रांची: झारखंड हाइकोर्ट ने राज्य से गुजरनेवाले नेशनल हाइवे की स्थिति पर गंभीर टिप्पणी की. एक्टिंग चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस अमिताभ गुप्ता की खंडपीठ ने मौखिक रूप से कहा कि नेशनल हाइवे पर साइकिल से भी चलना मुश्किल है. एक ओर से सड़क बनाने का काम शुरू होता है, दूसरे छोर पर पहुंचते-पहुंचते पहले छोर की सड़क टूट जाती है.
गनीमत है कि सरकार को सर्किल में सड़क नहीं बनाना पड़ रहा है. वरना सड़क बनाने का काम कभी खत्म नहीं होगा. अगर इन्हें हवाई अड्डा का लांच पैड बनाने काम दिया गया, तो एक बार के बाद दूसरी बार प्लेन नहीं उतर पायेगा. रांची जमशेदपुर सड़क की दयनीय स्थिति पर टिप्पणी करते हुए कहा कि क्या इसलिए राजस्व देती है. अखबारों में सड़कों की दयनीय स्थिति के बारे में लगातार खबरें छप रही हैं.
केंद्र और राज्य सरकार के अधिकारी चुप हैं. उद्यमी सड़क पर उतरने को तैयार हैं. सरकार की ओर से यह कहे जाने पर कि बारिश की वजह से सड़कें टूट गयी हैं, इस पर कोर्ट ने कहा कि क्या बारिश सिर्फ झारखंड में हुई है. दूसरे राज्य की सड़कों को क्यों नहीं क्षति होती है. मनोज कुमार अग्रवाल की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के बाद कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार के अफसरों को नेशनल हाइवे पर बन रही सड़कों का स्पेसिफिकेशन बताने को कहा है. मामले पर अगली सुनवाई के लिए 29 अक्तूबर की तिथि तय की गयी है. याचिकाकर्ता की ओर से बहस करते हुए अधिवक्ता जेजे सांगा ने बताया कि एनएच-23 (गुमला-विरमित्रपुर) नेशनल हाइवे सड़क चौड़ीकरण के लिए वर्ष 2007 में टेंडर निकाला गया था.
आज तक काम पूरा नहीं हो पाया है. इसके लिए शारदा कंस्ट्रक्शन को काम दिया गया था. 20 मार्च 2012 को इसका कार्यादेश रद्द कर दिया गया है. सड़क का निर्माण घटिया क्वालिटी का है. श्री सांगा ने कोर्ट में दो दिन पहले ली गयी सड़क की तसवीर भी दिखायी.