रांची: उसलाइन कान्वेंट में ‘आदिवासी विरासत व अधिकार’ विषय पर शनिवार को सेमिनार का आयोजन किया गया. मुख्य वक्ता मानवाधिकार कार्यकर्ता ग्लैडसन डुंगडुंग ने कहा कि आदिवासी होना शर्म नहीं, गर्व का विषय है़ हमारे कई युवा अपना गोत्र छिपाते हैं. पाउडर-क्रीम लगा कर गैर आदिवासी दिखने का प्रयास करते हैं़ यदि वे अपनी समृद्घ विरासत को जान लेंगे, तो उन्हें खुद को हीन समझने की जरूरत नहीं रहेगी़
उन्होंने कहा कि आदिवासी इस देश के प्रथम नागरिक हैं और सुप्रीम कोर्ट ने इसे स्वीकारा है़ आदिवासी समाज सामुदायिकता और समानता पर विश्वास करता है़ इसमें लोगों के बीच या स्त्री-पुरुष के बीच किसी तरह का भेदभाव नहीं होता़ यह समाज कन्या भ्रूण हत्या नहीं करता. न इसमें दहेज हत्या होती है़ इसकी न्यायिक व्यवस्था की उत्कृष्टता सभी स्वीकार करते हैं.
अर्थव्यवस्था मुनाफा केंद्रित नहीं है. प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग पर आदिवासी नजरिया दूसरों से सर्वथा भिन्न है़ देश की आजादी की पहली लड़ाई भी बाबा तिलका मांझी ने 1779 में ही लड़ी थी़ आदिवासी युवा अपनी विरासत और अधिकारों को जानें़ अपनी भाषा व संस्कृति को सुरक्षित रखने का प्रयास करें. इस अवसर पर फादर क्रिस्टो दास, फादर प्रफुल्ल तिग्गा व प्राचार्य सिस्टर डॉ मेरी ग्रेस ने भी विचार रखे.