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टेंडर में जांच टीम ने पकड़ी भारी गड़बड़ी

सुनील चौधरी रांची : झारखंड बिजली वितरण निगम लिमिटेड द्वारा जारी 669.37 करोड़ के ग्रामीण विद्युतीकरण के टेंडर में भारी अनियमितता पायी गयी है. मुख्य सचिव के आदेश पर गठित जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट गुरुवार को ऊर्जा विभाग के प्रधान सचिव को सौंप दी है. ऊर्जा विभाग की जांच कमेटी में अध्यक्ष उपसचिव रविरंजन […]

सुनील चौधरी
रांची : झारखंड बिजली वितरण निगम लिमिटेड द्वारा जारी 669.37 करोड़ के ग्रामीण विद्युतीकरण के टेंडर में भारी अनियमितता पायी गयी है. मुख्य सचिव के आदेश पर गठित जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट गुरुवार को ऊर्जा विभाग के प्रधान सचिव को सौंप दी है.
ऊर्जा विभाग की जांच कमेटी में अध्यक्ष उपसचिव रविरंजन मिश्रा, अधीक्षण अभियंता विजय कुमार सिन्हा व सहायक अभियंता जयकांत कुमार थे. सूत्रों ने बताया कि जिन शिकायतों के आधार पर जांच कमेटी गठित की गयी थी, उन शिकायतों को कमेटी ने सही ठहराया है और ठेके में भारी अनियमितता की बात कही है.
चहेती कंपनियों को रखा बाकी को छांटा
कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि तकनीकी मूल्यांकन कमेटी(टीइसी) निविदा में गड़बड़ी करते हुए अपनी चहेती कंपनियों को ऊंची दर पर कार्य आवंटित करने जा रही थी. टीइसी द्वारा चीजों को तोड़-मरोड़ कर, गलत अर्थ लगाते हुए मानक दरों का घोर उल्लंघन कर केवल उन्हीं कंपनियों का प्राइस बिड खोलने की अनुमति दी गयी, जो उनकी चहेती कंपनी थी.
कमेटी का कहना कि देश की कई बड़ी कंपनियों को निविदा के टेक्निकल बिड में अलग-अलग कारणों से छांट दिया गया और चहेती कंपनियों को निर्धारित दर से 22 से 34 प्रतिशत अधिक दर पर एल वन बिडर घोषिता किया गया. जबकि सारी कंपनियों के हिस्सा लेने पर दर कम होती. कंपनियों के छांट दिये जाने के कारण वितरण कंपनी पर 150 करोड़ रुपये अधिक का अतिरिक्त भार पड़ा है.
बेबुनियाद आधार पर
छांटी गयी कंपनियां
कमेटी ने पाया है कि बेबुनियाद आधार पर 24 में से 10 कंपनियों को निविदा से अलग कर दिया गया. वह भी केवल इस कारण से कि कंपनियों ने बैंक गारंटी एकाउंट अफसर जेबीएनएल के बदले चीफ इंजीनियर(आरइ) के नाम से जमा की थी.
जबकि निगम की निविदा में पूर्व में चीफ इंजीनियर के नाम से बैंक गारंटी देने की शर्त रखी गयी थी. बाद में इसमें जोड़ा गया था कि बैंक गैरंटी एओ के नाम से भी जमा की जा सकती है. बाद में चीफ इंजीनियर के नाम से जिन कंपनियों ने बैंक गारंटी दी थी, उन्हें केवल इस आधार पर छांट दिया गया कि उन्होंने एओ के नाम से बैंक गारंटी नहीं दी थी. जबकि दोनों के नाम से ही राशि निगम के खाते में ही गयी थी. इस मामले में टीइसी ने बैंकों से पूछने तक की जरूरत नहीं समझी कि बैंक गारंटी जमा की गयी है या नहीं. जबकि कंपनियां कहती रही कि बैंक से पूछ लिया जाय कि कंपनियों ने बैंक गारंटी की राशि जमा की है या नहीं.
कमेटी ने वित्त नियंत्रक द्वारा जारी किये गये बफ शीट में उठाये गये सवाल को भी सही ठहाराते हुए कहा है कि अच्छी कंपनियों को केवल बैंक गारंटी एओ की जगह आरइ को देने के बहाने छांट दिया जाना उचित नहीं है. जबकि अन्य कागजातों की जांच तक नहीं की गयी.
क्या है मामला
झारखंड बिजली वितरण निगम लिमिटेड द्वारा 10 जिलों में बचे हुए गांवो के विद्युतीकरण के लिए जून 2015 में निविदा निकाली गयी थी. इसके तहत पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला-खरसावां, खूंटी, लोहरदगा, रांची, जामताड़ा, देवघर, साहेबगंज, गोड्डा व पाकुड़ के बचे हुए गांवों का विद्युतीकरण किया जाना है. कुल प्राक्कलित राशि 669.37 करोड़ है. निविदा में करीब 24 कंपनियों ने भाग लिया. कंपनियों ने निविदा प्रगति शुल्क के रूप में 70 हजार रुपये प्रति निविदा तथा बैंक गांरटी के रूप में 10 लाख रुपये जमा किये.
इ-टेंडर का भी नहीं किया गया पालन
कमेटी ने पाया है कि इ-टेंडर में सारे कागजात अॉनलाइन भरे जाते हैं. पर इस निविदा से कई कंपनियों से हार्ड कॉपी भी ली गयी है, जो अनुचित है.
किसी को दोषी
नहीं ठहराया
सूत्रों ने बताया कि कमेटी ने व्यक्तिगत रूप से किसी भी पदाधिकारी को दोषी नहीं ठहराया है. अपनी रिपोर्ट में सिर्फ निविदा में गड़बड़ी की बात रखी है. बताया गया कि अब रिपोर्ट की कॉपी मुख्य सचिव के पास भेज दी जायेगी. इसके बाद ही निविदा पर फैसला लिया जायेगा.

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