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चार साल से कृषि बीमा का भुगतान लंबित

रांची: राज्य के करीब सवा लाख किसान कृषि बीमा की क्षतिपूर्ति रकम का इंतजार कर रहे हैं. इन्हें सरकार व बीमा कंपनी से करीब 18 करोड़ रुपये मिलने हैं. हालत यह है कि किसानों के पास अब बीमा कराने के लिए भी पैसे नहीं हैं. खास कर पलामू प्रमंडल के किसान पैसे के लिए त्राहिमाम […]

रांची: राज्य के करीब सवा लाख किसान कृषि बीमा की क्षतिपूर्ति रकम का इंतजार कर रहे हैं. इन्हें सरकार व बीमा कंपनी से करीब 18 करोड़ रुपये मिलने हैं. हालत यह है कि किसानों के पास अब बीमा कराने के लिए भी पैसे नहीं हैं.

खास कर पलामू प्रमंडल के किसान पैसे के लिए त्राहिमाम कर रहे हैं. झारखंड देश का अकेला राज्य है, जिसने अपने किसानों के साथ धोेखा किया है. कृषि निदेशालय खरीफ-2011 में मौसम आधारित बीमा की क्षतिपूर्ति रकम का भुगतान नहीं कर रहा है. जबकि 45 दिनों में यह भुगतान हो जाना चहिए. खरीफ 2011 तथा 2012 में मौसम आधारित कृषि बीमा निदेशालय से नियंत्रित थी. निदेशालय को अपने अंश का छह करोड़ रुपये राष्ट्रीय कृषि बीमा कंपनी को देना है. पर अभी इसकी प्रक्रिया ही चल रही है. उधर पूरे राज्य के किसानों की हालत बदतर है. पलामू प्रमंडल का समूचा क्षेत्र सूखा प्रभावित माना जाता है. चांपी के किसान हरेराम के अनुसार यहां वर्ष 2012 के बाद से फसल लगातार बर्बाद होती रही है. इधर पखवाड़े भर पहले सहकारिता विभाग ने राष्ट्रीय कृषि बीमा कंपनी को बीमा योजना के तहत भुगतान के लिए 97 लाख रुपये उपलब्ध कराये हैं. पर अभी इनका भुगतान शुरू नहीं हुआ है.
दो प्रकार की बीमा योजना
कृषि बीमा योजना दो तरह की होती है. मौसम आधारित फसल बीमा योजना तथा राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना. राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना कृषक को उपज में हुई कमी का ही हर्जाना देता है, जबकि मौसम आधारित फसल बीमा इस तथ्य पर आधारित है कि मौसम की प्रतिकूल स्थिति फसल की पैदावार पर प्रतिकूल असर डाल सकती है. खरीफ मौसम में अधिक या न्यून वर्षा तथा रबी मौसम में पाला, गरमी, आर्द्रता, बेमौसम बारिश से होनेवाले फसल नुकसान का भुगतान इसमें होता है. झारखंड के 1.24 लाख किसानों के उपरोक्त दोनों तरह का भुगतान लंबित है.
केस स्टडी
पलामू के सतबरवा में है चौरा लैंप्स. इस पैक्स से करीब 3500 किसान संबद्ध हैं. इनमें से करीब एक हजार बीमित किसानों का भुगतान चार वर्ष से लंबित है. एक हजार किसानों में से ज्यादातर एसटी हैं. पैक्स अध्यक्ष अशोक सिंह ने बताया कि खरीफ-15 के बीमा के लिए जब वह किसानों के पास जा रहे हैं, तो उनका कहना है कि उनके पास खाद-बीज के पैसे भी नहीं हैं. क्षतिपूर्ति की रकम भी नहीं मिल रही, एेसे में वह फिर से बीमा कैसे करायें. अशोक सिंह के अनुसार चौरा लैप्स का इलाका जंगली है. यहां इस बार मकई की फसल भी बर्बाद हो गयी है.
किसानों की जो सूची आयी थी, उनकी जांच हो रही है. देखते हैं कि मामला कहां फंसा हुआ है. सॉल्व (हल) तो करना होगा.विभाग मामले को लेकर गंभीर है. किसानों के साथ अन्याय नहीं होगा. जटाशंकर चौधरी, निदेशक कृषि

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