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कभी थी जमीन-जायदाद की मालकिन, आज भीख मांंग कर रही गुजारा

कभी थी जमीन-जायदाद की मालकिन, आज भीख मांंग कर रही गुजारा (तसवीर ट्रैक पर है)बुजुर्ग सीता के पित्त की थैली में है पत्थर, कांके नर्सिंग होम बना सहारा, इलाज शुरू कराया संजीव सिंह, रांची70 वर्षीय सीता कभी जमीन-जायदाद की मालकिन थी. उसका अपना घर था. लेकिन आज वह कांके की गलियों में भीख मांग कर […]

कभी थी जमीन-जायदाद की मालकिन, आज भीख मांंग कर रही गुजारा (तसवीर ट्रैक पर है)बुजुर्ग सीता के पित्त की थैली में है पत्थर, कांके नर्सिंग होम बना सहारा, इलाज शुरू कराया संजीव सिंह, रांची70 वर्षीय सीता कभी जमीन-जायदाद की मालकिन थी. उसका अपना घर था. लेकिन आज वह कांके की गलियों में भीख मांग कर अपना गुजारा रही है. उसकी ऐसी हालत पति के देहांत के बाद हो गयी. पति के इस दुनिया से चले जाने के बाद रिश्तेदारों ने भी उससे अपना मुंह मोड़ लिया. लेकिन इससे पहले उसकी सारी जमीन-जायदार हड़प ली. सीता की कोई संतान नहीं है. इसका गम आज भी उसे सताता है. आज वह दिन में भीख मांगती है और रात में अरसंडे स्थित एक शिव मंदिर में सो जाती है. आसपास के लोग उसे कभी-कभार खाना खिला देते हैं.दर्द से कराहते देखा, तो डॉक्टर ने दी दवा अक्तूबर माह में सीता ने अपना ठिकाना बदल लिया. दिन में भीख मांगती अौर रात में वह ब्लॉक चौक स्थित कांके नर्सिंग होम के पास सो जाती. अस्पताल के लोग भी देखते थे कि एक बुढ़िया रोज रात में अस्पताल परिसर के पास सो जाती है. कुछ दिन यूं ही चलता रहा. एक रात सीता कराह रही थी. अस्पताल के ही डॉक्टर सुबोध कुमार ने उसे कराहते हुए देखा. उनसे रहा नहीं गया. उन्होंने उसे एक दवा दी, लेकिन वह पूरी तरह से ठीक नहीं हुई. अस्पताल प्रबंधक ने इलाज शुरू करायाजब अस्पताल के प्रबंधक डॉ शंभू प्रसाद सिंह को सीता के बारे में पता चला, तो मानवता के नाते उसका इलाज करने का सोचा. अस्पताल के डॉक्टरों ने उसका अल्ट्रासाउंड किया, तो पाया कि उसकी पित्त की थैली में पत्थर है. डॉक्टर ने उसे अपने यहां एडमिट कर लिया. उसके घर आदि की जानकारी हासिल करनी चाही, लेकिन ठोस जानकारी नहीं मिली. डॉक्टरों ने देखा कि अगर समय पर उसका इलाज नहीं होगा, तो वह मर भी सकती है. इस बीच डॉ शंभू ने इसकी लिखित जानकारी कांके थाना को भी दे दी. फिर सीता का इलाज शुरू हुआ. हीमोग्लोबीन बढ़ने का इंतजार, फिर होगा ऑपरेशन इलाज के क्रम में सीता का ब्लड टेस्ट कराया गया, तो पाया गया कि उसके शरीर में मात्र चार ग्राम ही हीमोग्लोबीन है. उसका ब्लड ग्रुप अो पोजेटिव है. फिर क्या था. इसकी भनक अस्पताल के कर्मियों को लगी. अस्पताल में कार्यरत वैसे नर्स व कंपाउंडरों ने ब्लड देने का सोचा, जिनका ब्लड ग्रुप अो पोजेटिव था. मदद के लिए कई चेहरे सामने आये. जल्दी से उसे ब्लड चढ़ाने की तैयारी हुई. ब्लड दिया गया. अब डॉक्टर प्रतीक्षा कर रहे हैं कि सीता का हीमोग्लोबीन कम से कम 10 ग्राम हो जाये, ताकि उसका अॉपरेशन हो सके. सीता अस्पताल के बेड नंबर छह पर अभी इलाजरत है. अस्पताल प्रबंधन की ओर से उसके लिए खाना-पीना से लेकर दवा आदि की नि:शुल्क व्यवस्था की गयी है.

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