रांची: झारखंड में जड़ी-बूटी की भरमार है, लेकिन उसका सही इस्तेमाल नहीं होता है. उत्तराखंड ने जड़ी-बूटी के उपयोग से देश-विदेश में अपनी पहचान बना ली है. वहां जड़ी-बूटी का उद्योग है. इससे लोगों को रोजगार व सरकार को राजस्व की प्राप्ति होती है. झारखंड में भी जड़ी-बूटी के उपयोग पर जोर दिया जायेगा. जड़ी-बूटी की नर्सरी खोली जायेगी. झारखंड राज्य होड़ोपैथी (एथनोमेडिसिनल) डॉक्टर्स एसोसिएशन के राज्य स्तरीय परामर्श कार्यक्रम में मंगलवार को गोस्सनर थियोलॉजिकल हॉल में स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र प्रसाद सिंह ने ये बातें कहीं.
उन्होंने कहा कि वन विभाग को जड़ी-बूटी लगाने के लिए प्रोजेक्ट तैयार करना होगा. राज्य सरकार इसमें मदद करेगी. होड़ोपैथी पद्धति के प्रचार-प्रसार एवं विकास के लिए राज्य सरकार द्वारा हर संभव मदद की जायेगी. सांसद सुबोधकांत सहाय ने कहा कि प्राकृतिक इलाज ज्यादा लाभकारी होता है. इसके उपयोग से शरीर पर दुष्प्रभाव नहीं पड़ता. जड़ी-बूटी पद्धति से किये गये इलाज को ही होड़ोपैथी कहा जाता है.
वासवी ने कहा कि राज्य में कुपोषण, एनिमिया, मलेरिया के मरीजों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है. सुदूर ग्रामीण क्षेत्र के लोग आज भी एलोपैथ की दवाओं पर विश्वास नहीं करते. वे जड़ी-बूटी से ही बीमारी का इलाज करते है. हमारे यहां मेडिसिनल प्लांट की भरमार है. राज्य सरकार इनके लिए लैब स्थापित करे एवं होड़ोपैथी को पहचान दिलाये. डॉ पीपी हेंब्रम ने कहा कि होड़ोपैथी में गंभीर बीमारियों का इलाज संभव है, लेकिन इसका सही से प्रचार प्रसार नहीं हो पाया है. कार्यक्रम का संचालन रतन तिर्की ने किया. कार्यक्रम में होड़ोपैथी के चिकित्सक शामिल हुए.