्ष में सफल राजनीतिज्ञ बना. एक महिला उद्यमी बनी, जो पर्सन ऑफ ईयर तक चुनी गयीं.
आप क्या बनना चाहते थे?
मैं इंजीनियर बनना चाहता था. मेरे पिता चाहते थे कि मैं सिविल इंजीनियर बनूं, मैं चाहता था मैकेनिकल इंजीनियर बनूं. मुझे शुरू से ही लेंस और रोशनी का शौक था. पिता चाहते थे कि मैं मैकेनिकल इंजीनियर अपने खर्चे से बनूं. एनआइटी श्रीनगर से मैंने इंजीनियरिंग की. मैंने बच्चों को पढ़ा कर अपनी जरूरतें पूरी की. लद्दाख की शिक्षा की स्थिति को देखते हुए 10वीं फेल बच्चों को जीवन की नयी राह दिखायी. उनके कौशल का विकास किया.
आप क्या करना चाहते हैं? दुनिया में कुछ नया हो. आपकी शिक्षा दूसरे जगहों पर बढ़े. इसके लिए क्या योजना है?
मैं चाहता हूं कि लद्दाख में पानी की कमी को कैसे कम किया जाये. आर्टिफिशियल ग्लेशियर बना कर जाड़ों में बर्फ जमा करना चाहता हूं, ताकि गरमी में इसी ग्लेशियर के पानी का उपयोग खेतों में हो. इस पर काम कर रहे हैं. इसके अलावा वैकल्पिक विश्वविद्यालय भी बनाना चाहता हूं. यहां पर शिक्षा व्यावहारिक ज्ञान पर आधारित हो. थ्योरी कम हो. मिट्टी और सौर ऊर्जा की जानकारी दी जाये. मिट्टी से घर कैसे बने, इसकी जानकारी मिले. विश्वविद्यालय कैंपस के सभी घर मिट्टी के हों. जीवन को सफल बनाने की इंजीनियरिंग यहां सिखायी जाये. बच्चे आज कल बिगड़ गये हैं. वो देर रात तक जगते हैं और देर सुबह तक सोते हैं. यह प्रकृति के विपरीत है. बच्चे सूर्योदय के साथ जगें और सूर्यास्त के कुछ घंटों बाद सो जायें. इससे नैसर्गिक और प्रकृति के साथ हम रह पायेंगे.
आपका सपना कैसे पूरा होगा?
भारत में आज भी 52 फीसदी से अधिक लोग मिट्टी के घरों में रहते हैं. पर इंजीनियरिंग काॅलेजों में मिट्टी के बारे में कुछ नहीं बताया जाता है. फ्रांस में अर्थ आर्किटेक्चर पर पीएचडी की शिक्षा दी जाती है. भारत में कंक्रीट के काॅलेजों में इंजीनियरिंग सिखायी जाती है. मैं चाहता हूं कि अर्थ आर्किटेक्चर के महत्व को समझा जाये, तभी प्राकृतिक विनाश से बचा जा सकेगा.
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