रांची: मैगसेसे अवार्ड से सम्मानित जल पुरुष राजेंद्र सिंह ने कहा कि नेताओं ने देश का सबसे अधिक विनाश किया है. नेताओं का मकसद कुछ करने का नहीं होता. उन्हें केवल अपना वोट दिखता है. नेताओं ने देश को चक्कर में फंसा कर रखा है. एक भी नेता नहीं है, जो धरती का पानी बचाने में काम किया हो. एमएलए/एमपी कलक्टर पर पानी की व्यवस्था के लिए रोब जरूर झाड़ते हैं. श्री सिंह गुरुवार को सर्ड में ग्रामीण क्षेत्रों में जल प्रबंधन विषय पर आयोजित सेमिनार में बोल रहे थे. मौके पर कार्मिक विभाग के प्रधान सचिव एसके सत्पथी, ग्रामीण विकास सचिव अरुण, सर्ड निदेशक आरपी सिंह, यूनिसेफ के झारखंड प्रमुख जॉब जकारिया, सिमोन उरांव, पर्यटन निदेशक सिद्धार्थ त्रिपाठी, डीके श्रीवास्तव, जेटीडीएस के निदेशक एचएस गुप्ता, विष्णु राजगढ़िया ने भी अपनी बातें रखी. मौके पर सिमोन उरांव को सम्मानित भी किया गया.
श्री सिंह ने जल प्रबंधन के बारे में विस्तार से जानकारी दी. राजस्थान में किये कार्यो के बारे में बताया. कैसे बंजर स्थानों को हरा-भरा बनाया जाये. सूखी नदियों में जल बढ़ाया जाये. सूख चुके कुओं में पानी भरा जाये. उन्होंने कहा कि धरती का पेट पानी से भर दो, तो धरती हरी-भरी हो जायेगी.
नयी तकनीक से परहेज : श्री सिंह ने कहा कि नयी तकनीक के चक्कर में मत पड़ो. पूरी दुनिया में ऐसी कोई तकनीक नहीं है, जो प्रकृति में नहीं है. उच्च संस्थान प्रकृति से जितना लेते हैं, उतना देना नहीं सिखाते. लेन-देन में बराबरी से ही रास्ता निकलेगा.
प्रकृति से ग्रीड नहीं नीड पूरी होगी
श्री सिंह ने कहा कि अगर प्रकृति से हम चाहें कि ग्रीड (लालच) पूरी हो, तो यह नहीं हो सकती. प्रकृति से नीड (जरूरत) पूरी होगी. आज जनसंख्या व लालच दोनों बढ़ी है.
पहले हर गांव में राजेंद्र सिंह होता था : उन्होंने कहा कि पहले हर गांव में राजेंद्र सिंह होता था. गांव ऐसे लोगों की इज्जत करता था. अब पागल कहता है. पहले समाज खुद अपने लिए पानी की व्यवस्था करता था. अब हम सरकार पर निर्भर हो गये हैं.
झारखंड पहले गंदा नहीं था : उन्होंने कहा कि झारखंड पहले गंदा नहीं था. बहुत अच्छा था. यहां संस्कार, व्यवहार, ज्ञान सब कुछ था. जब इसे नकारा गया, तब इस राज्य का ऐसा हाल हुआ. श्री सिंह ने कहा कि सम्मान हमारे जीवन में जरूरी है. यह हमारे जीवन को क्रियेटिव बनाता है. अगर हमें लगातार नकारा जाये, तो हम कुछ नही ंकर सकते.
स्थल चयन में इंजीनियर करते हैं बेईमानी : उन्होंने कहा कि तालाब, डैम आदि के लिए स्थल चयन में इंजीनियर बेईमानी करते हैं. वे केवल मापी पुस्तिका देखते हैं. चयन में गांव के ही लोगों का सहयोग लेना जरूरी है.
झारखंड को बचाने की जरूरत: राजेंद्र सिंह ने कहा कि झारखंड के मूल संस्कार को संवारने/बचाने की जरूरत है. तभी यहां पानी बचेगा. सरकार ने समाज का सम्मान नहीं किया. तब समाज को खुद आगे बढ़ कर करना पड़ रहा है.